गत वर्ष आज ही चली थी चादर, इस बार चौथाई भी नहीं भरा
चित्तौड़गढ़Published: Aug 13, 2020 10:29:55 pm
चित्तौडग़ढ़. कहने को भले ही चित्तौडग़ढ़ में मानसूनी बरसात का दौर शुरू हो गया हो लेकिन अब भी जिले के कई बांध एवं तालाब अब भी खाली है। जहां पर पिछले साल इस समय तक चादर चलने लग गई थी वहां पर इस बार एक चौथाई पानी भी नहीं भरा है। ऐसे में अब क्षेत्र के लोगों को भी चिन्ता सताने लगी है।
गत वर्ष आज ही चली थी चादर, इस बार चौथाई भी नहीं भरा
चित्तौडग़ढ़. कहने को भले ही चित्तौडग़ढ़ में मानसूनी बरसात का दौर शुरू हो गया हो लेकिन अब भी जिले के कई बांध एवं तालाब अब भी खाली है। जहां पर पिछले साल इस समय तक चादर चलने लग गई थी वहां पर इस बार एक चौथाई पानी भी नहीं भरा है। ऐसे में अब क्षेत्र के लोगों को भी चिन्ता सताने लगी है।
चित्तौडग़ढ़ से करीब 31 किलोमीटर दूर गंभीरी नदी पर बनाए गए बस्सी बांध की भराव क्षमता करीब 36 फीट है। इस बार अब तक इस बांध में केवल 7 फीट पानी की आवक हुई है। जो बांध की कुल भराव क्षमता का २५ प्रतिशत भी नहीं है। वहीं गत वर्ष 12 अगस्त 2019 को यह बांध पूरी तरह से लबालब हो गया था और चादर शुरू हो गई थी। सूत्रों की माने तो इस वर्ष बस्सी बांध पर १ जून से 12 अगस्त 2020 तक 342 मिमी बारिश हुई है।
इसलिए भरा था बांध
गत वर्ष बस्सी बांध पर अगस्त तक बरसात भले ही ज्यादा ना हो लेकिन उसके भरने का कारण मध्यप्रदेश में हुई अच्छी बरसात थी। इस कारण जिले का सबसे बड़ा गंभीरी डेम भी लबालब भर गया था और वहां से पानी गंभीरी नदी में छोड़ा गया। गंभीरी एवं बेड़च का पानी सीधा बस्सी बांध में पहुंचा। इस बार बरसात नहीं होने से अब तक यह बांध पूरी तरह से रीता है।
छाई हुई है वीरानी
गत वर्ष 13 अगस्त 2020 को बांध की चादर चलने से वहां पर लोगों का हुजूम लग गया था। जिले के तत्कालिन कलक्टर एवं पुलिस अधीक्षक एवं अन्य कई अधिकारी भी बस्सी डेम की चादर को देखने के लिए परिवार सहित पहुंचे थे। वहीं इस बार बांध में विशेष जलराशि नहीं होने से वहां पर वीरानी सी पसरी हुई है। बांध पर गिने-चुने लोग ही पहुंच रहे है।
किसानों को सता रही चिन्ता
जिले में किसानों को इस बार बरसात नहीं होने से चिन्ता सता रही है किसान ने मानसून की आस में खेतों में समय पर तो बुवाई कर दी लेकिन इस बार बरसात नहीं होने और बांधों एवं अन्य तालाबों में भी पानी की कोई विशेष आवक नहीं हुई है। ऐसे में उन्हें अब यह चिन्ता सता रही है कि पानी नहीं बरसा तो उनकी मेहनत का क्या होगा।