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जब मंत्री पद लेने से इंकार कर दिया था नानाजी देशमुख ने वजह जानकर चौंक जाएंगे

locationचित्रकूटPublished: Jan 28, 2019 01:49:42 pm

नानाजी का मानना था कि 60 वर्ष की आयु के बाद नेताओं को राजनीति छोड़कर अन्य रचनात्मक कार्य करने चाहिए जिससे उनके अनुभव समाज के काम आएं और राजनीति में युवाओं के प्रवेश का रास्ता भी खुले

nanaji modi

जब मंत्री पद लेने से इंकार कर दिया था नानाजी देशमुख ने वजह जानकर चौंक जाएंगे

चित्रकूट: मरणोपरांत भारत रत्न की उपाधि से सुशोभित किए जाने वाले प्रख्यात समाजसेवी राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख समाजसेवा के क्षेत्र में एक किवंदन्ति बन चुके हैं इसमें कोई संदेह नहीं. जीवन की जलती लौ में खुद को तपा कर समाज की जिंदगी बदल देने वाले नानाजी का राजनीति से सम्बंधित सिद्धान्त यदि देश के राजनेता आत्मसात कर लें तो निश्चित ही राजनीति का स्वरूप बदल जाए. नानाजी का मानना था कि 60 वर्ष की आयु के बाद नेताओं को राजनीति छोड़कर अन्य रचनात्मक कार्य करने चाहिए जिससे उनके अनुभव समाज के काम आएं और राजनीति में युवाओं के प्रवेश का रास्ता भी खुले. लेकिन दुर्भाग्य से नानाजी का यह सिद्धान्त आज तक देश के राजनेताओं ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते नहीं अपनाया और परिणामतः विश्व के सबसे युवा देश में युवाओं का राजनीति से मोहभंग हुआ दिखता है.

मंत्री पद लेने से मना किया

भारतीय जनसंघ की स्थापना में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने नानाजी को संगठन विस्तार के लिए उत्तर प्रदेश भेजा गया. अपनी सांगठनिक क्षमता सिद्ध करते हुए नानाजी ने 1957 तक उत्तर प्रदेश के हर जिले में जनसंघ की इकाइयां स्थापित कर दीं. जनसंघ उत्तरप्रदेश की प्रमुख राजनीतिक शक्ति का केंद्रबिंदु बन गया. नानाजी राम मनोहर लोहिया और दीनदयाल उपाध्याय की कुशल रणनीति से जनसंघ और समाजवादी विचारधारा ने कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी कर दी. उत्तर प्रदेश की पहली गैर कॉंग्रेसी सरकार के गठन में विभिन्न राजनीतिक दलों को एकजुट करने में नानाजी का महत्वपूर्ण योगदान रहा.जेपी आंदोलन के समय जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण के ऊपर पुलिस का लाठीचार्ज हुआ तब नानाजी ने साहस का परिचय देते हुए जयप्रकाश नारायण(जेपी) को सुरक्षित बाहर निकाल लिया. जनता पार्टी के संस्थापकों में नानाजी प्रमुख थे. कांग्रेस को सत्ता से मुक्त कर अस्तित्व में आई जनता पार्टी . आपातकाल हटने के बाद जब चुनाव हुआ तो नानाजी देशमुख यूपी के बलरामपुर से लोकसभा सांसद चुने गए और उन्हें मोरारजी मन्त्रीमण्डल में शामिल होने का न्योता दिया गया लेकिन नानाजी देशमुख ने यह कहकर प्रस्ताव ठुकरा दिया कि 60 वर्ष की उम्र के बाद सांसद राजनीति से दूर रहकर सामाजिक व् सांगठनिक कार्य करें.
राजनीति की चकाचौंध से दूर समाजसेवा को समर्पित किया पूरा जीवन

1960 में लगभग 60 वर्ष की उम्र में नानाजी ने राजनीतिक जीवन से सन्यास लेते हुए सामाजिक जीवन में पदार्पण किया. वे आश्रमों में रहकर सामाजिक कार्य (खासतौर पर गाँवों में) करते रहे परन्तु कभी अपना प्रचार नहीं किया. नानाजी ने दीनदयाल उपाध्याय के निधन के बाद शोकग्रस्त न होते हुए दीनदयाल के दर्शन एकात्म मानववाद को साकार किया तथा दिल्ली में खुद के दम पर दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की. नानाजी ने उत्तर प्रदेश के उस समय के सबसे पिछड़े जिले गोंडा और महाराष्ट्र के बीड में कई सामाजिक कार्य किए.
1999 में नानाजी को पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया. तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुलकलाम भी नानाजी की समाजसेवा के कायल थे. 27 फरवरी सन 2010 को नानाजी ने चित्रकूट में अंतिम सांस ली. नानाजी ने अपने मृत शरीर को मेडिकल शोध हेतु दान करने का वसीयतनामा निधन से काफी पहले 1997 में ही लिखकर दे दिया था. निधन के बाद नानाजी का शव अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को सौंप दिया गया.
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