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किस्सा किले का: राजस्थान के इस शूरवीर ने 7 साल में जीता आधा भारत, 35 साल में ही बनवा लिए 32 दुर्ग

locationचित्तौड़गढ़Published: Jul 19, 2018 05:26:45 pm

Submitted by:

Nidhi Mishra

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kissa kile ka- Chittorgarh fort history in Hindi

kissa kile ka- Chittorgarh fort history in Hindi

चित्तौड़गढ़/जयपुर। मेवाड़ के इतिहास व मेवाड़ के महाराणाओं की प्रसिद्धि विश्व भर में है। इनमें महाराणा कुंभा की पहचान उनके युद्ध कौशल, संगीतप्रेम व शिल्पकारी के लिए जगप्रसिद्ध है। चित्तौड़गढ़ में 600 साल पहले जन्मे महाराणा कुंभा कहलाने वाले कुंभकर्णसिंह का भारत के राजाओं में बहुत ऊंचा स्थान है। महाराणा कुंभा से पहले राजपूत शासक केवल अपने राज्य की स्वतंत्रता की जैसे-तैसे रक्षा कर पा रहे थे। कुंभा ने युद्ध की आक्रामक नीति अपनाते हुए मुगल व अन्य आक्रांताओं को उनके अपने स्थानों पर आक्रमण करते हुए हराकर राजपूती राजनीति को एक नया रूप दिया। इतिहास में वे राणा कुंभा नाम से ज्यादा हैं।
महाराणा कुंभा की महत्ता विजय के साथ ही उनके सांस्कृतिक कार्यों के कारण है। उन्होंने अनेक दुर्ग, मंदिर और तालाब बनवाए तथा चित्तौड़ को अनेक प्रकार से सुसंस्कृत किया। कुंभलगढ़ का प्रसिद्ध किला उनकी कृति है। श्री एकलिंगजी के मंदिर का जीणोद्धार किया। वे विद्यानुरागी थे। संगीत के अनेक ग्रंथों की उन्होंने रचना की और चंडीशतक एवं गीतगोविंद आदि ग्रंथों की व्याख्या की। वे नाट्यशास्त्र के ज्ञाता और वीणावादन में भी कुशल थे। कीर्तिस्तंभों की रचना पर उन्होंने स्वयं एक ग्रंथ लिखा और मंडन आदि सूत्रधारों से शिल्पशास्त्र के ग्रंथ लिखवाए। इस महान राणा की मृत्यु अपने ही पुत्र ऊदा सिंह के हाथों हुई। महाराणा कुंभा को कला प्रेमी और विद्यागुरू शासक कई अर्थों में कहा जा सकता है। वास्तु, शिल्प, संगीत, नाटक, नृत्य, चित्र जैसी अनेक भागों वाली कृतियां और कला मूलक रचनात्मक प्रवृत्तियां कुंभा की अद्भुत देन और देश की दिव्य निधि हैं।

कुंभा को जन्मभूमि से था काफी लगाव
महाराणा कुंभा का जन्म संवत् 1474 में मार्गशीर्ष कृष्णा 5 को चित्तौडग़ढ़ में हुआ। कुंभा को सर्वाधिक लगाव अपनी जन्मभूमि चित्तौड़ से था। यह लगाव कई कारणों से था और इस लगाव को कुंभलगढ़ की प्रशस्ति में बहुत प्रशंसा के साथ लिखा गया है। यही वर्णन एकलिंग माहात्म्य में भी दोहराया गया है। कुंभा ने चित्तौड़ के हर छोर को अलंकृत पाषाण से जटित करने का जो संकल्प किया, वह उम्रभर निरंतर रहा। कारीगरों में कहावत सी रही है कमठाणो कुंभा रौ। यानि कहीं रोजगार न मिले तो कुंभा के चित्तौड़ में मिल जाएगा, यह काम अमर टांकी कहलाया।

दिल्ली, गुजरात तक ले गए मेवाड़ का साम्राज्य
महाराणा कुंभकर्ण महाराणा मोकल के पुत्र थे और उनकी हत्या होने के बाद गद्दी पर बैठे। उन्होंने अपने पिता के मामा रणमल राठौड़ की सहायता से शीघ्र ही अपने पिता के हत्यारों से बदला ले लिया। सन् 1437 से पहले उन्होंने देवड़ा चौहानों को हराकर आबू पर अधिकार कर लिया। मालवा के सुलतान महमूद खिलजी को भी उन्होंने उसी साल सारंगपुर के पास बुरी तरह से हराया। राज्यारूढ़ होने के सात वर्षों के भीतर ही उन्होंने सारंगपुर, नागौर, नराणा, अजमेर, मंडोर, बूंदी, खाटू, चाटूस आदि के सुदृढ़ किलों को जीत लिया। दिल्ली के सुलतान सैयद मुहम्मद शाह और गुजरात के सुलतान अहमद शाह को भी परास्त किया। उनके शत्रुओं ने अपनी पराजयों का बदला लेने का बार-बार प्रयत्न किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। मालवा के सुलतान ने पांच बार मेवाड़ पर आक्रमण किया। नागौर के शम्स खां ने गुजरात की सहायता से स्वतंत्र होने का विफल प्रयत्न किया। यही दशा आबू के देवड़ों की भी हुई। मालवा और गुजरात के सुलतानों ने मिलकर महाराणा पर आक्रमण किया, लेकिन फिर परास्त हुए। महाराणा कुंभा ने डीडवाना नागौर की नमक की खान से कर लिया और खंडेला, आमेर, रणथंभौर, डूंगरपुर, सीहोर आदि स्थानों को जीता। इस प्रकार राजस्थान का अधिकांश और गुजरात, मालवा और दिल्ली के कुछ भाग जीतकर महाराणा कुंभा ने मेवाड़ को महाराज्य बना दिया।

मालवा के सुल्तान को हराकर बनवाया कीर्ति स्तंभ
महाराणा कुंभा ने अपनी विजय यात्रा के दौरान मालवा के सुलतान महमूद खिलजी को भी उन्होंने सारंगपुर के पास बुरी तरह से हराया। इस विजय के स्मारक स्वरूप चित्तौड़ का विख्यात कीर्तिस्तंभ बनवाया, जो आज विजय स्तंभ के नाम से जाना जाता है। उनकी विजयों का गुणगान करता विश्वविख्यात विजय स्तंभ भारत की अमूल्य धरोहर है।

35 साल की आयु में महाराणा ने बनवाए 32 दुर्ग
इतिहासकार बताते हैं कि महाराणा कुंभा राजस्थान के शासकों में सर्वश्रेष्ठ थे। मेवाड़ के आसपास जो उद्धत राज्य थे, उन पर उन्होंने अपना आधिपत्य स्थापित किया। 35 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने 32 दुर्ग बनवाए। इन 32 दुर्ग में चित्तौडग़ढ़, कुंभलगढ़, अचलगढ़ सशक्त स्थापत्य में शीर्ष स्थानों पर गिने जाते हैं। कुंभा की कीर्ति केवल युद्धों में विजय तक सीमित नहीं थी, बल्कि उनकी शक्ति और संगठन क्षमता के साथ-साथ उनकी रचनात्मकता भी आश्चर्यजनक थी। महान शिल्पकार के साथ वे संगीतज्ञ भी थे। संगीत राज उनकी महान रचना है, जिसे साहित्य का कीर्ति स्तंभ माना जाता है।

सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्र है 1200 साल पुराना कुंभा महल
दुर्ग पर स्थित कुंभा महल का निर्माण उनके जन्म से लगभग 600 साल पहले ही बप्पा रावल ने करवाया था। बार-बार के आक्रमणों और समय की मार से महल को काफी नुकसान पहुंचा। इस पर महाराणा कुंभा ने 15वीं शताब्दी में इस महल का जीर्णोद्धार करवाया। उनके शिल्प कौशल के कारण महल आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। यहां महाराणा कुंभा समेत विभिन्न राणा-महारानियों व सामंतों के महल बने हुए हैं।

‘गाइड’ से लेकर ‘प्रेम रतन धन पायो’ तक का फिल्मी सफर
कुंभा महल की बनावट व सदियों पुरानी शिल्प कला ने पर्यटकों के साथ ही फिल्म निर्देशकों को भी आकर्षित किया है। सन् 1965 में बनी देवानंद-वहीदा रहमान अभिनीत फिल्म ‘गाइड’ में इस महल में शूटिंग की गई। इसके बाद इसी महल में रणबीर कपूर-दीपिका पादुकोण अभिनीत फिल्म ‘ये जवानी है दीवानी’ व सलमान खान-सोनम कपूर अभिनीत फिल्म ‘प्रेम रतन धन पायो’ के गाने की भी शूटिंग हुई। इसके अलावा कई डॉक्यूमेंट्री फिल्में भी यहां बनाई गई।

पहले कीर्ति स्तंभ था विजय स्तंभ का नाम
विजय स्तंभ को राणा कुंभा ने महमूद खिलजी के नेतृत्व वाली मालवा और गुजरात की सेनाओं पर विजय के स्मारक के रूप में सन् 1442 और 1449 के मध्य बनवाया था। चित्तौड़ का कीर्तिस्तंभ तो संसार की अद्वितीय कृतियों में एक है। इसके एक-एक पत्थर पर महाराणा कुंभा के शिल्पानुराग, वैदुष्य और व्यक्तित्व की छाप है। विजय स्तंभ लगभग 123 फीट ऊंचा व 9 मंजिला है, जिसमें ऊपर तक जाने के लिए 157 सीढिय़ां बनी हुई हैं। इसे पहले कीर्ति स्तंभ भी कहा जाता था। सन् 1884 में आए इतिहासकार जेम्स फर्गुसन ने इसे विजय स्तंभ नाम दिया। बाद में इसे विजय स्तंभ ही कहा जाने लगा।

कला के संरक्षण व संवर्धन के हामी थे कुंभा
चित्तौड़ में कुंभा की कई कौतुकी निर्मितियां हैं और आज तक देश-विदेश की हजारों आंखों के लिए चित्रकूट को विचित्रकूट बनाए हुए हैं। कला के संरक्षण ही नहीं संवर्धन का पाठ भी इनके हामी कुंभा के कृतित्व से सहज ही सीखा जा सकता है। जब तक कुंभलगढ़ की दीवार की चौड़ाई व ऊंचाई रहेगी मूर्तिमय कीर्तिस्तंभ का कौतूहल बना रहेगा और नवभरतावतारीय संगीतराज की महत्ता व रसमय गीत गोविंद की रसिक प्रियता रहेगी। चित्तौड़ के कुंभा की कीर्तिकथा गेय रहेगी। —डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू, इतिहासविद्, उदयपुर

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