जिन वार्डों में विकास की अधिक आवश्यकता थी वहां पर विकास के नाम पर पार्षद बहुत कम राशि खर्च करा सके लेकिन जहां पर पर प्रभावशाली नेता थे वहां पर राशि एवं काम दोनों ही करोड़ों में हो गए। ऐसे में शहर के कई क्षेत्र ऐसे रह गए कि पांच साल बितने के बाद भी न सड़े बनी और ना ही नालियों का निर्माण हो सका। जबकि सड़क निर्माण पर इन पांच सालों में सर्वाधिक राशि व्यय की गई।
शहर में विकास के नाम पर अधिकांश वार्डों में बीते पांच सालों में सड़कों के निर्माण एवं रखरखाव पर खर्च हुइ्र लेकिन इसके बाद भी शहर का हाल बदहाल है। सड़कें पूरी तरह से गड्डों में बदल गई। नालियों के निर्माण पर भी मोटी रकम खर्च होना बताया लेकिन शहर की नालियों एवं नालों की दशा काफी दयनीय है।
सड़कों के पेच वर्क के नाम पर भी लाखों नहीं करोड़ों का खर्च होना बताया लेकिन पेच वर्क तो सिर्फ खानापूर्ति के लिए हुए कुछ ही दिनों में यह पूरी तरह से उखड़ गई।
बीते पांच सालों में 2006524710.29 लाख रुपए की राशि स्वीकृत की गई। इसमें अधिकांश राशि जनरल मद में खर्च के लिए रखी गई जबकि 45 वार्डों 8086.71 लाख रुपए विकास कार्यों के लिए ही खर्च किए गए।
नगर परिषद की ओर से विकास कार्यों के लिए स्वीकृत की गई राशि में तत्कालीन सभापति सुशील कुमार शर्मा भी पीछे रह गए। उन्होंने पांच साल में अपने वार्ड २९ में ५२४.७६ लाख रुपए के कार्य स्वीकृत किए जबकि कांग्रेस पार्षद नवीन पटवारी के वार्र्ड ३६ में ८२४.६७ लाख के कार्य स्वीकृत किए गए।
– प्रमुख मार्गो पर अतिक्रमण एवं अवैध निर्माण बढ़ते जा रहे है।
– प्रमुख पार्को एवं चौराहों का विकास नहीं हो पाया।
– आवारा मवेशियों की धरपकड़ का प्रयास होने के बावजूद सड़कों पर इनकी संख्या कम नहीं हुई है।
– मानसून अवधि को छोड़ दे तो भी पांच वर्ष शहर की सड़के गड्ढो से भरी रही। मरम्मत के नाम पर खानापूर्ति हुई।
– शहर में नो पार्किंग में वाहन खड़े है तो नव विकसित मार्गो पर पार्किंग स्टेण्ड ही नहीं है।
– स्वच्छता अभियान चलने के बावजूद चित्तौडग़ढ़ शहर मेंं जगह-जगह गदंगी के ढेर लगे मिल जाते है।