उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित भगवान राम की तपोस्थली चित्रकूट जिसे उसकी भौगोलिक स्थिति ने दो हिस्सों (उत्तर प्रदेश व् मध्य प्रदेश) में बांट दिया। जनपद का नाम एक परंतु राजनैतिक दृष्टि से हिस्से दो। एक विधानसभा उत्तर प्रदेश में तो एक सीट मध्य प्रदेश में पड़ती है। यूं समझ लीजिए कि एक पैर यूपी की विधानसभा तो दूसरा एमपी की विधानसभा में रहता है। चित्रकूट की जिस विधानसभा सीट पर इस समय भाजपा की हार के चर्चे सियासी गलियारों में गर्म हैं वो मध्य प्रदेश के तहत आती है। इस सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने अपनी परंपरा बरक़रार रखते हुए बीजेपी को उपचुनाव में शिकस्त दे दी। चुनाव में हार जीत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं परन्तु हार जब सिंहासन पर बैठे राजा की हो और विजय जब लड़खड़ाते हुए योद्धा की हो तब वो चर्चा का विषय बन ही जाती है और खुद राजा को भी आइना दिखा जाती है।
शिवराज भी नहीं बचा पाए लाज
चित्रकूट विधानसभा सीट पर विगत 9 नवम्बर को मतदान और 12 नवम्बर को मतगणना के बाद यह सीट उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश तथा देश के सियासी गलियारे में चर्चा के केंद्र बिंदु में हैं। दरअसल ऐसा होना लाज़िमी भी है। कांग्रेस विधायक प्रेम सिंह के निधन से रिक्त हुई इस सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी की हार के कई सियासी मायने हैं। इस चुनाव को कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी ने चर्चा का केंद्र बनाया। नाक का सवाल बना लिया था भाजपा ने इस सीट को। यही कारण था कि विगत दो महीनों के दौरान मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अधिकतर समय चित्रकूट को दिया। चुनाव से पहले अगस्त सितम्बर में सीएम शिवराज ने जनसभा व् दो दिनी प्रवास के तहत चुनावी माहौल बनाने की कोशिश की। मतदान के दिन 9 नवम्बर से पहले 5 से 7 नवम्बर तक तीन दिन के प्रवास पर ताबड़तोड़ जनसभाएं रोड शो रथ यात्रा व् गांव में रात्रि विश्राम की योजना बनाते हुए चुनाव जीतने के लिए अथक मेहनत की।यूपी के डिप्टी सीएम केशव मौर्या भी इस सीट पर प्रचार के लिए गए थे। इन सबके बीच भाजपा को झटका तब लगा जब जिस तुर्रा गांव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासी के घर रात बिताई थी उसी गांव में उसे मात्र 210 वोट मिले और इस क्षेत्र में पार्टी औंधे मुंह गिरी। लगातार कई बार से बीजेपी सांसद को भी इस चुनाव ने उनके कामों को लेकर आइना दिखा दिया।
तीन जगह सरकार फिर भी करारी हार
केंद्र में मोदी यूपी में योगी और पडोसी राज्य एमपी में शिवराज सिंहासन पर विराजमान हैं लेकिन उसके बावजूद भी पराजय ने जोर का झटका धीरे से दे दिया। सीएम शिवराज की ऊंची ऊंची बातें और धरातल पर लगभग शून्यता ने बीजेपी को इस परिणाम से दो चार करवाया ऐसा खुद बीजेपी के अंदरखाने के लोगों का मानना है। सूत्रों के मुताबिक हार के बाद पार्टी में थोडा आपसी घमासान का भी संकेत है और सतना सांसद गणेश सिंह के होमवर्क पर भी हाईकमान की नज़र टिक गई है। अतिआत्मविश्वास भी भाजपा को भारी पड़ गया।
योगी ने भी तैयार किया प्लेटफार्म
22 अक्टूबर को चित्रकूट दौरे पर आए यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने चित्रकूट के रामघाट से यूपी से ज्यादा एमपी की जनता को संबोधित करते हुए अपनी सरकार की उपलब्धियां और सीएम शिवराज का बखान किया था। तीन जगह एक ही पार्टी की सरकार होने पर विकास का पहिया तेजी से घूमने की दुहाई भी राम की तपोभूमि में बीजेपी को हार से न बचा पाई। इस पार उत्तर प्रदेश में यूपी सीएम योगी मंदाकिनी नदी के किनारे थे तो उस पार अधिसंख्य संख्या में एमपी की जनता उनका इस्तक़बाल करने के लिए खड़ी थी।
सफ़ाई के जरिए दर्द छिपाने की कोशिश
लाख जतन के बावजूद पराजय का स्वाद चखने वाली बीजेपी अब एक ही सुर में भोपाल से लेकर लखनऊ तक सफ़ाई के जरिए दर्द छिपाने की कोशिश में लगी है। मध्य प्रदेश बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान का कहना है कि हार स्वीकार्य है और समीक्षा होगी ,ये कांग्रेस की परंपरागत सीट थी और प्रेम सिंह के निधन से उसे सहानुभूति मिली है। यह पूछने पर कि सन 2014 के लोकसभा चुनाव में न जाने कितनी परंपरागत सीटों पर मोदी लहर के चलते पार्टी का कब्जा हो गया तो क्या अब ये लहर फीकी पड़ रही है और जब पार्टी को यह आभास था कि इस सीट पर कांग्रेस को सहानुभूति मिलेगी तो फिर खुद सीएम शिवराज ने इतना पसीना क्यों बहाया जबकि निर्वाचित विधायक का कार्यकाल 9 महीने ही है? इस प्रश्न पर ज्यादा कुछ न बोलते हुए प्रदेश अध्यक्ष ने कहा हम समीक्षा करेंगे। कमोबेश ऐसी ही सफाई लखनऊ से भी दी जा रही है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी इस हार पर बीजेपी को घेरने से नहीं चूक रहे।
बहरहाल यूपी से लेकर एमपी तक इस हार की चर्चा जोरों पर है। एमपी सीएम शिवराज और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ की हुकूमत के बीच वाली इस सीट पर भगवा खेमे की हार का सन्देश शायद दूर तलक जाएगा। जिस हिसाब से इस सीट की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर है उससे क्या निष्कर्ष निकलता है यह जल्द ही पता चल जाएगा काफी कुछ यूपी निकाय चुनाव में भी।