“पितृ पक्ष” अपने पूर्वजों पितरों के प्रति श्रद्धा भक्ति रखते हुए उनका
श्राद्ध कर्म करना व अपनी की हुई गलतियों भूल चूक उनसे क्षमा करने की याचना करने का महत्वपूर्ण अवसर। जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति पाने का सटीक समय और उपाय है पितृ पक्ष में पूर्वजों के प्रति श्रद्धा उनकी पूजा। यमस्मृति, श्राद्धप्रकाश के अनुसार “आयुः पुत्रान यशः स्वर्ग कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम। पशुन सौख्यं धनं धान्यं प्रापृयत पितृपूजनात। अर्थात यमराजजी का कहना है कि श्राद्ध से बढ़कर कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है। शास्त्रों में लिखा भी है की वंश वृद्धि संतान सुख व अन्य सभी सुख शान्ति के लिए पितरों की आराधना ही एकमात्र उपाय है। श्राद्ध कर्म से मनुष्य की आयु बढ़ती है, पितृगण यदि प्रसन्न हैं तो मनुष्य को संतान सुख प्रदान करते हुए वंश की वृद्धि करते हैं।
जाने श्राद्ध के महत्व को “श्रद्धया दीयते यत तत श्राद्धम” अर्थात श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। श्राद्धकर्म पितृऋण चुकाने का सरल व् सहज माध्यम है। श्राद्ध न करने से होने वाली हानियों का जो वर्णन शास्त्रों में किया गया है। चित्रकूट के रामघाट स्थित प्रसिद्द भरत मंदिर के महंत ,महंत दिव्य जीवनदास बताते हैं की ऐसी पौराणिक मान्यता है कि स्वयं भगवान राम ने चित्रकूट में वनवासकाल के दौरान अपने पिता दशरथ का विधि विधान से श्राद्ध कर्म किया था तो साधारण मनुष्य को तो यह पवित्र कर्मकांड जरूर करना चाहिए। पूर्वजों के प्रसन्न होने से हर क्षेत्र में व्यक्ति को विजय निश्चित मिलती है उसका जीवन सुखमय बनता है। श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाले परिवार में कोई क्लेश नहीं रहता और पितर उस परिवार पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं। पितरगण स्वास्थ्य बल धन धान्य आदि सभी प्रकार के सुख व् मोक्ष प्रदान करते हैं।
श्राद्धकर्म और पितरों का संबंध पितृ पक्ष में पितरों को यह आशा रहती है कि हमारे वंशज पुत्र पौत्र आदि हमें अन्न जल से संतुष्ट करेंगे और इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। महंत दिव्य जीवनदास के अनुसार जो लोग “पितर हैं ही कहाँ ” यह मानकर उचित तिथि पर कर्मकांड श्राद्ध नहीं करते ऐसे लोगों को उनके पितर दुखी व् निराश होकर शाप देकर अपने लोक वापस लौट जाते हैं और उनकी कुदृष्टि से ही परिवार व् व्यक्ति के जीवन में विभिन्न प्रकार की सांसारिक समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। मार्कण्डेय पुराण में बताया गया है कि जिस कुल में श्राद्ध नहीं होता उस कुल में दीर्घायु निरोग व् वीर संतान जन्म नहीं लेती और परिवार में कभी सुख शान्ति नहीं रह पाती।
पितरों को कैसे मिलती हैं श्राद्ध की वस्तुएं आज के आधुनिक परिवेश में इन आदिकालीन कर्मकांडों को लेकर प्रश्न भी उठाए जाते हैं कि मौत के बाद किसी को श्राद्ध में समर्पित वस्तुएं कैसे मिलेंगी या मिलती हैं आदि ?. इन प्रश्नों का उत्तर विभिन्न पौराणिक ग्रंथों शास्त्रों आदि में विस्तार पूर्वक वर्णित किया गया है। गरुण पुराण के अनुसार कर्मों की भिन्नता उनके फल के कारण मनुष्य मौत के बाद भिन्न भिन्न अवस्थाओं को प्राप्त होता है। कोई देवता ,कोई पितर तो कोई मनुष्य प्रेत योनि को मौत के बाद प्राप्त हो जाता है। इन सभी की मुक्ति के लिए पिंडदान किया जाता है। स्कन्द पुराण के अनुसार पितरों और देवताओं की योनि ऐसी है कि वे दूर से ही कोई भी पूजा ग्रहण कर लेते हैं ,अपनी स्तुति से प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए देवता और पितर गंध व् रस तत्व से तृप्त होते हैं। प्रसन्न होकर वे अपने कुल को आशीर्वाद और वर प्रदान करते हैं।
कैसे करें श्राद्ध व तर्पण शास्त्रों में पिंडदान श्राद्ध करने के विस्तृत तरीके बताए गए हैं। ब्रम्हपुराण में बताया गया है कि धन के अभाव आर्थिक संकट से जूझते व्यक्ति के पास यदि विधिपूर्वक श्राद्ध करने का सामर्थ्य नहीं है तो श्रद्धापूर्वक केवल शाक से भी श्राद्ध किया जा सकता है यदि यह भी नहीं हो सकता तो अपनी दोनों भुजाओं को उठाकर अपने पितरों से क्षमा मांगते हुए उनसे श्रद्धापूर्वक प्रणाम करना चाहिए और अपने संकटों को दूर करने की विनती करनी चाहिए ,ऐसा भक्तिभाव पितरों को प्रसन्न करता है। महंत दिव्य जीवनदास के अनुसार जो लोग श्राद्ध बरसी मासिक अमावस्या पर दान आदि करते हैं उनसे उनके पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। पुरखों के लिए ग्रास(भोजन का अंश) निकालते समय उनका भक्तिभाव से आह्वाहन करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार पूर्वजों व् पुरखों के सूक्ष्म देह कौओं के रूप में ग्रास ग्रहण करने पहुंचते हैं। यदि ग्रास बच जाए तो उसे घर में नहीं रखना चाहिए ,बचे हुए भोजन को नदी तालाब आदि में विसर्जित कर देना चाहिए। तर्पण दक्षिण दिशा की ओर मुख करते हुए करना चाहिए। पूर्वजों के नाम पर गरीबों असहायों को दान भोजन कराना पितृ पक्ष में महत्वपूर्ण माना गया है।