हालत यह है कि शहर के कई इलाकों में गरदुल्ले को देखते ही नशीला इंजेक्शन दे दिया जाता है। 'पेंटाजोसिनÓ साल्ट के जेनरिक इंजेक्शन पर अंकित मूल्य दस रूपए से भी कम है, लेकिन इसके चालीस से पचास रूपए वसूल किए जाते हैं। गरदुल्लों को भी मजबूरी में इंजेक्शन के मुंह मांगे दाम देने पड़ते हैं।
गरदुल्ले जिन निर्जन स्थानों पर स्मैक पीते हैं, वहीं पर खुद को इंजेक्शन लगाकर सीरिंज फेंक देते हैं और अगले दिन उसी सीरिंज का उपयोग कर लेते हैं। ऐसा तब तक चलता है, जब तक कि सीरिंज खराब न हो जाए। इस प्रक्रिया के चलते उन्हें एचआईवी और हेपेटाइटिस के साथ ही सेप्टीसीमिया होने का भी खतरा बढ़ रहा है।
शहर में ब्लेक में, लेकिन असानी से उपलब्ध हो रहे नशीले इंजेक्शन की बिक्री नियमों से परे जाकर होने के कारण औषधि नियंत्रण विभाग की कार्य प्रणाली पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। नियंत्रण नहीं होने के कारण ही शहर में चिकित्सक की पर्ची के बिना नशीले इंजेक्शन बेचे जा रहे हैं।
वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. मधुप बक्षी ने बताया कि 'पेंटाजोसिनÓ व 'नाइट्राजिपामÓ साल्ट के इंजेक्शन चिकित्सक भी मरीज की बहुत नाजुक स्थिति में ही लिखते हैं। डॉ. बक्षी ने बताया कि स्मैक और अन्य ड्रग्स का शारीरिक और मानसिक प्रभाव होता है। दिमाग की नसों पर इसका प्रभाव पड़ता है। शुरुआत में तो बदन में ताजगी महसूस होती है, लेकिन धीरे-धीरे ये नशा आदमी को अपना गुलाम बना लेता है। बाद में नशा नहीं मिलने पर पसीना, घबराहट, धड़कन बढऩे और नीन्द नहीं आने जैसी शिकायतें होती हैं। मांसपेशियों में असहनीय दर्द होता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, इससे कई दूसरी बीमारियां शरीर में घर कर लेती हैं।ं