करीब बारह वर्ष पूर्व 7 नवम्बर 2008 को 11 हजार केवी हाइटेंशन लाइन पर काम करते वक्त हुई दुर्घटना में दोनों हाथ खो देने वाले शांतिलाल के पास हौसला व जीवट सुरक्षित था। हालांकि तब शायद उन्होंने यह सोचा भी नहीं होगा कि इस विषम परिस्थिति से निकलकर वह जीवन में ऐसा मुकाम हासिल करेंगे कि लोग उनकी मिसाल दें।
हादसे के बाद परिजनों व गांव के लोगों ने प्रेरणा दी और तत्कालीन जिला कलक्टर आरूषि मलिक ने आगे बढऩे की राह दिखाई। उनकी हिम्मत, गैर सरकारी संस्था ऐड एट एक्शन द्वारा चलाए जा रहे लाइवलीहुड जेनेरेशन प्रोग्राम के जरिए मार्गदर्शन मिला तो जैसे नया जीवन मिल गया। शांतिलाल अब अपनी पत्नी के सहयोग से अपने गांव में ई मित्र केंद्र व सीएससी कॉमन सर्विस सेंटर संचालित कर रहे हैं। उनका सेंटर चित्तौडगढ़़ की दो प्रमुख बैंक शाखाओं के लिए डेटा संग्रह केंद्र के रूप में काम करता है।
कलक्टर की प्रेरणा से मिला हौसला
वर्ष 2008 में जब हादसा हुआ तो शांतिलाल के जीवन में बड़ी मुश्किलें आई। गंभीर जख्म के बाद उपचार के लिए भारी खर्च भी उठाना पड़ रहा था। इन सबसे थककर उन्होंने आशा खो दी थी। फिर वर्ष 2010 में जनसुनवाई के दौरान वे तत्कालीन जिला कलक्टर डॉ. आरुषि मलिक से मिले। मलिक ने उन्हें पैरों से मोबाइल चलाते देखा तो लगा कि वे कम्प्यूटर भी चला लेंगे। इस पर उन्होंने हौसला कायम रखने और आई लीड चित्तौडगढ़़ के पास जाने की सलाह दी।
वर्ष 2008 में जब हादसा हुआ तो शांतिलाल के जीवन में बड़ी मुश्किलें आई। गंभीर जख्म के बाद उपचार के लिए भारी खर्च भी उठाना पड़ रहा था। इन सबसे थककर उन्होंने आशा खो दी थी। फिर वर्ष 2010 में जनसुनवाई के दौरान वे तत्कालीन जिला कलक्टर डॉ. आरुषि मलिक से मिले। मलिक ने उन्हें पैरों से मोबाइल चलाते देखा तो लगा कि वे कम्प्यूटर भी चला लेंगे। इस पर उन्होंने हौसला कायम रखने और आई लीड चित्तौडगढ़़ के पास जाने की सलाह दी।
ऐसे सीखा कम्प्यूटर चलानाशांतिलाल के अनुसार विभिन्न संस्थाओं के प्रयास से उन्हें सरकार की ओर से कंप्यूटर प्रदान किया गया इसके बाद उन्होंने खुद का व्यवसाय शुरू कर दिया। शुरू में लोगों को लगता था कि वे पैर से कैसे कम्प्यूटर का काम करेंगे लेकिन अब वे प्रिन्ट लेने और फोटो कॉपी करने जैसे कार्य भी कर लेते हैं।
पत्नी बढ़ाती रही हर कदम पर हौसला
शांतिलाल कहते है कि हाथ गवांने के बाद भी उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा तो इसका सबसे बड़ा आधार उनकी पत्नी मंजूदेवी शर्मा थी। ग्रामीणों की प्रेरणा पर वे वर्ष 2014 में चुनाव लड़ भदेसर पंचायत समिति सदस्य भी बनी। पत्नी हमेशा ये कह उनका हौसला बढ़ाती कि हाथ चले गए तो क्या, भगवान से मिले पैर तो पास में है। ऐड.एट.एक्शन के लाइवलीहुड एजुकेशन की प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ ऐश्वर्य महाजन के अनुसार शांतिलाल की प्रेरक कहानी जीवन में सफलता पाने के लिए उनकी लगन और समर्पण को दर्शाती है।
शांतिलाल कहते है कि हाथ गवांने के बाद भी उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा तो इसका सबसे बड़ा आधार उनकी पत्नी मंजूदेवी शर्मा थी। ग्रामीणों की प्रेरणा पर वे वर्ष 2014 में चुनाव लड़ भदेसर पंचायत समिति सदस्य भी बनी। पत्नी हमेशा ये कह उनका हौसला बढ़ाती कि हाथ चले गए तो क्या, भगवान से मिले पैर तो पास में है। ऐड.एट.एक्शन के लाइवलीहुड एजुकेशन की प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ ऐश्वर्य महाजन के अनुसार शांतिलाल की प्रेरक कहानी जीवन में सफलता पाने के लिए उनकी लगन और समर्पण को दर्शाती है।