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जानिए उस मंदिर के बारे में, जिसे राम की तपोभूमि पर औरंगजेब ने बनवाया

locationचित्रकूटPublished: Nov 13, 2019 02:12:00 pm

औरंगज़ेब एक ऐसा मुगल बादशाह जिसके बारे में कहा जाता है कि उसका लश्कर जहां भी पहुंचता वहां के मंदिरों मूर्तियों को ध्वस्त कर दिया जाता।

जानिए उस मंदिर के बारे में, जिसे राम की तपोभूमि पर औरंगजेब ने बनवाया

जानिए उस मंदिर के बारे में, जिसे राम की तपोभूमि पर औरंगजेब ने बनवाया

चित्रकूट. औरंगज़ेब एक ऐसा मुगल बादशाह जिसके बारे में कहा जाता है कि उसका लश्कर जहां भी पहुंचता वहां के मंदिरों मूर्तियों को ध्वस्त कर दिया जाता। इतिहास के आईने में भी लगभग यही दर्शाया गया है। परन्तु उसी इतिहास के एक कोने में दर्ज है औरंगज़ेब की एक सच्चाई। जिसे जानने के लिए आना पड़ेगा भगवान श्री राम की तपोभूमि चित्रकूट। जहां इस मुगल बादशाह ने एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया और इतना ही नहीं मंदिर के नाम ज़ागीर भी लिख दी। आज भी इसका प्रमाण मंदिर में मौजूद है।


मंदाकिनी के तट पर बनवाया गया बालाजी मंदिर

भावनाएं सबूतों का इंतजार नहीं करतीं और यदि भावनाओं को प्रमाण मिल जाए तो इतिहास में वे एक अलग पन्ना आरक्षित कर लेती हैं। कुछ ऐसा ही है भगवान राम की तपोभूमि में स्थित बालाजी मंदिर का इतिहास। कहा जाता है कि मुगल शासक औरंगज़ेब ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। रामघाट स्थित पवित्र मंदाकिनी के तट पर इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया। खास बात यह कि इसके देख रेख व रख रखाव के लिए बादशाह की ओर से फरमान ज़ारी किया गया जिसका प्रमाण आज भी मौजूद है। मंदिर की बनावट भी मुगलकालीन तस्वीर पेश करती है। मंदिर के अंदर भगवान बालाजी की सोने की मूर्ति है।


जब तपोभूमि में पहुंची फ़ौज हुआ कुछ ऐसा

कहा जाता है कि सन 1683 से 1686 के बीच जब मुगल शासक औरंगज़ेब अपनी विशाल फ़ौज के साथ आगे बढ़ रहा था तो उसी दौरान उसका पड़ाव चित्रकूट में हुआ। बादशाह ने सैनिकों को मंदाकिनी किनारे स्थित एक शिव मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया। उसी समय पूरी फ़ौज सैनिकों के पेट में असहनीय दर्द शुरू हो गया। खुद औरंगज़ेब भी इस दर्द से कराह उठा। शाही हाकिम भी इलाज नहीं कर पाए। तभी बादशाह को पता चला कि पास में रहने वाले साधू बालकदास के पास इलाज संभव है।

संत की शक्ति से प्रभावित हुआ बादशाह

पेट दर्द की भयंकर पीड़ा से मूर्छित होने की कगार पर पहुंची सेना व खुद के इलाज के लिए बादशाह औरंगज़ेब साधू बालकदास के पास पहुंचा। जिसके बाद उसे और पूरी फ़ौज को आराम मिल गया। संत की इस शक्ति से प्रभावित होकर औरंगज़ेब ने सैनिकों को चित्रकूट के किसी भी मंदिर को न छेड़ने यानी बख़्श देने का हुक्म दिया।

मंदिर के लिए ज़ारी किया फरमान

इसके बाद मुगल बादशाह ने रामघाट के पास मंदाकिनी नदी के तट पर बालाजी मंदिर बनवाया। मंदिर के पुजारी महंत बालकदास के नाम से एक फरमान भी ज़ारी करवाया। जिसके तहत मंदिर की देख रेख हेतु मुगल शासक का शाही संरक्षण मिला। फरमान के हिंसाब से मंदिर को लगभग 330 बीघे ज़मीन मिली। फ़रमान पर मुगल बादशाह के तत्कालीन राजस्व मंत्री की सील लगी हुई है। सैकड़ों वर्ष पुराने हो चुके इस फरमान को आज भी मंदिर में संभाल कर रखा गया है। भोग प्रसाद के लिए मंदिर को प्रतिदिन एक रुपये देने की व्यवस्था की गई थी।

मुगल कालीन है मंदिर की बनावट

बालाजी मंदिर के निर्माण की किवदंती मंदिर की बनावट की वजह से एक तरह से प्रमाणित नज़र आती है। कई इतिहासकारों ने भी ये माना है कि मंदिर में रखा फरमान औरंगजेब के शासनकाल का है। क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी शक्ति सिंह के मुताबिक बालाजी मंदिर अपने आप में एक अनूठा स्थल है जो हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक भी है। औरंगज़ेब ने इस मंदिर को बनवाया था।

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