गुरु सुवा जेहि पंथ दिखावा, बिन गुरु जगत को निरगुण पावा। नागमति यह दुनिया धंधा, बांचा सोई न एहि चित बंधा।
राधवदूत सोई सैतानू, माया अलाद्दीन सुल्तानू।
महारानी पद्मनी की प्रामणिकता अनेक तर्कों से स्वयंसिद्ध है। जौहर के बाद से अब तक कई ज्ञात-अज्ञात कवियों आदि ने पद्मनी एवं गौरा-बादल विषयक रचनाएं लिखी। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, रामधारीसिंह दिनकर ने भी पद्मनी विषयक रचनाएं लिखी है। देबारी में वि.स. 1359 माघ पंचमी बुधवार का शिलालेख जिसमें चित्तौड़ के राजा रत्नसेन का जिक्र है। वि.स. 1583 की नारायणदास की छिताई वार्ता, हेमरतन की गौरा बादल पद्मनी चौपाई, डॉ लक्ष्मणसिंह राठौड़ की द जौहर ऑफ पद्मनी आदि कई रचनाओं में महारानी पद्मनी के जौहर का विस्तृत उल्लेख है।
जैन श्रमण संघ के महामंत्री सौभाग्य मुनि भी महारानी पद्मनी के त्याग बलिदान को अविस्मरणीय बताते हुए पद्मावती फिल्म के माध्यम से एतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ पर विरोध जताया है। पद्मनी को सम्पूर्ण भारत का गौरव शिखर बताते हुए लिखा है कि ‘स्वाभिमान के लिए जौहर की ज्वाला में पद्मनी, ऐसी चित्तौड़ की माटी सचमुच है चंदन।’ उन्होंने पद्मनी के त्याग का जिक्र करते हुए लिखा है कि ‘महान पद्मनी का इतिहास गंदा करने वालों, चांदी के टुकड़ो के लिए खोटा धंधा करने वाले, पद्मनी को कलंकित कर क्यों कलंकित होते हो, तुम भी मर जाओंगे चित्तौड़ के यश चन्द्र को मंदा करने वालों।’ मुनि ने महारानी पद्मनी के जौहर को चित्तौड़ के गौरवशाली इतिहास का उजला अध्याय बताते हुए कुछ अन्य मुक्तकों की भी रचना की है।