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जिस मीरा से चित्तौड़ की पहचान, वो हो रही गुमनाम

locationचित्तौड़गढ़Published: Oct 13, 2019 01:17:14 pm

Submitted by:

Kalulal

जिस कृष्णभक्त मीरा ने देश-दुनिया में चित्तौड़ को पहचान दी उसकी पहचान ही अब गुमनाम हो रही है। विश्व विरासत में शुमार चित्तौड़ दुर्र्ग पर भी भक्ति की प्रतीक मीरा का नाम एक मंदिर तक सिमट कर रह गया है। कुंभा महल में मीरा का निवास भी अनदेखी का शिकार है।

जिस मीरा से चित्तौड़ की पहचान, वो हो रही गुमनाम

जिस मीरा से चित्तौड़ की पहचान, वो हो रही गुमनाम

कालूलाल लौहार/ चित्तौडगढ़. जिस कृष्णभक्त मीरा ने देश-दुनिया में चित्तौड़ को पहचान दी उसकी पहचान ही अब गुमनाम हो रही है। विश्व विरासत में शुमार चित्तौड़ दुर्र्ग (chittor fort) पर भी भक्ति की प्रतीक मीरा का नाम एक मंदिर तक सिमट कर रह गया है। कुंभा महल में मीरा का निवास भी अनदेखी का शिकार है। मीरा की चित्तौड़ शहर में एक प्रतिमा भी नहीं लगी हुई है। राजस्थान में मेड़ता एवं चित्तौडग़ढ़ दो ऐसे स्थान है जिनसे मीरा की पहचान जुड़ी हुई है। मेड़ता मीरा की जन्मभूमि थी तो चित्तौडग़ढ़ मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा संग्रामसिंह के पुत्र भोजराज से विवाह के बाद उनका ससुराल बना।
चित्तौड़ दुर्ग पर मीरा की स्मृतियां दिलाने वाली कई विरासत है जो पर्यटकों के आकर्षण का भी केन्द्र है लेकिन उनकी विशेष सार संभाल नहीं हो रही है। विशाल क्षेत्र में फैले चित्तौड़ दुर्ग पर केवल मीरा मंदिर ही ऐसा स्थान है जहां जाकर पर्यटक को ये अहसास होता है कि वे भक्तिमति मीरा की नगरी में है। इसके अलावा पूरे दुर्ग पर कहीं भी मीरा की पहचान बताने वाला कोई स्मारक पर्यटकों को नहीं दिखता। मीरा का निवास दुर्ग पर सबसे बड़ी इमारत मानी जाने वाली कुंभा महल के एक हिस्से में है। यहां मीरा का महल कुंभा महल के दूसरे छोर पर होने से यहां पर देशी-विदेशी पर्यटकों को गाइड दूर से ही उसकी और इंगित कर देते है। कोई पर्यटक विशेष जोर दे तो गाइड वहां तक ले जाते है।
सार संभाल के अभाव में मीरा महल भी क्षतिग्रस्त होता जा रहा है। इस महल के बाहर भी किसी भी प्रकार शिलालेख या बोर्ड नहीं लगा हुआ है जिससे ये जानकारी मिल सके कि ये मीरा का महल है। दुर्ग पर एक मीरा का मंदिर पर भी बना हुआ जिसका निर्माण राणा कुंभा के समय में हुआ था। ये मंदिर ही चित्तौडग़ढ़ में अब मीरा की मुख्य पहचान बना हुआ है।
दो-तीन दिन के महोत्सव तक सिमट गई मीरा की याद
मीरा की भूमि चित्तौैडग़ढ़ में उसको याद करने के आयोजन दो-तीन दि के आयोजन के सिमट कर रह गए है। ये आयोजन मीरा स्मृति संस्थान के माध्यम से होते है। इसकी स्थापना १९९० में हुई और पहली अध्यक्ष तत्कालीन जिला कलक्टर डॉ. मालोविका पंवार थी। इसके माध्यम से प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा पर मीरा महोत्सव मनाया जाता रहा। पहले इस संस्थान के पदेन अध्यक्ष जिला कलक्टर ही होते थे। कुछ वर्षेा पहले प्रशासनिक अधिकारियों के इस संस्थान से स्वयं को पृथक करने के बाद गैर सरकारी व्यक्ति सदस्य बनने लगा। वर्तमान में सेवानिवृत कॉलेज प्राचार्य एसएन समदानी अध्यक्ष एवं सीएम अर्जुनलाल मूंदड़ा सचिव है।
मीरा के नाम पर कॉलोनी व पार्क
मीरा से पहचाने जाने वाले चित्तौडग़ढ़ शहर में उसके नाम पर मीरानगर कॉलोनी के साथ नगर परिषद परिसर में पार्र्क भी बना हुआ है। शहर में मीरा के नाम से बने इन स्थानों पर उसकी प्रतिमा नहीं लगी हुई है। दुर्ग स्थित मीरा मंदिर में भी मीरा की मूर्ति वर्ष २००२ में लगाई गई थी।
मीरा महल में रोज शाम को जलाया जाता है दीपक
मीरा के मंदिर में अब भी प्रतिदिन शाम को दीपक जलाया जाता है। दुर्ग निवासी ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि पिछले कई वर्षों से उनके द्वारा मीरा महल में प्रतिदिन शाम को दीपक किया जाता है। उन्होंने बताया कि करीब ५७ साल पहले दीपक करने का जिम्मा उनके दादाजी को दिया था। इसके बदले उन्हें एक ट्रस्ट की ओर से पारिश्रमिक दिया जाता है।
मीरा को मिले पहचान यही प्रयास हमारा
मीरा स्मृति संस्थान का यहीं प्रयास है कि भक्तिमति मीरा की पहचान देश-दुनिया में कायम रहे। इसके लिए हर वर्ष मीरा महोत्सव आयोजन के साथ वर्ष में अन्य आयोजन भी कराने का प्रयास करते आए है। जिस मीरा ने हम पहचान दी उसकी विरासत सहज कर रखने के लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे।
एसएन समदानी, अध्यक्ष, मीरा स्मृति संस्थान, चित्तौडग़ढ़
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