script

बदल दी भारत के कई गांवों की तस्वीर, ऐसे समाजसेवी थे नानाजी देशमुख

locationचित्रकूटPublished: Oct 05, 2017 06:46:59 pm

Submitted by:

Mahendra Pratap

महाराष्ट्र के एक समाजसेवी नानाजी देशमुख ने भारत के कई गांवों की तस्वीर बदल दी।

 Nanaji Deshmukh

चित्रकूट. “मैं अपने लिए नहीं अपनों के लिए हूं” इस ध्येय वाक्य पर चलते हुए महाराष्ट्र के एक समाजसेवी ने भारत के उन कई गांवों की तस्वीर बदल दी। यदि वे महान विभूति न होते तो शायद आज भी विकास की लहर कोसों दूर होती। त्याग, तपस्या, परिश्रम, करुणा, भेदभाव से रहित दबे पिछड़े लोगों के विकास को प्रतिबद्ध इस महान सामाजिक निर्माता की दूर दृष्टि सोच ने विकास को एक नया आयाम दिया। ऐसे थे प्रख्यात समाजसेवी नानाजी देशमुख। इस वर्ष समाज के इस महान शख्सियत का जन्म शताब्दी वर्ष शरद पूर्णिमा 5 अक्टूबर 2017 से मनाया जा रहा है। नानाजी ने वैसे तो पूरे भारत के कई राज्यों में गांवो की तकदीर व तस्वीर बदल दी लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि का केंद्र बनाया भगवान राम की तपोस्थली चित्रकूट को। नानाजी का मानना था कि जब अपने वनवासकाल के प्रवास के दौरान भगवान राम चित्रकूट में आदिवासियों तथा दलितों के उत्थान का कार्य कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं, अतः नानाजी चित्रकूट में ही जब पहली बार 1989 में आए तो यहीं बस गए और बदल डाली गांवों की तस्वीर।

प्रख्यात समाजसेवी नानाजी देशमुख का जन्म महाराष्ट्र के परभणी जिले में 11 अक्टूबर सन 1916 को एक ब्राम्हण परिवार में हुआ था। बाल्यकाल से किशोरावस्था के रथ पर सवार होने तक उनके मन में भारत के गांवों की दुर्दशा की चिंता अपना आशियाना बना चुकी थी जिसको लेकर नानाजी प्रायः फिक्रमन्द रहने लगे। चूंकि नानाजी का बचपन काफी अभावों में बीता था इसलिए उनके अंदर दबे पिछड़े गरीब लोगों के प्रति दया का सागर हिलोरें मारता। शिक्षा प्राप्त करने के लिए नानाजी ने सब्जी बेंचकर पैसे जुटाए।

आरएसएस से किया सम्पर्क

आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से नानाजी के पारिवारिक सम्बन्ध थे। नानाजी की उभरती सामाजिक प्रतिभा को पहचानते हुए हेडगेवार ने उन्हें संघ की शाखा में आने के लिए कहा। सन 1940 में हेडगेवार के निधन के बाद आरएसएस को खड़ा करने की ज़िम्मेदारी नानाजी पर आ गई और इस संघर्ष को अपने जीवन का मूल उद्देश्य बनाते हुए नानाजी ने अपना पूरा जीवन आरएसएस के नाम कर दिया। उन्होंने महाराष्ट्र सहित देश के विभिन राज्यों में घूम घूम कर युवाओं को आरएसएस से जुड़ने के लिए प्रेरित किया तथा इस कार्य में वे काफी हद तक सफल भी हुए। आरएसएस प्रचारक के रूप में पहली बार आगरा प्रवास पर आए नानाजी देशमुख की मुलाकात पण्डित दीनदयाल उपाध्याय से हुई। आगरा के बाद नानाजी गोरखपुर गए और वहां दिनरात मेहनत करते हुए आरएसएस की शाखाएं खड़ी कीं। यहां तक कि नानाजी को गोरखपुर में ठहरने हेतु ( संघ के पास उस समय संगठन संचालन के लिए पर्याप्त धन नहीं था) आश्रम संचालक बाबा राघवदास के लिए भोजन तक बनाना पड़ा। आज देश भर में शिक्षा के केंद्र बिंदु में समाहित सरस्वती शिशु मन्दिर नामक शिक्षण संस्था की स्थापना नानाजी ने सर्वप्रथम गोरखपुर में ही की थी। 1947 में आरएसएस ने पाञ्चजन्य नामक दो साप्ताहिक व स्वदेश हिंदी समाचार पत्र निकालने की शुरुआत की। अटल बिहारी बाजपेयी को सम्पादन दीनदयाल उपाध्याय को मार्गदर्शन और नानाजी को प्रबंध निदेशक की जिम्मेदारी सौंपी गई। 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया फिर भी भूमिगत होकर इन पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन कार्य जारी रहा।

राजनीतिक जीवन

आरएसएस से प्रतिबंध हटने के बाद भारतीय जनसंघ की स्थापना का निर्णय हुआ जिसके विस्तार के लिए नानाजी को उत्तर प्रदेश भेजा गया। अपनी सांगठनिक कौशल की मिसाल कायम करते हुए नानाजी ने 1957 तक उत्तर प्रदेश के हर जिले में जनसंघ की इकाइयां स्थापित कर दीं। जनसंघ उत्तरप्रदेश की प्रमुख राजनीतिक शक्ति का केंद्र बिंदु बन गया। नानाजी ने राम मनोहर लोहिया की मुलाकात दीनदयाल उपाध्याय से करवाई जिसके बाद जनसंघ और समाजवादी विचारधारा ने कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी कर दी। उत्तर प्रदेश की पहली गैर कांग्रेसी सरकार के गठन में विभिन्न राजनीतिक दलों को एकजुट करने में नानाजी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। जेपी आंदोलन के समय जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण के ऊपर पुलिस का लाठीचार्ज हुआ तब नानाजी ने साहस का परिचय देते हुए जयप्रकाश नारायण(जेपी) को सुरक्षित बाहर निकाल लिया। जनता पार्टी के संस्थापकों में नानाजी प्रमुख थे। कांग्रेस को सत्ता से मुक्त कर अस्तित्व में आई जनता पार्टी। आपातकाल हटने के बाद जब चुनाव हुआ तो नानाजी देशमुख यूपी के बलरामपुर से लोकसभा सांसद चुने गए और उन्हें मोरारजी मन्त्री मण्डल में शामिल होने का न्योता दिया गया लेकिन नानाजी देशमुख ने यह कहकर प्रस्ताव ठुकरा दिया कि 60 वर्ष की उम्र के बाद सांसद राजनीति से दूर रहकर सामाजिक व सांगठनिक कार्य करें।

सामाजिक जीवन

1960 में लगभग 60 वर्ष की उम्र में नानाजी ने राजनीतिक जीवन से सन्यास लेते हुए सामाजिक जीवन में पदार्पण किया। वे आश्रमों में रहकर सामाजिक कार्य (खासतौर पर गांवों में) करते रहे परन्तु कभी अपना प्रचार नहीं किया। नानाजी ने दीनदयाल उपाध्याय के निधन के बाद शोक ग्रस्त न होते हुए दीनदयाल के दर्शन एकात्म मानववाद को साकार किया तथा दिल्ली में खुद के दम पर दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की। नानाजी ने उत्तर प्रदेश के उस समय के सबसे पिछड़े जिले गोंडा और महाराष्ट्र के बीड में कई सामाजिक कार्य किए। नानाजी द्वारा चलाई गई परियोजना का उद्देश्य था हर हांथ को काम और हर खेत को पानी।

चित्रकूट से लगाव

1989 में भारत भ्रमण के दौरान नानाजी पहली बार भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट आए और अंतिम रूप से यहीं बस गए। अशिक्षा पानी व् दस्यु समस्या से जूझते चित्रकूट की दुर्दशा देख नानाजी द्रवित हो उठे और उन्होंने चित्रकूट के गांवों की दशा व दिशा बदलने का निश्चय किया। चित्रकूट के सुरम्य प्राकृतिक वातावरण को नानाजी ने अपने सामाजिक कार्य का केंद्र बनाकर समाज के गरीब व्यक्तियों की सेवा शुरू की। नानाजी को जानने वाले लोग बताते हैं कि नानाजी कहा करते थे कि उन्हें राजा राम से अधिक प्रिय वनवासी राम लगते हैं क्योंकि वनवासी राम से समाजसेवा की प्रेरणा मिलती है। ग्रामीण परिवेश के छात्रों के उचित शिक्षा व्यवस्था के लिए नानाजी देश मुख ने चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की। इसके आलावा चित्रकूट के जंगलों में पाई जाने वाली जड़ीबूटियों की उपयोगिता जन जन तक पहुंचाने के लिए नानाजी द्वारा आरोग्यधाम की स्थापना की गई जहां विभिन आयुर्वेदिक चिकित्सा व औषधियों का निर्माण होता है। कोल आदिवासी बाहुल्य चित्रकूट के बीहड़ में बसे गाँवों में नानाजी ने शिक्षा के कई प्रकल्प चलाए और कई गांवों में शिक्षा की अलख जगाई यही नहीं जनजातीय बच्चों को भी नानाजी के प्रकल्पों के माध्यम से शिक्षित व आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है। लघु व कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए नानाजी ने ग्रामीण परिवेश के कई छोटे मोटे कार्यों को पहचान दिलाई जिससे लोग आत्मनिर्भर तथा स्वावलम्बी बन सकें। सन 2010 में 27 फरवरी को इस महान आत्मा का इस मृत्युलोक से प्रस्थान हुआ।

प्रशंसा और सम्मान भी छोटे

1999 में नानाजी को पदविभूषण से सम्मानित किया गया। तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुलकलाम भी नानाजी की समाजसेवा के कायल थे। 27 फरवरी सन 2010 को नानाजी ने चित्रकूट में अंतिम सांस ली। नानाजी ने अपने मृत शरीर को मेडिकल शोध हेतु दान करने का वसीयतनामा निधन से काफी पहले 1997 में ही लिखकर दे दिया था। निधन के बाद नानाजी का शव अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को सौंप दिया गया।

ट्रेंडिंग वीडियो