वन विहीन हो रहा बुंदेलखंड, करोड़ों रुपए हुए खर्च फिर भी नहीं आई हरियाली
प्राकृतिक सम्पदा की चादर ओढ़े बुंदेलखंड में वन सम्पदा नष्ट होने के कगार पर है।

चित्रकूट। प्राकृतिक सम्पदा की चादर ओढ़े बुंदेलखंड में वन सम्पदा नष्ट होने के कगार पर है। पौधा रोपड़ पर कुल्हाड़ी का वार भारी पड़ रहा है तो वहीं वन माफिया जंगल को दीमक की तरह खोखला कर रहे हैं। इधर शासन प्रशासन द्वारा करोङों रुपये पौधारोपण के लिए खर्च करने के बाद भी बुंदेलखंड में हरियाली नहीं आ पाई। अलबत्ता पिछले पांच वर्षों में हजारों भारी भरकम पेड़ों को वन विभाग ने खुद कटवा दिया विकास के नाम पर। राष्ट्रीय वन नीति के मुताबिक़ हर जनपद में कम से कम 33 प्रतिशत वन क्षेत्र होना चाहिए लेकिन बुन्देलखण्ड में इस मानक के विपरीत मात्र 7 प्रतिशत ही वन क्षेत्र बचा है। बात अगर बुन्देलखण्ड के चित्रकूट धाम मण्डल की की जाए तो यहां सबसे खराब हालात बांदा की है जहां एक प्रतिशत से कुछ अधिक वन क्षेत्र हैं जबकि इस मण्डल में चित्रकूट की स्थिति कुछ बेहतर है जहां 21 प्रतिशत वन क्षेत्र हैं। अगर यही हाल रहा तो बुन्देलखण्ड को पूरी तरह वन विहीन होने से कोई नहीं रोक सकता। तब तक जब तक की व्यवस्था सही तरीके से लागू तथा पौधों व पेड़ों और जंगलों की देखभाल नहीं की जाएगी और वन माफियाओं पर अंकुश नहीं लगाया जाएगा।
बुन्देलखण्ड में पौधारोपण को लेकर कई सरकारों (केंद्र व प्रदेश) ने पानी की तरह पैसा बहाया लेकिन हरियाली बुन्देलखण्ड से रूठ सी गई है। भ्रष्टाचार व लापरवाही की भेंट चढ़ी पौधारोपण योजनाएं मात्र कागजों में सिमट कर रह गईं। नतीजतन हर वर्ष लगाए गए हजारों लाखों पौधों में दो तीन फीसदी ही पूरी तरह से विकसित हो पाते हैं। लकड़ी कटान व आग जंगल को बर्बाद कर रही हैं। अर्थ एवं सांख्यिकी विभाग के मुताबिक़ पिछले पांच वर्षों में बुन्देलखण्ड में पौधारोपण में करोङों खर्च हो गए परन्तु स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। विभाग द्वारा प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक़, चित्रकूट में 2533.85 लाख रु खर्च कर 43.77 लाख पौधे रोपे गए जबकि बांदा में 2533.85 लाख खर्च कर 37.84 लाख पौधे , महोबा में 2533.85 लाख खर्च कर 43.77 लाख पौधे और हमीरपुर में 2533.85 लाख खर्च कर 16.73 लाख पौधे तो वहीं झांसी तथा जालौन में क्रमश 5496.9 लाख खर्च कर 45.00 लाख पौधे व 4396.96 लाख खर्च कर 98.65 लाख पौधे रोपे गए।
ये आंकड़े देखने में भले ही भारी भरकम लगते हों लेकिन असल तस्वीर कुछ और ही है। पिछले पांच सालों में विकास के नाम पर खुद वन विभाग ने 6565 भारी भरकम पेंड काटने की अनुमति दी है जिनमें चित्रकूट में 246 बांदा में 1108 महोबा में 533 झांसी में 862 ललितपुर में 1062 व् जालौन में 2745 पेंड शामिल हैं। राष्ट्रीय वन नीति के मुताबिक पूरे बुन्देलखण्ड में चित्रकूट में सबसे ज्यादा 21 प्रतिशत वन क्षेत्र है जबकि बांदा में सिर्फ एक प्रतिशत और झांसी ,महोबा हमीरपुर ललितपुर व् जालौन में भी वन क्षेत्र काफी कम हैं। दिनोदिन कटते जंगल व् सरकारी महकमें की लापरवाही प्राकृतिक सम्पदाओं के दोहन पर तुली है जिनपर अगर गम्भीरता से विचार नहीं किया गया तो वो दिन दूर नहीं जब इन जंगलों में निवास करने वाले जंगली जानवर शहरी क्षेत्रों में अपना ठिकाना बनाएंगे और हम अपनी कमियों को नजरअंदाज करते हुए उन्हें आदमखोर की संज्ञा देंगे। क्योंकि जब वन क्षेत्र व् जंगल ही नहीं बचेंगे तो ये बेजुबान कहाँ जाएंगे और भूजल जैसी समस्याएं यूँ ही बढ़ती जाएंगी।
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