दहशत की इबारत लिखने वाला खूंखार डकैत बबुली कोल कई बार पुलिस मुठभेड़ के दौरान साफ बच निकला, यहां तक कि पुलिस के मुताबिक पिछले वर्ष( 2017) 24 अगस्त को मुठभेड़ में बबुली घायल भी हो गया था लेकिन खाकी की आंखों से ओझल हो गया। उसके बाद से कई मुठभेड़ें (पुलिस के मुताबिक) हुईं और खाद्य सामग्री हथियार और गैंग के हार्डकोर मेंबर पकड़े भी गए लेकिन बबुली की लंगोटी भी खाकी की पकड़ में न आ सकी। यहां तक कि यूपी एमपी की पुलिस ने संयुक्त बैठकें कर गैंग के खिलाफ हुंकार भरी लेकिन उसका भी कोई ठोस कदम उठता नहीं दिख रहा।
एसटीएफ क्यों है इस मिशन से दूर बीहड़ की फिजाओं में बबुली कोल के खिलाफ जो मिशन चल रहा है वो कई मायनों में मिशन है भी और नहीं भी। मतलब यह कि उक्त डकैत के खात्में को लेकर सबसे विश्वसनीय फ़ोर्स एसटीएफ बिल्कुल दूर रखी गई है यह समझ से परे है और बबुली के अलावा दूसरे खूंखार डकैत डेढ़ लाख के इनामी गौरी यादव को दस्यु उन्मूलन मिशन में ठोस तरीके से शामिल नहीं किया गया यह भी रहस्य बन गया है। एसटीएफ के पुराने मुखबिरों के मुताबिक एसटीएफ और पुलिस के बीच तालमेल ही नहीं बैठ रहा जिसे लेकर बीहड़ में एक वृहद स्तर पर ऑपरेशन नहीं चल पा रहा है। एसटीएफ का काम करने का अंदाज दूसरा है इसलिए कहीं न कहीं पुलिस को यह बात पच नहीं रही कि सारा श्रेय एसटीएफ ले जाए। दूसरी तरफ बीहड़ के सूत्रों के मुताबिक बबुली को सही तरीके से ट्रेस ही नहीं किया जा रहा अन्यथा इतनी मुठभेड़ों के बाद उसे दबोचना कोई मुश्किल काम नहीं था। सूत्रों के मुताबिक एसटीएफ ने उच्चाधिकारियों को भी इस मिशन को लेकर अपनी दूरियों के कारण से अवगत कराया है।
आ गया गैंग के खात्मे का मौसम उधर बीहड़ में अब फिजाएं बदलने लगी हैं। घने जंगल पतझड़ की मार झेलते हुए वीरान होने लगे हैं। जिन जंगलों में बारिश के मौसम में कुछ दूर दिखना भी मुश्किल हो जाता है उन बियावान जंगलों में अप्रैल से लेकर जून तक खाकी को काफी आसानी होती है विचरण करने में। डकैतों को भी मुश्किल होती है पुलिस की निगाह से बचने में और पानी की तलाश में गैंग अक्सर बीहड़ों से निकलकर ग्रामीण क्षेत्रों और पानी के स्रोतों की ओर पनाह लेते हैं जिससे सटीक मुखबिरी के द्वारा डकैतों को ट्रेस किया जा सकता है। इन सबके बावजूद आने वाले दिनों में खाकी कितनी संजीदा होती है और अभियान किस स्तर पर चलता है यह देखने वाली बात होगी परंतु इतना तो तय है कि बबुली कोल यूं ही नहीं बचता चला जा रहा है।