scriptएनिमिक हो गई चित्तौड़ की ‘वसुंधराÓ | Chittor's 'Vasundhara' turns anemic | Patrika News

एनिमिक हो गई चित्तौड़ की ‘वसुंधराÓ

locationचित्तौड़गढ़Published: Oct 24, 2021 10:48:13 pm

Submitted by:

jitender saran

यूरिया के अत्यधिक उपयोग के चलते चित्तौडग़ढ़ जिले में ‘वसुंधराÓ यानी खेती की जमीन एनिमिक हो गई है। प्रयोगशाला में जांच के बाद यह खुलासा हुआ है। यही हाल रहे तो यहां की पैदावार में भी लोह तत्व की कमी आ जाएगी, जो सीधे तौर पर मानव शरीर को भी प्रभावित करेगी।चित्तौडग़ढ़ जिले में पिछले एक दशक में यूरिया की खपत बहुत ज्यादा बढी हैं।

एनिमिक हो गई चित्तौड़ की 'वसुंधराÓ

एनिमिक हो गई चित्तौड़ की ‘वसुंधराÓ

चित्तौडग़ढ़
यूरिया के अत्यधिक उपयोग के चलते चित्तौडग़ढ़ जिले में ‘वसुंधराÓ यानी खेती की जमीन एनिमिक हो गई है। प्रयोगशाला में जांच के बाद यह खुलासा हुआ है। यही हाल रहे तो यहां की पैदावार में भी लोह तत्व की कमी आ जाएगी, जो सीधे तौर पर मानव शरीर को भी प्रभावित करेगी।चित्तौडग़ढ़ जिले में पिछले एक दशक में यूरिया की खपत बहुत ज्यादा बढी हैं। फसल में सामान्य तौर पर जितनी यूरिया दी जानी चाहिए, उससे कई गुना अधिक इसका इस्तेमाल होता रहा है। यही वजह है कि जिले में उर्वरता कम होने से जमीन बंजर होने के कगार पर है। अधिक उपयोग के चलते फसल के दानों में पहुंची यूरिया की मात्रा सीधे तौर पर मानव शरीर को प्रभावित कर रही है और इससे लीवर, किडनी प्रभावित होने के साथ ही कैंसर की आशंकाएं बढ रही हैं। यूरिया के इस जहर का खुलासा प्रधानमंत्री मिट्टी स्वास्थ्य पत्रक योजना के तहत किए गए मिट्टी परीक्षण में हुआ है। जिले की कृषि भूमि जहरीली होती जा रही है। उसमें एक तरफ कार्बनिक पदार्थ, लोह तत्व और जिंक जैसे आवश्यक तत्वों की कमी हो गई है, वहीं रसायनिक खाद एवं कीटनाशक के कारण यहां मिट्टी की प्रकृति बदलती जा रही है। इससे जहां खेत ऊसर हो रहे है वहीं मानव में भी कई प्रकार के रोग बढऩे की आशंका बढ गई है।जिले में पिछले करीब एक दशक में अधिक पैदावार के चक्कर में फसलों में अंधाधुंध कीटनाशक और रसायनिक खाद का उपयोग मानव के साथ ही पशुओं के लिए भी जहर का काम कर रहा है। जिले में सोयाबीन, अफीम, लहसुन, गेहूं, मक्का और अफीम, सरसों जैसी फसलों में सबसे अधिक कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाता है। अधिकांश किसान देखा-देखी करते है। जब भी पड़ोसी खेत में कीटनाशक का छिड़काव होता है तो अन्य किसान भी अपने खेत में कीटनाशक का इस्तेमाल कर लेता है, भले ही उसके खेत की फसल में कीटनाशक की जरूरत न हो। ऐसे में जिले में कीटनाशक का उपयोग काफी बढ़ गया है। इससे खेती में मिट्टी खराब होने लगी है।
पोषक तत्वों की इसलिए कमी
खेती की जमीन में पोषक तत्वों की कमी की वजह यह भी है कि यहां गोबर की खाद और वर्मी कम्पोस्ट का इस्तेमाल कम हो रहा है। एक फसल होते ही दूसरी बुवाई कर दी जाती है। गर्मियों में गहरी जुताई नहीं होती। पहले पेड़-पौधे बहुतायत होने से उनके पत्ते खेतों में गिरकर खाद का काम करते थे, लेकिन अब पेड़-पौधे भी कम हो गए है।
क्या कहते है अनुसंधान अधिकारी
यहां कृषि विभाग की मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला के कृषि अनुसंधान अधिकारी रसायन बिट्टू सिंह ने बताया कि इस बार खरीफ के सीजन में मिट्टी के करीब चार हजार नमूनों की जांच की गई, इनमें सुक्ष्म तत्वों के नमूनों में कार्बनिक पदार्थ, लोह तत्व और जिंक की कमी पाई गई है। इसके अलावा नाइट्रोजन और पोटास की भी कमी आई है। पौधों में हरापन लाने के लिए नाइट्रोजन की बड़ी भूमिका होती है, लेकिन इसकी कमी से फसल साल-दर-साल हरापन खोती जा रही है। जबकि पोटास की कमी से फसलों में दानों का आकार छोटा हो रहा है। प्रधानमंत्री मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के तहत जिले में दो चरणों में अब तक जिले में करीब चार लाख मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाए जा चुके हैं, जिनमें मिट्टी की सेहत का रिकार्ड दर्ज होगा।
फसल से मानव तक प्रभावित
आज बच्चों, महिलाओं और पुरूषों में भी आयरन, जिंक, कैल्शियम जैसे तत्वों की कमी पाई जा रही है। वजह साफ है कि मानव को भी ये तत्व खाद्यान्न से ही मिलते हैं और जब खाद्यान्न में ही इन तत्वों की कमी होगी तो मानव को यह तत्व पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाएंगे, नतीजतन शरीर में इन तत्वों की कमी आ जाएगी।
खेतों में यूरिया की कितनी खपत
जिले में वर्ष २०़़१७-१८ में खेतों में ४२९३३ मैट्रिक टन यूरिया का इस्तेमाल किया गया था। वर्ष २०१८-१९ में ३८४५० मैट्रिक टन तथा वर्ष २०१९-२० में ४३५८१ मैट्रिक टन यूरिया का इस्तेमाल किया गया। इस वर्ष जिले में ४६ हजार मैट्रिक टन यूरिया का इस्तेमाल हुआ है। यह सिर्फ खरीफ के आंकड़े हैं। रबी में यूरिया की खपत इसके अलावा है।

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