बेगूं में गत 20 दिन में डेंगू के चार जनों की मौत हो चुकी है। 25 सितम्बर को बेगंू निवासी किशोर अनवर, 3 अक्टूबर को बिहार के समस्तीपुर निवासी साकेत मिश्र, 4 अक्टूबर को खेड़ा निवासी लोकेश कोठारी एवं शनिवार को ओम प्रकाश की डेंगू से मौत हुई है। यह चारों मृतक पन्द्रह से तीस साल की आयु के थे।
जिले में पैर पसार चुके डेंगू को लेकर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी खुद ही गंभीर नहीं है। विभाग के पास तो जिले में हुई इन मौतों का आंकड़ा तक नहीं है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग पांच-पांच मौतों के बाद भी डेगूं से मौत का आंकड़ा शून्य बता रहा है। जिले में पांच सौ से ज्यादा लोग डेगूं की चपेट में आ चुके है, लेकिन चिकित्सा विभाग का आंकड़ा जिले में अब तक सिर्फ १४३ लोगों के डेंगू की चपेट में आने का ही राग अलाप रहा है। शहर और जिले के हर गली-मोहल्ले में डेंगू का कहर है। जिला कलक्टर हर बार चिकित्सा विभाग की बैठकों में सख्त निर्देश दे चुके हैं कि डेंगू की रोकथाम के लिए प्रभावी कदम उठाए जाए, लेकिन जिला कलक्टर के निर्देशों की पूरी तरह पालना नहीं की जा रही है।
डेंगू और मलेरिया फैलाने के लिए जिम्मेदार एडीस एजिप्टाई और एनोफ्लिज मच्छर के लार्वा ने शहर की अधिकांश बस्तियों में दस्तक दे दी है। बस्तियों में भरे पानी में इन लार्वा की मौजूदगी है। लेकिन लार्वा का खात्मा करने के लिए कारगर कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
डेंगू बुखार वेक्टर जनित वायरल रोग है, जो एडीस एजिप्टाई मच्छर के माध्यम से फैलता है। विशेष बात यह है कि यह मच्छर दिन के समय ही डंक मारता है और इसके पांच-छह दिन में व्यक्ति रोगग्रस्त हो जाता है।
डेंगू के रोगी को आराम की जरूरत होती है। तेज बुखार होने पर चिकित्सक की सलाह से उसे पेरासिटामोल की गोली दी जा सकती है। रोगी को स्टेरॉयड, एस्प्रीन या आईबुप्रोफेन नहीं देनी चाहिए। उन्होंने रोगी को ओआरएस का घोल और हल्का भोजन देने की सलाह दी।
डेंगू मुख्य रूप से तीन तरह का होता है। साधारण डेंगू में तेज बुखार, कंपकंपी, सिर दर्द, कमजोरी, पेट व निचले हिस्से में दर्द, जोड़ों में दर्द, जी मिचलाना, शरीर लाल पडऩा जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। रक्त स्त्राव वाले डेंगू में शरीर पर गहरे नीले-काले धब्बे बन जाते हैं। इसमें पेट के ऊपरी हिस्से व लीवर में दर्द होता है। चमड़ी के नीच खून का फटना, नाक व मसूड़ों से खून निकलने, खून की उल्टियां व काले रंग के दस्त की शिकायत होती है। डेंगू शॉक सिन्ड्रोम में नाड़ी कमजोर पडऩे के साथ ही उसकी चाल तेज हो जाती है। रक्तचाप कम होने के साथ ही बेचैनी बढ़ जाती है। इसमें मरीज बेहोश भी हो सकता है।