गैंग में दरार पुलिस की रणनीति और फिर…
मुठभेड़ एक ऐसा शब्द जिसे हर खूंखार डकैत के खात्में के बाद पुलिस इस्तेमाल करती है। काफी हद तक ये सही भी होता है क्योंकि जरुरी नहीं कि डाकुओं की मुठभेड़ सिर्फ पुलिस से ही हो बल्कि गैंग में मौजूद उसके किसी मुखबिर ने यदि पुलिस की रणनीति को अंजाम देते हुए शैतानों का काम तमाम कर दिया तो भी मुठभेड़ की ही कहानी बनानी पड़ती है। क्योंकि जाल तो पूरा पुलिस का ही बिछाया होता है।
हर बार मिली सफलता
अत्याधुनिक हथियारों से लैस डकैतों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए उनसे मुठभेड़ करना खाकी के लिए खुला चैलेंज साबित होता है। बीहड़ के चप्पे चप्पे से वाकिफ डकैतों को ट्रेस करना भी कठिन। ऐसे में गैंग में दरार ही पुलिस को सफलता दिलाती है। बतौर उदाहरण कुख्यात डकैत ददुआ ठोकिया रागिया जैसे डकैतों की लोकेशन उन्ही के गैंग के ख़ास सिपहसलारों द्वारा ट्रेस की गई और फिर उन्हें उनके अंजाम तक पहुंचा दिया गया। आज भी गैंग के गद्दारों को लेकर बीहड़ में चर्चाएं होती हैं। खूंखार बबुली कोल को भी इसी रणनीति के तहत ठिकाने लगाया गया।
कई वर्षों महीनों से बनानी पड़ती है सेटिंग
बीहड़ के सूत्रों के मुताबिक किसी भी दस्यु गैंग में दरार डालने या गैंग के किसी सदस्य को अपनी ओर मिलाने में पुलिस को कई वर्ष महीने लग जाते हैं। गैंग के सदस्यों को तोड़ना आसान नहीं होता। अपने किसी मुखबिर को गैंग में इंट्री दिलाने के लिए भी पुलिस को सेटिंग करनी पड़ती है।
आसान नहीं सीधी मुठभेड़
डकैतों से सीधी मुठभेड़ आसान नहीं होती। सन 2009 में चित्रकूट के जमौली गांव में कुख्यात डकैत नान केवट से हुई मुठभेड़ तीन दिनों तक चली थी और चार पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। तहलका मचाने वाली बात यह थी कि दस्यु नान केवट अकेले था और उसके सामने भारी पुलिस फ़ोर्स। इस मुठभेड़ ने देश दुनिया में सुर्खियां बटोरी थीं।