ऐसी कहानियां लिख देते हैं कि…
क्या आपको डकैतों की कहानियां रोमांचित करती हैं, फिल्मों में डकैतों की फि़ल्मी कहानियां देख सुनकर जरूर मन में ये प्रश्न उठता होगा कि क्या वास्तव में डकैत निर्दयी होते हैं और क्या उनकी छवि गरीबों के बीच किसी मसीहा के रूप में होती है तो इसका जवाब है हां, डकैत इसी तरह होते हैं। समाज की गोद से निकले दहशत के ये सौदागर खौफ की ऐसी ऐसी कहानियां लिख देते हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी वे दास्तां जिंदा रहती हैं।
क्या आपको डकैतों की कहानियां रोमांचित करती हैं, फिल्मों में डकैतों की फि़ल्मी कहानियां देख सुनकर जरूर मन में ये प्रश्न उठता होगा कि क्या वास्तव में डकैत निर्दयी होते हैं और क्या उनकी छवि गरीबों के बीच किसी मसीहा के रूप में होती है तो इसका जवाब है हां, डकैत इसी तरह होते हैं। समाज की गोद से निकले दहशत के ये सौदागर खौफ की ऐसी ऐसी कहानियां लिख देते हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी वे दास्तां जिंदा रहती हैं।
खौफ का दूसरा नाम था “ददुआ” पाठा के बीहड़ में चार दशकों तक दहशत के सिंहासन पर आसीन होकर मौत का खुला खेल खेल खेलने वाले खूंखार दस्यु सरगना ददुआ की कई जघन्य वारदातों को सुन लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। खुद के खिलाफ मुखबिरी का शक होने मात्र पर ही ददुआ ने न जाने कितनों को बेरहमी से मौत की आगोश में पहुंचा दिया। आज भी उन इलाकों परिवारों में ददुआ के कहर की चीखें लोगों की कानों में गूंजती हैं। ददुआ के ऊपर कत्ल के लगभग 150 मुकदमें थे।
किसी को जला देता था ददुआ
आंख में एक तिनका भी पड़ जाए तो एहसास हो सकता है कि क्या दर्द होता है तो जऱा ज़ेहन में ये कल्पना करिए कि यदि किसी की आंख निकाली जाए तो उसकी चीखें फिजाओं में किस हद तक रूह कंपाने वाली होंगी। ऐसे ही जघन्य वारदातों को अंजाम देता था ददुआ। मानिकपुर थाना क्षेत्र के लोधौहां गांव के प्रधान रहे जिमीदार नाम के ग्रामीण की आंखें ददुआ ने चाकू से निकाल ली थी। वारदात को याद कर सिहर उठते हुए जिमीदार के परिजनों ने बताया कि मात्र मुखबिरी के शक में ददुआ ने इतनी बेरहमी से वारदात को अंजाम दिया। बार बार मुखबिरी न करने की बात कहने पर भी ददुआ ने जिमीदार को नहीं छोड़ा। इसी गांव के जयनारायण और देवनारायण नाम के दो सगे भाइयों की ददुआ ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। वो भी मुखबिरी के शक में। मुखबिरी के ही शक में ददुआ ने दिन दहाड़े पिता पुत्र को डीजल डालकर जिंदा जला दिया था सन 2004 में।
आंख में एक तिनका भी पड़ जाए तो एहसास हो सकता है कि क्या दर्द होता है तो जऱा ज़ेहन में ये कल्पना करिए कि यदि किसी की आंख निकाली जाए तो उसकी चीखें फिजाओं में किस हद तक रूह कंपाने वाली होंगी। ऐसे ही जघन्य वारदातों को अंजाम देता था ददुआ। मानिकपुर थाना क्षेत्र के लोधौहां गांव के प्रधान रहे जिमीदार नाम के ग्रामीण की आंखें ददुआ ने चाकू से निकाल ली थी। वारदात को याद कर सिहर उठते हुए जिमीदार के परिजनों ने बताया कि मात्र मुखबिरी के शक में ददुआ ने इतनी बेरहमी से वारदात को अंजाम दिया। बार बार मुखबिरी न करने की बात कहने पर भी ददुआ ने जिमीदार को नहीं छोड़ा। इसी गांव के जयनारायण और देवनारायण नाम के दो सगे भाइयों की ददुआ ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। वो भी मुखबिरी के शक में। मुखबिरी के ही शक में ददुआ ने दिन दहाड़े पिता पुत्र को डीजल डालकर जिंदा जला दिया था सन 2004 में।
पाठा के डकैतों की फितरत है नरसंहार करना ऐसा नहीं कि सिर्फ ददुआ ने मौत का ***** नाच किया हो। पाठा के बीहड़ों में बल्कि उसके बाद के खूंखार डकैत ठोकिया, बलखडिय़ा, रागिया, ललित पटेल (सभी पुलिस मुठभेड़ में ढेर) और वर्तमान में खाकी के लिए खुली चुनौती बने दस्यु बबुली कोल ने भी बेरहमी से लोगों को मौत के घाट उतारा है। रागिया ने 2009 में यूपी एमपी के सीमावर्ती बिछियन गांव में एक ही परिवार के 12 लोगों को जिंदा जला दिया था तो ठोकिया ने भी 2004 में एक ही परिवार के 7 लोगों को जिंदा जलाया था, बबुली ने 2011 में एक ही परिवार के पांच लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इन सभी नरसंहारों में रूह कंपा देने वाली बात यह कि इन घटनाओं में मरने वालों में महिलाएं, गर्भवती महिलाएं और मासूम बच्चे तक शामिल थे। पाठा के डकैतों की फितरत रही है नरसंहार को अंजाम देना।