लंका दहन से जुड़ा है इस गुफा में हनुमान के निवास का कारण सभी जानते हैं कि राक्षस राज रावण की कैद से सीता को मुक्त कराने हेतु अपने आराध्य भगवान राम का संदेश लेकर लंका गए हनुमान ने पूरी लंका को जलाकर राख कर दिया था। महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण व् गोस्वामी तुलसीदास रचित श्री रामचरित मानस में लंका दहन का विस्तृत वर्णन मिलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं लंका दहन के बाद शरीर में अग्नि से उत्पन्न तपिश को शांत करने के लिए श्री राम ने हनुमान को चित्रकूट में निवास करने का आदेश दिया. अपने आराध्य का आदेश पाकर जिस जगह हनुमान अपनी तपिश शांत कर रहे हैं उसे “हनुमान धारा” के नाम से जाता है. हनुमान यहां अपनी तपिश शांत कर रहे हैं.
रहस्यों को समेटे हुए है हनुमानधारा
भगवान राम की तपोस्थली चित्रकूट में कई ऐसी जगह हैं जहाँ आज भी कई रहस्यात्मक पहलू लोगों को सोचने पर मजबूर कर देते हैं. उन्ही में से एक स्थान है हनुमान धारा. पौराणिक व धार्मिक ग्रंथों में उल्लिखित मान्यता के अनुसार लंकाधिपति रावण पर विजय प्राप्त करने से पहले राम का सन्देश लेकर लंका गए हनुमान ने पूरी लंका को आग से भस्म कर दिया था। लंका दहन व रावण से युद्ध में विजय के पश्चात हनुमान के शरीर में उत्पन्न गर्मी को शांत करने के लिए राम ने उन्हें चित्रकूट में निवास करने का आदेश दिया। हनुमानधारा नाम से विख्यात चित्रकूट के इस स्थल पर हनुमान के हृदय को आज भी शीतल कर रहा है अदृश्य जगह से निकल रहा जल । मान्यता के अनुसार भगवान राम से जब हनुमान ने अपने शरीर में उत्पन्न गर्मी के निराकरण के उपाए के बारे में पूछा तो श्री राम ने हनुमान को चित्रकूट के पहाड़ पर रहने का आदेश दिया और अपने बाण से उसी पहाड़ पर जलश्रोत उत्पन्न किया जिसे हनुमानधारा के नाम से जाना जाता है। श्री रामचरितमानस सहित कई धार्मिक ग्रंथों में इस स्थान का उल्लेख मिलता है। गुफा में विराजे हनुमान के बाएं अंग पर अदृश्य जगह से निकलते जलश्रोत का रहस्य आजतक कोई नहीं जान पाया। भीषण गर्मी में भी ये जल नहीं सूखता। आस्थावानों में इस स्थान को लेकर अपार श्रद्धा है। विभिन्न असाध्य रोगों के निवारण के लिए भी भक्त इस जल को अपने साथ ले जाते हैं। पहाड़ पर अनेकों गुफाएं व् कन्दराएँ इस बात को प्रमाणित करती हैं की इन जगहों पर बड़े बड़े तपस्सीयों ने आत्मजागरण की तपस्या की है। स्थान के पुजारी बताते हैं की यहां का जल अमृत के समान माना जाता है और कभी नहीं सूखता। कहा जाता है की आज भी हनुमान धारा के पहाड़ पर कई साधू संत जनकल्याण के लिए तपस्यारत हैं और उन्हें हनुमान की कृपा प्राप्त है।