उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर देश के विभिन्न भागों में भी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा हर साल धूमधाम से निकाली जाती है. इस दौरान आस्था के सागर में गोता लगाते आस्थावान रथ को खींचने के लिए उत्सुक रहते हैं और भगवान जगन्नाथ के जयघोष से वातावरण भक्तिमय हो जाता है. लेकिन इस साल पुरी के अलावा देश व प्रदेश के अन्य हिस्सों में होने वाली ये यात्रा कोरोना की काली छाया में स्थगित कर दी गई है. कुछ ऐसी ही सैकड़ों सालों की परंपरा टूटी भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट में जहां करीब तीन सौ साल पुरानी रथ यात्रा इस बार नहीं निकाली जा रही. इतनी पुरानी परंपरा टूटने से भक्तों में निराशा का माहौल है. हालांकि मंदिर परिसर में भगवान के रथ को भक्तों के दर्शनार्थ रखा गया है. वैदिक मंत्रोच्चारों के बीच हर साल यह यात्रा जयदेव दास अखाडा परिसर से निकाली जाती है. इस बार यात्रा स्थगित होने पर अखाड़े के महंत रामशरण दास का कहना है कि इतनी पुरानी परंपरा टूटने से निराशा हुई है. वहीं स्थानीय लोगों ने कहा कि उम्मीद थी कि पूरी की रथ यात्रा को सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिलने के बाद यहां भी प्रशासन यात्रा निकालने की अनुमति देगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ जिससे उन्हें निराशा है. हालांकि मंदिर परिसर में भगवान के दर्शन उनके रथ समेत किए जा सकेंगे.
रथ यात्रा का पौराणिक महत्व
उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी की तरह पूरे देश में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बालभद्र(बलराम) व् बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण पर निकले हैं. नौ दिनों तक चलने वाली इस यात्रा में श्रद्धालुओं का हुजूम उड़ीसा सहित देश के अन्य भागों में उमड़ता है. ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ का रथ खींचने से व्यक्ति को सीधे परम् धाम की प्राप्ति होती है. पौराणिक मान्यताओं में इस यात्रा का महत्व बताया गया है. स्कन्द पुराण में रथ यात्रा के महत्व को बताते हुए उल्लेखित किया गया है कि जो भी भगवान जगन्नाथ की आराधना करता है उनके रथ को खींचता है वो भगवान विष्णु के परम धाम को प्राप्त होता है.
भगवान विष्णु के अवतारी रूप हैं भगवान जगन्नाथ भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं व् किवदंतियां प्रचलित है. हिन्दू धर्म में देवी देवताओं ईश्वरीय अवतारों के विभिन्न प्रचलित रूपों की आराधना पूजा करने का नियम विधि विधान बताया गया है. भगवान जगन्नाथ भी उन्ही रूपों में से एक हैं. भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारी रूपों में भगवान जगन्नाथ को श्री कृष्ण का ही एक रूप माना जाता है.