पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुन पर रामलीला का मंचन
आज के आधुनिक युग में जहां डीजे व बड़े बड़े साउंड सिस्टम का बोलबाला है वहीं धर्मनगरी में आयोजित होने वाली रामलीलाओं के मंचन में अभी भी पारंपरिक वाद्ययंत्रों(ढोल मजीरा हारमोनियम तबला आदि) की धुन और थाप पर कलाकार खुद संवाद अदायगी करते हैं जो काफी मुश्किल माना जाता है। बैकग्राउंड के साउंड की अपेक्षा खुद को रामलीला के पात्र में ढालते हुए भाव भंगिमा के साथ संवाद अदा करने में कलाकारों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है ताकि दर्शकों का सामन्जस्य व रोमांच बना रहे। ऐसी रामलीलाओं में शुद्ध भारतीय रामलीला मंचन की खुशबु आती है।
कायम है रामलीला का आकर्षण
टीवी पर कई मनोरंजक कार्यक्रमों के प्रसारण के बावजूद भी श्री राम की तपोभूमि में रामलीला का आकर्षण कायम है। बड़ी संख्या में हर उम्र वर्ग के दर्शक रामलीला के सजीव मंचन का आनंद लेने के लिए उमड़ते हैं। अभी भी चित्रकूट में रामलीला को सिर्फ भक्तिभाव से ही नहीं बल्कि पूरी श्रद्धा के साथ इसलिए देखा जाता है क्यों इस तपोभूमि पर श्री राम ने अपने वनवास काल के साढ़े 11 वर्ष बिताए थे। रामलीला चित्रकूट की आत्मा में रचती बसती है।