संयुक्त राष्ट्र संघ की आनुशांघिक ईकाई आई यू सी एन के विश्व आयोग सदस्य व पर्यावरणविद् डॉ. मोहम्मद यासीन जो पिछले दो दशक सें जैवविविधता व पर्यावरण संरक्षण पर कार्य कर रहें है। उनके अनुसार अंतरराष्ट्रीय संस्था आई यू सी एन व बर्ड इंटरनेशनल की ओर से चिन्हित संकटग्रस्त प्रजाति में शामिल विश्व की सबसे बड़ी उडऩे वाली पक्षी प्रजाति सारस क्रेन की दुनिया भर में घटती संख्या से पक्षी विशेषज्ञ चिंतित हैं वही यहां ना सिर्फ सारस की सख्ंया मे बढोतरी हो रही है वरन प्रजनन दर तथा किशोर.वयस्क अनुपात मे भी बढोतरी हो रही है ।
उपलब्ध ऑंकडें यह दर्शाते हैं कि चित्तौडग़ढ़ जिले की भौगोलिक विशेषताएं अच्छा वन आवरण, बड़ी संख्या में बारहमासी आद्र्रभूमि व मध्यम घास के मैदान इन प्रजातियों के आवास लिए उपयुक्त बनाती हैं । जलवायु परिवर्तन जैव विविधता के लिए एक सबसे बड़ा खतरा बना हुआ हैए इसके साथ विदेशी पादप प्रजातियों की घुसपैठ भी इस परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं।
वनों की कटाई, प्रजातियों की विलुप्त और अधिक बुनियादी ढाँचे का निर्माण करके मनुष्य जैव विविधता को कम करके, कोरोना जैसे रोग महामारियों के जोखिम को बढ़ा रहे हैं। हाल के वर्षों में उभरती हुई संक्रामक बीमारियों में से 70 प्रतिशत पशुजन्य रोग से उपजी हैं।
कोरोना के टीके व्यापक रूप से उपलब्ध हो जाने के बाद भी प्राकृतिक संसाधनों और जैवविविधता के प्रति वर्तमान में हमारा व्यवहार ही मानव सभ्यता का भविष्य तय करेगा। विशेष चित्तौडग़ढ़ में सारस क्रेन की प्रजनन सफलता दर राज्य में सबसे ज्यादा है। राजस्थान का राष्ट्रीय स्तर पर प्रजनन आबादी में सर्वोच्च योगदान हैं। राष्ट्रीय अनुमान की तुलना में चित्तौडग़ढ़ में प्रजनन जोड़े का वर्तमान रिकॉर्ड और उनका प्रतिशत काफी अधिक राजस्थान जैसे शुष्क प्रदेश मे इस नम भूमि की प्रजाति का बहुतायत में मिलना कौतूहल का विषय है।
सारस को निश्छल प्रेम व सौभाग्य के प्रतिक के रूप में पहचाना जाता है। यह पक्षी अपने पूरे जीवन पर्यन्त मात्र एक बार जोडा बनाता है। महर्षि वाल्मिकी द्वारा रचित विश्व के प्रथम ग्रंथ रामायण में मिलता है जिसमें बाल काण्ड का आरंभ एक प्रणयरथ क्रोंचरूसारस युगल के वर्णन से होता है। अन्य पक्षियों की तरह इसका आखेट नहीं किया जाता था।