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पाठा का शेर कहे जाने वाले पूर्व सांसद का निधन, डकैत भी नहीं रोक पाए इस नेता का रास्ता

locationचित्रकूटPublished: Feb 07, 2018 12:21:24 pm

बुंदेलखण्ड में पाठा का शेर कहे जाने वाले पूर्व सांसद प्रकाश नारायण टिकरिया का 83 वर्ष की उम्र में हार्ट अटैक होने से निधन हो गया।

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चित्रकूट. बुंदेलखण्ड में पाठा का शेर कहे जाने वाले पूर्व सांसद प्रकाश नारायण टिकरिया का 83 वर्ष की उम्र में हार्ट अटैक होने से निधन हो गया। पूर्व सांसद के निधन की खबर से पूरे जनपद सहित बुन्देलखण्ड के राजनीतिज्ञों में शोक की लहर दौड़ गई है। प्रकाश नारायण टिकरिया कभी भाजपा के कट्टर और कद्दावर नेता माने जाते थे लेकिन पार्टी के अंतर्विरोध के चलते और कई चुनावों में टिकट न मिलने से नाराज होकर उन्होंने भगवा खेमे से किनारा कर लिया था।

 

प्रकाश नारायण को पाठा का शेर कहा जाता था क्योंकि वे गरीबों, मजलूमों और आदिवासियों के हक की लड़ाई के लिए अधिकारीयों की चौखट पर धरना प्रदर्शन करने बैठ जाते थे और यही नहीं कहा तो यहां तक जाता है कि अपने संसदीय कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई अधिकारीयों को उनके कार्यालय में जाकर उन्हें जनता के साथ खिलवाड़ न करने की चेतावनी दी थी, इसके आलावा पाठा के जिस बीहड़ में उनका गांव स्थित है वहां आज भी डकैतों के डर से लोग जाने में कतराते हैं लेकिन प्रकाश नारायण हमेशा बेपरवाह होकर अकेले बीहड़ से लेकर मुख्यालय तक जनता के हक की आवाज बुलन्द करने के लिए रोज आवागमन करते थे। तभी से उन्हें पाठा का शेर और प्यार से काका कहा जाने लगा।

चित्रकूट बांदा लोकसभा क्षेत्र के पूर्व सांसद प्रकाश नारायण टिकरिया का दिल का दौरा (हार्ट अटैक) पड़ने से मानिकपुर में निधन हो गया। पूर्व सांसद को आज ही (बुद्धवार) दिल्ली से चेन्नई जाना था। इलाज के लिए परंतु नियति के खेल ने उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी। पूर्व सांसद के निधन से जनपद के राजनीतिज्ञों समाजसेवियों सहित आम जनता में भी शोक की लहर दौड़ गई है। प्रकाश नारायण सर्वमान्य नेता के तौर पर जाने जाते थे और खासतौर पर गरीब आदिवासियों के लिए उन्हें बतौर संघर्ष करने वाले नेता के रूप में ज़्यादा पहचान मिली।

प्यार से काका और पाठा का शेर कहा जाता था

राम मंदिर लहर (1991-92) में भाजपा से पहली बार चित्रकूट बांदा लोकसभा (तत्कालीन समय में बांदा लोकसभा क्योंकि चित्रकूट जिला नहीं बना था) क्षेत्र से सांसद बने प्रकाश नारायण अपने उग्र तेवर के लिए जाने जाते थे। अपने कार्यकाल से लेकर अभी तक उन्होंने गरीबों आदिवासियों की लड़ाई लड़ने से कदम पीछे नहीं खींचे थे। क्षेत्रीय लोग उन्हें काका कहकर बुलाते थे। अधिकारीयों के बीच अपने संसदीय कार्यकाल के दौरान उनकी छवि एक दबंग सांसद के रूप में थी जो जनता की किसी भी समस्या के लिए अधिकारीयों से लड़ जाता था। इसी छवि ने उन्हें पाठा के शेर के रूप में अलग पहचान दिलाई। भाजपा से सांसद होने के बावजूद वे विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ताओं की समस्याएं प्रमुखता से उठाते थे अधिकारीयों के सामने।


डकैत भी नहीं रोक पाए काका का रास्ता

पूर्व सांसद का जन्म पाठा के जिस गांव टिकरिया में हुआ है वहां पिछले तीन दशकों से लेकर आज तक खूंखार डकैतों का खौफ कायम है। बीहड़ के बीच स्थित टिकरिया रेलवे स्टेशन के पास ही कई बार दस्यु बबुली कोल ने खौफ का खेल खेला है और इससे पहले खूंखार दस्यु ददुआ के समय में तो पुलिस भी इस क्षेत्र की और जाने में सौ बार सोचती थी। इन सबके बीच काका यानि प्रकाश नारायण बेख़ौफ़ होकर क्षेत्र में एक जनप्रतिनिधि से लेकर नेता के रूप में विचरण करते थे और जनता की समस्याओं को हर स्तर पर उठाने का प्रयास करते थे।


राजनितिक यात्रा

राम मंदिर लहर में भाजपा से सांसद बनने के बाद अपने तेज तर्रार तेवर के चलते क्षेत्र में लोकप्रिय होने के बावजूद दूसरी बार बैलेट पर बुलट हावी होने(दस्यु ददुआ के राजनितिक फरमानों का दौर) के चलते वे काफी कम वोटों से हार गए। तीसरी बार भाजपा से टिकट न मिलने से खफा प्रकाश नारायण ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा और फिर हार गए, हालांकि उनकी लोकप्रियता पर कोई फर्क नहीं पड़ा। बार चुनाव लड़ने के बाद उन्होंने एक प्रकार से राजनितिक सक्रियता से सन्यास ले लिया था परंतु अपने आवास टिकरिया गांव में वे प्रतिदिन गरीब आदिवासियों की समस्याओं को सुनते और उनके समाधान का प्रयास करते थे। बीहड़ में काका ने कभी खौफ की परवाह नहीं की।

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