चित्तौड़गढ़

खुद हुए संक्रमित फिर भी नहीं छोड़ा संक्रमित को दवा पहुंचाना

चित्तौडग़ढ़. कहते है सेवा का अगर जज्बा हो तो फिर किसी भी परिस्थिति से व्यक्ति मुकबला करने की ताकत रखता है। कोरोना काल में ऐसे ही कोरोना योद्धाओं से अपने सेवा के जज्बे से यह बात साबित कर दी है।

चित्तौड़गढ़Dec 12, 2020 / 11:20 pm

Avinash Chaturvedi

खुद हुए संक्रमित फिर भी नहीं छोड़ा संक्रमित को दवा पहुंचाना

चित्तौडग़ढ़. कहते है सेवा का अगर जज्बा हो तो फिर किसी भी परिस्थिति से व्यक्ति मुकबला करने की ताकत रखता है। कोरोना काल में ऐसे ही कोरोना योद्धाओं से अपने सेवा के जज्बे से यह बात साबित कर दी है।
शहर के चिकित्सकों ने कोरोना की इस जंग में अपने-अपने तरीके से पूरी शिद्दत के साथ रोगियों का होसला ही नहीं बढ़ाया बल्कि उन्हें समय पर पूरा उपचार मुहैया कराने के लिए भी दिन रात भी नहीं देखा। ऐसे में वे स्वयं भी संक्रमित हो गए लेकिन इसके बाद भी वे कोरोना से डरे नहीं और इस काम में असंक्रमित होने के बाद फिर से जुट गए। इसी का ही परिणाम है कि अब तक हमारे यहां पर घर पर ही सैकड़ों रोगियों को दवा मुहैया करा कर उन्हें ठीक किया गया है।
जिला चिकित्सालय में फिजियोथेरफिस्ट के पद पर कार्यरत डॉ. राकेश करसोलिया और चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ. रमेश चन्द्र ने कोरोना काल में एक योद्धा बनकर अपनी जिम्मदारी को पूरी तरह से निभाया। सरकार ने कोरोना संक्रमितों को पहले कोविड सेन्टर में भर्ती करने का निसम शुरूआती दौरमें लागू किया तो दोनों ही चिकित्सक कोविड पॉजिटिव मिलने के बाद उस क्षेत्र में जाकर स्क्रीनिंग के काम में जुटे। इउसके बाद जब सरकार ने होम क्वारींटीन की व्यवस्था दी तो इन्होंने घर-घर दवा पहुंचाने के काम को भी बखूबी अंजाम दिया। यह लगातार पिछले चार माह से लगातार इस काम को अंजाम दे रहे है।
सुबह से हो जाती है रात
डॉ. रमेश चन्द्र बताते है कि कोरोना रोगियों को दवा पहुंचाने को कोई समय नहीं होता है। कई बार सुबह तो कई बार रात को भी दवा लेकर रोगी के घर जाना पड़ता है। ऐसे में कई बार तो सुबह से शाम हो जाती है। उन्होंने बताया कि कई बार मन में संक्रमित होने का भय होता है। धर वालों को भी यह डर सताता है लेकिन इसके बाद भी मानव सेवा ही चिकित्सक का पहला धर्म है यह सोच को हर सुबह निकल पड़ते हैं।
अब तक ८५८ को पहुंचाई दवा
चित्तौडग़ढ़ शहर में अब तक कोरोना संक्रमित मिले है उनमें से करीब ८५८ लोग होम क्वारींटीन किए गए और उनका घर पर ही उपचार किया गया। ऐसे में इन चिकित्सकों ने घर-घर पहुंचकर रोगियों को दवा पहुंचाई और निरंतर उनसे फॉलोअप भी करते रहते है। डॉ. राकेश बताते है कि जब भी सूचना आती है तब वे रात हो या दिन तत्काल रोगी के घर पहुंचते है और वहां जाकर कोरोना के उपचार में आने वाली दवा पहुंचाते है।
खुद भी हुए संक्रमित
डॉ. राकेश गत एक सितम्बर को कोरोना रोगियों की सेवा करते हुए खुद भी कोरोना संक्रमित हो गए लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अपने सेवा के इस ध्यैय का नहीं छोड़ा। करीब १७ दिन बाद असंक्रमित होने के बाद स्वयं वापस कोरोना रोगियों की सेवा में जुट गए।

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