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जायसी ने ही मान लिया था सच्चाई नहीं, रचा आध्यात्मिक रूपक, लौकिक कथा के आधार पर की थी रचना

locationचित्तौड़गढ़Published: Nov 18, 2017 02:52:00 pm

Submitted by:

santosh

शील एवं स्वाभिमान की रक्षा के लिए जौहर करने वाली मेवाड़ की महारानी पद्मनी के गौरवगाथा का जिक्र साहित्यिक रचनाओं में वर्षों से हो रहा है।

padmawati
चित्तौडग़ढ़। शील एवं स्वाभिमान की रक्षा के लिए जौहर करने वाली मेवाड़ की महारानी पद्मनी के गौरवगाथा का जिक्र साहित्यिक रचनाओं में वर्षों से हो रहा है। उनके प्रति लोगों में असीम श्रद्धा के भाव है। ऐसे में उनके चरित्र को आधार बना फिल्म पद्मावती के निर्माण ने लोगों की भावनाओं को उद्वेलित कर रखा है।
मलिक मोहम्मद जायसी की जिस पदमावत रचना को आधार बना फिल्म पद्मावती के निर्माण की बात कहीं जा रही है, उसे स्वयं जायसी ने ही लौकिक कथा के आधार पर रचा आध्यात्मिक रूपक माना था।
मेवाड़ की महारानी पद्मनी ने वर्ष 1303 में अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़़ आक्रामण के समय सतीत्व की रक्षा के लिए 16 हजार क्षत्राणियों के साथ जौहर किया था। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुशीला लढ़ा के अनुसार जायसी ने अवधि भाषा में पदमावत महाकाव्य की रचना जौहर के 137 वर्ष बाद 1540 में की थी।
ऐसे में उससे में जिक्र की गई बातों की प्रामणिकता पर सवाल उठते रहे है। काव्य में स्वयं जायसी ने लिखा है कि मैने चित्तौडग़ढ़ के महाराणा रतनसिंह एवं उनकी महारानी पद्मनी की लौकिक कथा के माध्यम से आध्यात्मिक रूपक रचा है। जायसी ने कहा वो इस प्रकार है।
‘ तन चितउर मन राजा किन्हा, हिय सिंघल बुद्धि पद्मनी चिन्हा।
गुरु सुवा जेहि पंथ दिखावा, बिन गुरु जगत को निरगुण पावा।

नागमति यह दुनिया धंधा, बांचा सोई न एहि चित बंधा।
राधवदूत सोई सैतानू, माया अलाद्दीन सुल्तानू।
ओ मन जानि कवित ***** किन्हा, मूक यह रहे जगत मह चिन्हा।’

लढ़ा के अनुसार महाकाव्य में जायसी लिखते है कि भावना एवं कल्पना के संयोग से इस रूपक में पद्मावती परमात्मा के रूप में, साधक का मन रत्नसेन, शरीर चित्तौड़, हीरामन तोता गुरु, राधवचेतन शैतान, अलाउद्दीन माया आदि के प्रतीक है। ऐसी कल्पना प्रधान रचना को इतिहास की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है।
कवियों की रचनाओं में भी पद्मनी का जौहर
महारानी पद्मनी की प्रामणिकता अनेक तर्कों से स्वयंसिद्ध है। जौहर के बाद से अब तक कई ज्ञात-अज्ञात कवियों आदि ने पद्मनी एवं गौरा-बादल विषयक रचनाएं लिखी। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, रामधारीसिंह दिनकर ने भी पद्मनी विषयक रचनाएं लिखी है। देबारी में वि.स. 1359 माघ पंचमी बुधवार का शिलालेख जिसमें चित्तौड़ के राजा रत्नसेन का जिक्र है। वि.स. 1583 की नारायणदास की छिताई वार्ता, हेमरतन की गौरा बादल पद्मनी चौपाई, डॉ लक्ष्मणसिंह राठौड़ की द जौहर ऑफ पद्मनी आदि कई रचनाओं में महारानी पद्मनी के जौहर का विस्तृत उल्लेख है।
पद्मावती मामले में सौभाग्य मुनि ने रचे मुक्तक
जैन श्रमण संघ के महामंत्री सौभाग्य मुनि भी महारानी पद्मनी के त्याग बलिदान को अविस्मरणीय बताते हुए पद्मावती फिल्म के माध्यम से एतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ पर विरोध जताया है। पद्मनी को सम्पूर्ण भारत का गौरव शिखर बताते हुए लिखा है कि ‘स्वाभिमान के लिए जौहर की ज्वाला में पद्मनी, ऐसी चित्तौड़ की माटी सचमुच है चंदन।’ उन्होंने पद्मनी के त्याग का जिक्र करते हुए लिखा है कि ‘महान पद्मनी का इतिहास गंदा करने वालों, चांदी के टुकड़ो के लिए खोटा धंधा करने वाले, पद्मनी को कलंकित कर क्यों कलंकित होते हो, तुम भी मर जाओंगे चित्तौड़ के यश चन्द्र को मंदा करने वालों।’ मुनि ने महारानी पद्मनी के जौहर को चित्तौड़ के गौरवशाली इतिहास का उजला अध्याय बताते हुए कुछ अन्य मुक्तकों की भी रचना की है।
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