इस बार भी शोभायात्रा की अनुमति नहीं थी। ऐसे में भगवान का जुलूस मंदिर परिसर में ही घुमाया गया। साथ ही मन्दिर में ही स्थित प्राचीन कुई के जल से भगवान को जल में झुलाया। भक्तों ने इसी जल में स्नान किया।
हर वर्ष तो सभी श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति होती है। लेकिन इस बार सरकार की गाइड लाइन की पालना में श्रद्धालुओं को मंदिर परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। ऐसे में श्रद्धालु इस आस में सिंहद्वार पर खड़े थे कि उन्हें भगवान के दर्शन होंगे। कॉरिडोर में भ्रमण करते हुए जुलूस सिंहद्वार के निकट पहुंचा तो रथ को सिंहद्वार तक ले जाया गया। जहां भगवान के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।
कोरोना संक्रमण की आशंका को देखते हुए प्रशासन ने पहले ही सांकेतिक रूप से आयोजन होने और दो दिन मंदिर बंद रखने की सूचना विभिन्न माध्यम से लोगों को दे दी थी, लेकिन भगवान के प्रति श्रद्धा के कारण मंदिर बंद होने की सूचना मिल जाने के बावजूद भी बड़ी संख्या में लोग सांवलियाजी पहुंचे।
बांसी निवासी श्रद्धालु मोहन सिंह सोलंकी हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी जलझूलनी एकादशी के अवसर पर अपने आम के पेड़ से कच्ची तथा पकी हुई कैरियां लेकर स्वयं यहां पहुंचे तथा भगवान के बेवाण पर भोग लगाया।
भादसोड़ा के सांवलिया जी तथा प्राकट्य स्थल मंदिर के जलझूलनी एकादशी महोत्सव भी औपचारिकता में सिमट गया। बागुंड, भादसोड़ा तथा प्राकट्य स्थल मंदिर के ठाकुर जी एक साथ जल में झूलते हैं लेकिन इस बार बिना जुलूस के भादसोड़ा मंदिर के ठाकुर जी ट्रैक्टर में सवार होकर गिने चुने श्रद्धालुओं के साथ पहुंचे तथा जल में स्नान किया।