लंका दहन के पश्चात आज भी यहां पर अग्नि की गर्मी शांत कर रहे हनुमान, अदृश्य स्रोत से निकलती है जलधारा
कहा जाता है कि कलयुग में हनुमान जी ही जागृत अवस्था में इस धरती पर विराजमान हैं और अपने भक्तों के सारे कष्ट दूर करते हैं।
Updated: 08 Feb 2018, 01:33 PM IST
चित्रकूट. कहा जाता है कि कलयुग में हनुमान जी ही जागृत अवस्था में इस धरती पर विराजमान हैं और अपने भक्तों के सारे कष्ट दूर करते हैं। भगवान राम का सन्देश लेकर लंका गए हनुमान ने पूरी लंका को जलाकर राख कर दिया था। महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण व् गोस्वामी तुलसीदास रचित श्री रामचरित मानस में लंका दहन का विस्तृत वर्णन मिलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं लंका दहन के बाद शरीर में अग्नि से उत्पन्न गर्मी को शांत करने के लिए श्री राम ने हनुमान को चित्रकूट में निवास करने का आदेश दिया और आज भी हनुमान के हृदय को शीतल कर रहा है पहाड़ों के अदृश्य जगह से निकलता शीतल जल। जिसे हनुमान धारा के नाम से जाना जाता है और जहाँ आने वाले हर भक्त के सारे कष्ट हनुमान दूर कर देते हैं।
भगवान राम का जन्म भले ही अयोध्या में हुआ हो लेकिन राजा राम से तपस्वी राम बने वे चित्रकूट में जहाँ राम ने अपने वनवासकाल के साढ़े ग्यारह साल बिताए और आस्था की कसौटी पर चित्रकूट की कई ऐसी जगह हैं जहाँ किसी दिव्य शक्ति के निवास के प्रत्यक्ष प्रमाण मिलते हैं। रावण पर विजय प्राप्त करने से पहले राम का सन्देश लेकर लंका गए हनुमान ने पूरी लंका को आग से भस्म कर दिया था। लंका दहन व् विजय के पश्चात हनुमान के शरीर में उत्पन्न गर्मी को शांत करने के लिए राम ने उन्हें चित्रकूट में निवास करने का आदेश दिया।
अदृश्य स्रोत से निकलती है जलधारा
हनुमानधारा नाम से विख्यात चित्रकूट के इस पवित्र स्थल पर हनुमान के हृदय को शीतल कर रही है अदृश्य जगह से निकलती जलधरा। मान्यता के अनुसार भगवान श्री राम से लंका दहन के पश्चात जब हनुमान जी ने अपने शरीर में उत्पन्न गर्मी को शांत करने के उपाए के बारे में पूछा तो श्री राम ने हनुमान को चित्रकूट के पहाड़ पर रहने का आदेश देते हुए अपने बाण से उसी पहाड़ पर जलधारा को उत्पन्न किया जिसे हनुमानधारा के नाम से जाना जाता है। श्री रामचरितमानस सहित कई धार्मिक ग्रंथों में इस स्थान का उल्लेख मिलता है। गुफा में विराजे हनुमान के बाएं अंग पर गिरती जलधारा के जलश्रोत का रहस्य आजतक कोई नहीं जान पाया। भीषण गर्मी में भी निरंतर गिरती रहती है ये जलधारा। आस्थावानों में इस स्थान को लेकर अपार श्रद्धा है। विभिन्न असाध्य रोगों के निवारण के लिए भी भक्त इस जल को अपने साथ ले जाते हैं। पहाड़ पर अनेकों गुफाएं व् कन्दराएँ इस बात को प्रमाणित करती हैं की इन जगहों पर बड़े बड़े तपस्सीयों ने आत्मजागरण और जनकल्याण हेतु तपस्या की है। स्थान के पुजारी बताते हैं की यहां का जल अमृत के समान माना जाता है और कभी नहीं सूखता। कहा जाता है की आज भी हनुमान धारा के पहाड़ पर कई साधू संत जनकल्याण के लिए तपस्यारत हैं और उन्हें हनुमान की कृपा प्राप्त है।
प्रकृति का अनुपम नजारा
ऊँचे पहाड़ पर स्थित इस पवित्र स्थल से प्रकृति का एक अलग ही नजारा देखने को मिलता है। बंदरों लंगूरों की शैतानियों से आस्थावानों को एक अलग ही आनंद की अनुभूति होती है। पहाड़ पर सीता रसोई भी स्थित है। ऐसा माना जाता है कि वनवासकाल के दौरान इस स्थान पर भी कुछ समय के लिए प्रभु श्री राम ठहरे हुए थे।
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