यूपी को दिल्ली का रास्ता माना जाता है और इस प्रदेश में होने वाले किसी भी चुनाव में हार जीत का दूरगामी परिणाम अवश्य पड़ता है और फ़िलहाल ये उपचुनाव तो सत्तासीन भगवा ब्रिगेड के लम्बरदारों के संसदीय क्षेत्रों में था, जिसमें इस तरह की करारी हार पूरी पार्टी को सदमा दे गई है। किसी भी भगवाई लम्बरदार से लेकर नेता तक के पास उचित जवाब नहीं है कि आखिर चूक कहां हुई। अलबत्ता उपचुनाव के परिणाम से कोई खास असर न पड़ने की कराहती वाणी भाजपा का दर्द खुद बयां कर रही है। उधर सपा-बसपा खेमें में ख़ुशी के नगाड़े बज रहे हैं और ऐसा होना लाजिमी भी है। क्योंकि पिछले कुछ चुनावों में सपा-बसपा इस कदर लड़खड़ा गए थे कि उनके अस्तित्व पर ही सवाल उठने लगे थे, खासतौर पर बसपा के।
वहीं जिसका शिद्दत से इंतजार था आखिर वो घड़ी आ गई, यूपी की दो लोकसभा सीटों का परिणाम अपेक्षाकृत चौंकाने वाला रहा क्योंकि जहां एक प्रदेश (त्रिपुरा) में पार्टी फर्श से अर्श तक पहुंची वहीं उस दूसरे प्रदेश (यूपी) में उसी पार्टी को शिकस्त का सामना करना पड़ा वह भी सत्ता में रहते हुए। प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव मौर्या के संसदीय क्षेत्र क्रमशः गोरखपुर और फूलपुर (इलाहाबाद) में सपा बसपा गठबंधन ने बाजी मार ली। उपचुनाव में पूरी ताकत झोंकने वाली बीजेपी को यह झटका अंदर तक महसूस हुआ है इसमें कोई संशय नहीं।
झूम रही सपा-बसपा- सत्तासीन पार्टी के दो सूरमाओं के संसदीय क्षेत्रों में विजयी पताका लहराने के बाद सपा-बसपा के खेमें ख़ुशी की लहर साफ दिखाई पड़ रही है। सपा कार्यालय में पार्टी कार्यकताओं ने अबीर गुलाल उड़ाते हुए एक दूसरे को मिठाई खिलाई औऱ जीत का जश्न मनाया। पार्टी कार्यकर्ता उत्साहित होते हुए इसे परिवर्तन का आगाज और भाजपा की विफलता बता रहे थे। सपा जिलाध्यक्ष अनुज यादव का कहना था कि जनता भाजपा को अच्छी तरह परख चुकी है और उसी का परिणाम उपचुनाव में दिखा है। प्रदेश के सीएम और डिप्टी सीएम के गढ़ में सपा-बसपा गठबन्धन ने विजयी पताका लहराई है जिससे आने वाले दिनों का संकेत मिल रहा है कि भाजपा को अब जनता जान चुकी है।
देश के आधे से ज्यादा राज्यों में सत्ता सुख भोग रही और अभी अभी नार्थईस्ट राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत का जश्न मनाते हुए मोदी लहर का ढिढोंरा पीट रही भाजपा के खेमें में ख़ामोशी सी छाई हुई है। कार्यकर्ता और पदाधिकारी कुछ भी बोलने से साफ कतराते रहे और सिर्फ इतना ही कहते रहे कि उपचुनाव की हार जीत से भविष्य का आंकलन नहीं किया जा सकता। भाजपा सरकार सबका साथ सबका विकास के रास्ते पर चल रही है और जनता को पीएम मोदी पर पूरा भरोसा है।
बहरहाल जीत जीत होती है और हार हार होती है. हार तब ज्यादा खलती है जब जीतने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगाना पड़ता है और उपचुनाव में भाजपा के साथ यही हुआ क्योंकि इन चुनावों में भाजपा ने भी अपना सबकुछ दांव पर लगाया था। तभी तो सीएम योगी की इलाहाबाद में दो दो बार कई स्थानों पर जनसभाएं आयोजित की गई थीं। ऐसे में परिणाम निराशाजनक होना भाजपा के लिए जोर का झटका जरूर साबित हुआ है।