अखाड़े में दो पहलवान और उनके दांव पेंच देख रोमांचित होते लोग, कुछ ऐसा ही दृश्य था जनपद के मऊ थाना क्षेत्र में आयोजित दंगल का। युवा पहलवान अपने-अपने उस्तादों की सिखाई कुश्ती की विधा का इस्तेमाल करते हुए अपने प्रतिद्वंदी को मात देने का प्रयास करते रहे। अंत में वही जीता जिसने सही तरीके से दांव का इस्तेमाल किया। स्थानीय पहलवान भारी पड़े अन्य जनपदों से आए पहलवानों पर। देशराज नाम के स्थानीय पहलवान ने कानपुर के अजय नाम के पहलवान को पटखनी देकर अपनों का भरपूर
प्यार लूटा। गोरखपुर व् इलाहबाद के पहलवानों के बीच हुई कुश्ती में इलाहाबाद ने बाजी मारी।
नशे की वजह से युवाओं में जोश की कमी- दंगल में अपने कारिंदों के साथ कई उस्तादों का कहना था कि कुश्ती भारत का प्राचीन और परम्परागत खेल है। परन्तु सरकारों की उदासीनता के कारण इस खेल को वो पहचान नहीं मिल पा रही जिसकी इसे दरकार है। वहीं अखाड़ों के गुरुओं का कहना था कि आज युवाओं में नशेबाजी की बढ़ती प्रवृत्ति से उनके जोश में कमी आ रही है और कुश्ती के लिए जो जरुरी फूर्ति व् ताकत चाहिए वो आज के युवाओं में बामुश्किल देखने को मिल रही है। फिर भी बुन्देलखण्ड में इस खेल के प्रति आज भी आकर्षण कायम है और यहां के युवा भी अपनी इस परम्परा को लेकर फिक्रमन्द नजर आते हैं।
क्षेत्र में नहीं है कोई कुश्ती (रेसलिंग) एकेडमी- बुन्देलखण्ड में प्रतिभाएं तो बहुत हैं, परन्तु जिम्मेदारों निगहबानी में शून्यता होने के कारण ये प्रतिभाएं दम तोड़ देती हैं। वर्ष में जितनी बार बुन्देलखण्ड में दंगल का आयोजन होता है उतना शायद ही कहीं और होता हो, परंतु रंज इस बात का है कि इस इलाके में ऐसी कोई एकेडमी नहीं है जो भविष्य के पहलवानों को तैयार कर सके। इसे प्रशासन और सरकारों की नाकामी उदासीनता नहीं कही जाएगी तो और क्या कहा जाएगा कि जिस बुन्देलखण्ड की धरती का रिश्ता हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद से है उसी धरती पर आज खेल प्रतिभाएं लुप्त होने की कगार पर हैं, क्योंकि बुन्देलखण्ड तो सिर्फ एक चुनावी मुद्दा है सफेदपोशों के लिए।