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चित्तौड़गढ़

डॉक्टर ही नहीं सरकार के पास, रोगी करते उपचार का इंतजार

कहने के लिए जिले का सबसे बड़ा अस्पताल है लेकिन यहां भी रोगी को डॉक्टर का इन्तजार है। कारण, चिकित्सालय में डॉक्टरों के आधे पद खाली पड़े हुए है। ऐसे में कार्यरत चिकित्सक के सामने उपचार कराने वालों की कतार है। सेहत सुधारने के लिए समय पर उपचार नहीं मिलने पर निजी चिकित्सालयों में जाने के लिए रोगी लाचार है।

चित्तौड़गढ़Jul 21, 2019 / 02:32 pm

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डॉक्टर ही नहीं सरकार के पास, रोगी करते उपचार का इंतजार

जिला चिकित्सालय में चिकित्सकों के करीब आधे पद खाली
चित्तौडग़ढ़. कहने के लिए जिले का सबसे बड़ा अस्पताल है लेकिन यहां भी रोगी को डॉक्टर का इन्तजार है। कारण, चिकित्सालय में डॉक्टरों के आधे पद खाली पड़े हुए है। ऐसे में कार्यरत चिकित्सक के सामने उपचार कराने वालों की कतार है। सेहत सुधारने के लिए समय पर उपचार नहीं मिलने पर निजी चिकित्सालयों में जाने के लिए रोगी लाचार है।
सांवलियाजी राजकीय सामान्य चिकित्सालय में 300 बैड स्र्वीकृत होने के बावजूद रोगी भार बढऩे पर 550 बैड तक लगाए जाते है पर रोगियों के उपचार के लिए चिकित्सकों की कमी सबसे बड़ी समस्या बन रही है। सरकार ने यहां विभिन्न श्रेणियों में चिकित्सकों के 88 पद सृजित कर रखे है लेकिन वर्तमान में इनमें से 44 चिकित्सकों के पद रिक्त पड़े हुए है। चिकित्सालय के कई महत्वपूर्र्ण विभागों में रोगियों की कतार के बावजूद चिकित्सक कम होने से समस्या विकट हो रही है। यहां सामान्य चिकित्सधिकाािरयों से लेकर वरिष्ठ विशेषज्ञ स्तर तक के चिकित्सकों के कई पद रिक्त है। जनप्रतिनिधि वर्तमान कांग्रेस सरकार एवं पिछली भाजपा सरकार में भी चिकित्सालय में रिक्त पदों का मुद्दा उठाते रहे लेकिन कोई समाधान नहीं निकला।
स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले रहे डॉक्टर
सरकार द्वारा डॉक्टरों के रिक्त पद भरने के लिए स्थानांतरण के साथ ही नई नियुक्तियां भी की जाती है लेकिन डॉक्टर कुछ दिन रुकने बाद फिर अन्यत्र चले है।
कई डॉक्टर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति भी ले रहे है। हाल ही में वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ. मधुप बक्षी व हेमलता बक्षी ने भी स्वैच्छिक सेवानिवृति ली।
एक ही सर्जन उस पर भी पीएमओ का भार
जिला अस्पताल में कई विशेषज्ञ चिकित्सकों के पद स्वीकृत है, लेकिन अधिकतर पद खाली पड़े हुए है। कनिष्ठ शल्य (सर्जन)विशेषज्ञ में के चार पद स्वीकृत है लेकिन मात्र एक दिनेश वैष्णव कार्यरत है। डॉ. वैष्णव पिछले कुछ माह से प्रमुख चिकित्साधिकारी का भी कार्यभार संभाल रहे है। ऐसे में उन्हें सर्जरी के साथ प्रशासनिक कार्र्यो के लिए भी समय देना पड़ता है। पैथोलॉजी, शल्य, नेत्र, मेडिसन, चर्म जैसे कई महत्वपूर्ण विभागों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी होने से रोगी सामान्य चिकित्साधिकारियों से उपचार कराते है।
बनकर गया रेफर अस्पताल
चिकित्सकों की कमी से जिला चिकित्सालय रेफर चिकित्सालय बनता जा रहा है। कोई भी गंभीर रोगी आते ही चिकित्सालय से उसे उदयपुर के लिए रेफर कर दिया जाता है। कई बार उपचार के लिए मानवीय व तकनीकी संसाधनों की कमी के चलते भी चिकित्सक किसी तरह का जोखिम लेने की बजाय
रोगी को मेडिकल कॉलेज स्तर के अस्पताल में रेफर करना बेहतर समझते है।
सुपर स्पेशलिस्ट चिकित्सकों के पद ही नहीं
जिले का सबसे बड़ा चिकित्सालय होने के बावजूद यहां सुपर स्पेशलिस्ट श्रेणी के चिकित्सकों के पद ही नहीं है। डायबिटीज, ह्दय रोग, गुर्दा रोग, मस्तिष्क से जुड़े रोग बढ़ रहे है लेकिन सुपर स्पेशिलस्ट चिकित्स्क नहीं होने से रोगी उदयपुर, जयपुर जैसे स्थानों पर ले जाकर उपचार कराने को मजबूर है।

झेलना पड़ रहा अतिरिक्त दबाव
सर्जन के तीन पद रिक्त है। मेरे पास पीएमओ का चार्ज आने के बाद ऑपरेशन में कोई कमी नहीं आई लेकिन अतिरिक्त मानसिक दबाव झेलना पड़ता है। जिला अस्पताल में लगभग आधे पद चिकित्सकों के रिक्त है इसके लिए समय-समय पर सरकार को अवगत कराते है।
डॉ. दिनेश वैष्णव,(सर्जन) पीएमओ जिला अस्पताल चित्तौडग़ढ़

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