इन इलाकों में भीषण पेयजल संकट
जून के रुख़सत होने का समय जैसे जैसे करीब आ रहा है वैसे वैसे जलदेवता की बेवफाई कई इलाकों में प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रही है। लोग बूंद बूंद पानी को तरस रहे हैं। जनपद के पहाड़ी ब्लाक के अंतर्गत आने वाले कई गांवों में ग्रामीणों को मजबूरन गंदा पानी पीकर अपनी प्यास बुझानी पड़ रही है। ज़िम्मेदारों की उदासीनता के चलते इन इलाकों में पेयजल समस्या से निपटने को लेकर अभी तक कोई समुचित इंतजाम नहीं हो पाया है।
गड्ढों व चोहड़ों का पानी पीने को मजबूर ग्रामीण उदाहरण के तौर पर पहाड़ी ब्लाक के बक्टा गांव में ग्रामीण नदी के पानी को गड्ढों से भरकर उसका सेवन करने को मजबूर हैं। हर विधानसभा व् लोकसभा चुनाव में सियासत के खिलाडी इन इलाकों में जलधारा उत्पन्न करने की बात करते हुए वादों पर छाती पीटते हैं लेकिन चुनाव संपन्न होने के बाद सबकुछ शून्य ही नजर आता है। गर्मी के दिनों में गांव के लोगों को पेयजल समस्या से जूझना पड़ता है। ग्रामीण नदी में गड्ढा खोदकर पीने के पानी का इंतजाम करते हैं। गांव में दर्जनों हैंडपंप, पांच कुंए व सात तालाब तो हैं लेकिन गर्मी के दिनों में सभी जलस्रोतों पर जलदेवता की निगाह टेढ़ी हो जाती है। हैंडपंप पानी देना बंद कर देते है। ऐसे में केवल एकमात्र सहारा गांव से होकर बहने वाली नदी के किनारे बने गड्ढे ही हैं लोगों की प्यास बुझाने को। इन गड्ढों में एक-एक घंटे के अंतराल में पानी भर जाता है और लोग इस पानी को पीकर प्यास बुझाते हैं। गांव के रहने वाले लल्लू, सफीक अली, उमर अली, इल्हजुननिशा, हसीनाबनो, कामता प्रसाद, मुन्ना प्रसाद, पुरुषोत्तम पांडेय, दयाशंकर आदि ने बताया कि गर्मी आते ही कुएं व हैंडपंप सूख जाते हैं तो सामूहिक सहयोग से नदी के किनारे तीन से पांच फीट गहरा गड्ढा खोदकर उसमें पानी निकालते हैं, तत्पश्चात गड्ढे से निकले गंदे पानी को छानकर पीने योग्य बनाया जाता है। ग्रामीणों के मुताबिक कई सरकारें आईं और गईं लेकिन पेयजल संकट का समाधान समुचित रूप से न हो पाया।