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सियासत की गर्मी में सूख गया बुन्देलखण्ड प्यासी धरती पूछे मेरा मसीहा कौन

locationचित्रकूटPublished: Apr 24, 2019 01:26:21 pm

बुन्देलखण्ड की प्यासी धरती पर फिर एक बार सियासत के रहनुमाओं का तूफानी दौरा जारी है. सभी प्रमुख राजनैतिक दलों के दिग्गज बुन्देलखण्ड को हसीन सपने दिखाने के लिए पूरे तन मन से उतावले हैं. 25 अप्रैल को पीएम नरेंद्र मोदी भी उन्ही सपनों में पंख लगाने एक बार फिर बुन्देलखण्ड की सरजमीं पर अपने उड़नखटोले से उतरेंगे लेकिन इन सबके बीच यहां की प्यासी धरती चीख चीख कर पूछ रही है मेरा मसीहा कौन?

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सियासत की गर्मी में सूख गया बुन्देलखण्ड प्यासी धरती पूछे मेरा मसीहा कौन

चित्रकूट: बुन्देलखण्ड की प्यासी धरती पर फिर एक बार सियासत के रहनुमाओं का तूफानी दौरा जारी है. सभी प्रमुख राजनैतिक दलों के दिग्गज बुन्देलखण्ड को हसीन सपने दिखाने के लिए पूरे तन मन से उतावले हैं. 25 अप्रैल को पीएम नरेंद्र मोदी भी उन्ही सपनों में पंख लगाने एक बार फिर बुन्देलखण्ड की सरजमीं पर अपने उड़नखटोले से उतरेंगे लेकिन इन सबके बीच यहां की प्यासी धरती चीख चीख कर पूछ रही है मेरा मसीहा कौन? कौन बुन्देलखण्ड की प्यास बुझाएगा? करोड़ों अरबों का बजट पेयजल योजनाएं फिर भी प्यासा है बुन्देलखण्ड.
एक तरफ सियासत दूसरी तरफ प्यासी धरती


एक तरफ सियासत का पारा अपने पूरे शबाब पर है तो दूसरी तरफ आसमानी तपिश ने बुन्देलखण्ड की धरती को प्यास से तड़पने पर मजबूर कर दिया है. अप्रैल की रवानगी की बेला आते आते पेयजल संकट का रौद्र रूप नजर आने लगा है. बतौर उदाहरण चित्रकूटधाम मंडल के चित्रकूट, बांदा, महोबा, व हमीरपुर जनपद के कई ग्रामीण कस्बाई इलाके इस संकट से जूझ रहे हैं. कई इलाकों में तो ग्रामीणों ने पेयजल संकट को लेकर मतदान बहिष्कार की चेतावनी तक दे डाली है.

करोड़ों अरबों का बजट फिर भी न बुझी प्यास

पेयजल संकट दूर करने केंद्र व प्रदेश में सत्तासीन रहने वाली सरकारों ने आजादी के बाद से अब तक अरबों करोड़ों का बजट स्वीकृत किया लेकिन बुन्देलखण्ड की प्यास न बुझी. सिस्टम व सियासत की उदासीनता और करप्शन ने पेयजल योजनाओं में जमकर सेंधमारी की. बतौर उदाहरण 70 के दशक में एशिया की सबसे बड़ी पाठा जलकल योजना शुरू की गई थी परंतु वो भी धड़ाम हो गई और परिणामतः पाठा में सबसे भीषण पेयजल संकट आज के दौर में है. इसी तरह राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना के तहत चित्रकूट के बरगढ़ क्षेत्र में लगभग 60 करोड़ की लागत से बरगढ़ ग्राम समूह पेयजल योजना शुरू की गई थी सन 2011 में जिसे 2015 तक पूरा हो जाना था लेकिन वही सिस्टम की उदासीनता कि आज तक इलाके की लगभग 50 हजार आबादी की प्यास बुझ नहीं पाई है. कनेक्शन हुए तो पाइपलाइन में पानी नहीं. जहां कुछ खराबी हुई तो उसकी मरम्मत नहीं.

सिंचाई की समस्या सो अलग


पानी की मार सिर्फ सूखे कंठ तक ही सीमित नहीं बल्कि किसानों को भी सहनी पड़ रही है. मंडल के कई दर्जन गांव सिंचाई की समस्या से पिछले कई दशकों से जूझ रहे हैं. बतौर उदाहरण 70 के दशक में महोबा की प्यास बुझाने व सिंचाई के लिए अर्जुन सहायक सिंचाई परियोजना की परिकल्पना की गई थी लेकिन ये परिकल्पना ठंडे बस्ते में चली गई. किसी तरह इस योजना को कब्र से निकाला गया और सन 2009 में वित्तीय स्वीकृति प्रदान हुई जिसके बाद इस पर काम चालू हुआ लेकिन नुमाईंदों की उदासीनता के चलते परियोजना अभी तक अधर में लटकी है. ये कभी मुद्दा भी न बन पाई. इसी तरह हमीरपुर का मौदहा बांध भी उदासीनता की भेंट चढ़ गया.

अवैध खनन से नदियों का अस्तित्व संकट में


इन सबके इतर बुन्देलखण्ड की एक और समस्या नासूर बन चुकी है और वो है अवैध खनन. इलाके की प्रमुख केन मंदाकिनी यमुना नदियों में खनन माफिया बेखौफ़ होकर अवैध खनन के काले कारोबार को अंजाम देते हैं लेकिन किसी भी सरकार में इन्हें रोकने वाला कोई नहीं. आज हालात ये हैं कि केन मंदाकिनी जैसी जीवनदायिनी नदियां कई जगहों पर अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही हैं. कई जगहों से नदियों की धाराओं को मोड़ दिया गया है. बीच धारा में पोकलैंड मशीनों से खनन बदस्तूर जारी है परंतु इस पर लगाम न लगना पूरी व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करती है.
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