जनपद की तीन नगर निकायों (कर्वी नगर पालिका व मानिकपुर तथा राजापुर नगर पंचायत) में अध्यक्ष पद को लेकर मुकाबले का शंखनाद हो चुका है। हर गली मोहल्लों चौराहों पर अपने कट्टर समर्थकों के साथ उम्मीदवार मतदाताओं के सामने खुद को उनका सच्चा हितैषी बताते हुए हर समस्या के समाधान के रूप में स्वयं को प्रदर्शित कर रहे हैं। वादों की झड़ी है सो अलग। इस बीच मतदाताओं की संख्या भी चुनाव में हार जीत के फ़ैक्टर पर असर डालेगी यह भी स्पष्ट हो गया है। तीनों नगर निकायों में मानिकपुर नगर पंचायत में जहाँ मतदाताओं की संख्या में इजाफ़ा हुआ है वहीं कर्वी नगर पालिका तथा राजापुर नगर पंचायत में यह संख्या जीडीपी की तरह कुछ कम हो गई है।
कहीं घटे तो कहीं बढ़ गए मतदाता तीनों नगर निकायों में घटे बढ़े मतदाता पूर्व में किस्मत आजमा चुके प्रत्याशियों के भाग्य पर सकारात्मक व् नकारात्मक असर डाल सकते हैं। सबसे अधिक मतदाताओं की कटौती कर्वी नगर पालिका में हुई है. यहां साढ़े 8 हजार से अधिक मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए हैं. इन सभी नामों में अधिकांश ग्रामीण क्षेत्र से जुड़े हुए थे इसलिए इनके नाम काट दिए गए. वर्ष 2012 की अपेक्षा कर्वी नगर पालिका में 8 हजार 579 मतदाताओं की कमी आई है. मतदाताओं की यह घटी हुई संख्या प्रत्याशियों की गुणा गणित पर असर जरूर डालेगी ऐसा सियासी पंडितों का भी विश्लेषण है. वर्ष 2012 में कर्वी नगर पालिका में 53 हजार 754 मतदाता थे जो इस बार 2017 में घटकर 45 हजार 175 हो गए. राजापुर नगर पंचायत में भी उम्मीदवारों की किस्मत के बाजीगरों की संख्या में कटौती हुई है, वर्ष 2012 में यहां 11 हजार 574 मतदाता थे जो इस वर्ष 10 हजार 760 की संख्या में हैं यानी 814 मतदाता कम हो गए. इसके सापेक्ष मानिकपुर नगर पंचायत में जरूर बढ़ोत्तरी हुई है मतदाताओं की संख्या में. वर्ष 2012 में 12 हजार 231 के सापेक्ष इस वर्ष 13 हजार 348 मतदाता हैं इस नगर पंचायत में, यानी 1117 मतदाता बढ़ गए मानिकपुर नगर पंचायत में. अधिकांश वोटर ग्रामीण क्षेत्र के जुड़े होने के कारण सूची से हटाए गए हैं।
पार्टियों को चिंता मतदाताओं की घटती बढ़ती संख्या से पार्टियों की चिंताएं भी कहीं न कहीं बढ़ गई हैं. हार जीत में तो वैसे भी एक एक वोट का महत्व होता है. कई प्रत्याशी ऐसे हैं जो पिछले चुनाव में भी भाग्य आजमा चुके हैं सपा बसपा कांग्रेस व् भाजपा से. इस बार इन उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर देने के लिए कई दमदार निर्दलीय प्रत्याशी भी मैदान में हैं. मतदाताओं की संख्या और वोट प्रतिशत का रुझान काफी कुछ प्रत्याशियों का भाग्य निर्धारित करता है. सेंधमारी करने के लिए अपने कुछ भितरघातियों की रणनीति से भी सभी प्रमुख दलों झटका मिलने की पूर्ण सम्भावना है।