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चित्रकूट

मजदूर दिवस: पेट में भूख आंखों में नमी घर पहुंचने की आस कदमों से नाप ली ज़मी

लॉकडाउन ने यदि सबसे अधिक किसी को डाउन किया है तो वो है मजदूर तबका.
बड़े सपनों को अपनी आगोश में पालने वाले ये मजदूर पेट में भूख आंखों में नमी लिए सैकड़ों हजारों किलोमीटर की ज़मी को कदमों से नाप रहे हैं.
 

चित्रकूटMay 01, 2020 / 02:08 pm

आकांक्षा सिंह

मजदूर दिवस: पेट में भूख आंखों में नमी घर पहुंचने की आस कदमों से नाप ली ज़मी

मजदूर दिवस: पेट में भूख आंखों में नमी घर पहुंचने की आस कदमों से नाप ली ज़मी

चित्रकूट: लॉकडाउन ने यदि सबसे अधिक किसी को डाउन किया है तो वो है मजदूर तबका. अपने गांव घर व शहर की गलियों को छोड़ परदेस कमाने गए मेहनतकश अब अपनी उन्ही वादियों में लौटने की जद्दोजहद कर रहे हैं जहां उन्होंने शायद कभी न लौटने की कसम खाई थी. परदेस में ही छोटी गृहस्थी बसाकर बड़े सपनों को अपनी आगोश में पालने वाले ये मजदूर पेट में भूख आंखों में नमी लिए सैकड़ों हजारों किलोमीटर की ज़मी को कदमों से नाप रहे हैं. कोई जत्था हैदराबाद तो कोई मुंबई तो कोइ लखनऊ से विलासपुर के लिए जाता दिखाई दे रहा है. हालांकि अब प्रदेश व केंद्र सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उनकी घर वापसी को लेकर खाका तैयार किया है. परंतु सुदूर राज्यों जनपदों में फंसे मजदूर अपनी इच्छाशक्ति के पुष्पक विमान पर आसीन होकर अपनी मंजिल की ओर निकलते देखे जा रहे हैं.
मेहनतकशों का अपने गांव घर पहुंचने का सिलसिला जारी है. अब भले ही प्रदेश सरकारों व केंद्र ने प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने की योजना तैयार की है लेकिन मेहनतकशों का अपने बलबूते अपने पैतृक निवास स्थानों तक पहुंचने का क्रम जारी है. आए दिन सुदूर राज्यों नगरों महानगरों में काम करने वाले मजदूरों के आवागमन की तस्वीरें सामने आ रही हैं. प्रशासन की कड़ी निगहबानी के चलते ऐसे मजदूरों का स्वास्थ्य परीक्षण कर उनके भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है. बतौर उदाहरण मजदूरों का एक जत्था मुम्बई से साइकिल चलाकर जनपद पहुंचा. जहां उन सभी को मेडिकल परीक्षण के लिए जिला अस्पाल भेजा गया. इन मजदूरों का कहना था उनके पास सब कुछ खत्म हो गया था. तब उन्होंने साइकिल से चलने का फैंसला किया. रास्ते में कुछ खाने पीने आदि की व्यवस्था लोगों द्वारा कर दी जाती थी. वहीं एक जत्था लखनऊ से विलासपुर(छत्तीसगढ़) के लिए साइकिल से निकलता हुआ दिखा. इन मेहनतकशों का दर्द भी यही था कि काम बंद होने से अब उनके सामने रोजी रोटी का संकट उत्पन्न हो गया है. वे सब अपने घर के लिए निकले हैं.

इन मेहनतकशों का सबसे बड़ा दर्द जो है वो है पेट की आग बुझाने को लेकर. ये दर्द बयां करते हुए ये मेहनतकश कहते हैं कि साहब भूख से डर लगता है मेनहत से नहीं. काम बंद होने से दिहाड़ी मजदूरों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. सिर पर गठरी छोटे छोटे मासूमों को लेकर ये मेहनतकश अपनी मंजिल की ओर बढ़ जाते हैं.

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