29 मार्च को कानपुर से चले थे पैदल कोरोना से जंग में पूरा देश लॉकडाउन है. बड़े शहरों महानगरों में कामकाज ठप है. फैक्ट्रियों व बड़े लोगों के यहां काम तथा अन्य तरीके से जीवकोपार्जन करने वाले दिहाड़ी कामगारों को लॉकडाउन ने खासा प्रभावित किया है. रोजी रोटी पर संकट आ खड़ा हुआ है. बड़ी संख्या में मेहनतकशों का अपनी मातृभूमि की ओर लौटना जारी है. ऐसा दृश्य इस समय हर जगह देखा जा सकता है. कुछ ऐसा ही जनपद में भी इस वक्त नजर आ रहा है. कई परिवार भूख प्यास से बेहाल अपने गांव का सफर तय कर रहे हैं. बतौर उदाहरण कामगारों का एक जत्था 29 मार्च को कानपुर से मानिकपुर(चित्रकूट) के लिए पैदल ही निकल पड़ा. इसी तरह पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के सतना जनपद के कई मेहनतकश गोरखपुर में मजदूरी करते थे. लॉकडाउन के बाद काम बंद हो गया. मकान मालिक ने भी कमरा खाली करने की हिदायत दे दी. किसी तरह बस के द्वारा ये मजदूर प्रयागराज पहुंचे और फिर वहां से अब पैदल सतना जा रहे हैं. इन मेहनतकशों के पैरों में छाले तक पड़ गए हैं. तस्वीर उस समय और द्रवित कर देती है जब इस सफ़र में वे मासूम भी दिखाई पड़ते हैं जिनके अभी खाने खेलने के दिन हैं.
लोग कर रहे मदद
इस विषम परिस्थिति में इंसान ही इंसान के काम आ रहा है. सरकारी व प्रशासनिक तंत्र के अलावा समाज के भी लोग पूरी शिद्दत से जरूरतमंदों की मदद में लगे हैं. बतौर उदाहरण 29 मार्च को कानपुर से मनिकपुर(चित्रकूट) के लिए निकले परिवार जब मानिकपुर की घुमाव व चढ़ाई दार लंबी घाटी पर पहुंचे तो मानिकपुर के युवा समाजसेवी हेमनारायण व आशीष कुमार को इसकी सूचना मिली. जिस पर उन्होंने उक्त परिवारों को खाने पीने की सामग्री उपलब्ध कराई. भूख से बेहाल बच्चे बिस्किट व नमकीन का पैकेट पाकर खुश हो गए. इन सबके बीच एक बार फिर यही प्रश्न उठा खड़ा हुआ कि किसी भी मुसीबत में मजदूर गरीब आम आदमी ही सबसे ज़्यादा क्यों पिसता है.
इस विषम परिस्थिति में इंसान ही इंसान के काम आ रहा है. सरकारी व प्रशासनिक तंत्र के अलावा समाज के भी लोग पूरी शिद्दत से जरूरतमंदों की मदद में लगे हैं. बतौर उदाहरण 29 मार्च को कानपुर से मनिकपुर(चित्रकूट) के लिए निकले परिवार जब मानिकपुर की घुमाव व चढ़ाई दार लंबी घाटी पर पहुंचे तो मानिकपुर के युवा समाजसेवी हेमनारायण व आशीष कुमार को इसकी सूचना मिली. जिस पर उन्होंने उक्त परिवारों को खाने पीने की सामग्री उपलब्ध कराई. भूख से बेहाल बच्चे बिस्किट व नमकीन का पैकेट पाकर खुश हो गए. इन सबके बीच एक बार फिर यही प्रश्न उठा खड़ा हुआ कि किसी भी मुसीबत में मजदूर गरीब आम आदमी ही सबसे ज़्यादा क्यों पिसता है.