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पुरातत्व विभाग की अनदेखी के कारण अपनी पहचान खोती जा रही माध्यमिका

locationचित्तौड़गढ़Published: Sep 22, 2022 11:18:10 pm

Submitted by:

Avinash Chaturvedi

चित्तौडग़ढ़ बस्सी क्षेत्र का नगरी गांव जिसे माध्यमिका एवं ताम्रनगरी के नाम से भी जाना जाता है। समृद्धशाली इतिहास एवं संरक्षित स्थल होने के बावजूद पुरातत्व विभाग की अनदेखी के कारण यह स्थल धीरे-धीरे अपनी पहचान खोता जा रहा है।

पुरातत्व विभाग की अनदेखी के कारण अपनी पहचान खोती जा रही माध्यमिका

पुरातत्व विभाग की अनदेखी के कारण अपनी पहचान खोती जा रही माध्यमिका

चित्तौडग़ढ़ बस्सी क्षेत्र का नगरी गांव जिसे माध्यमिका एवं ताम्रनगरी के नाम से भी जाना जाता है। समृद्धशाली इतिहास एवं संरक्षित स्थल होने के बावजूद पुरातत्व विभाग की अनदेखी के कारण यह स्थल धीरे-धीरे अपनी पहचान खोता जा रहा है।
चित्तौडग़ढ़ जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर बस्सी हाईवे के समीप बसा नगरी गांव अपने गौरवशाली एवं समृद्धशाली 2300 वर्ष पुराने इतिहास को अपने में समेटे हुए हैं। यहां पर शून्ग साम्राज्य और पंजाब की शिबी जनजाति के लोगों का ईसा से 300 वर्ष पूर्व आधिपत्य रहा। वर्तमान में नगरी के संरक्षित स्थलों की सार संभाल नहीं होने के कारण तथा संकेत बोर्ड लगे नहीं होने के कारण यह स्थल धीरे-धीरे अपना वैभव खोता जा रहा है।यहां के प्रमुख स्मारकों में नारायण वाटिका (हाथी बाड़ा), प्रकाश स्तंभ और शिव देवरी उत्खनन स्थल है, जिनकी जानकारी पर्यटकों से तो काफी दूर है ही जिले के एवं आसपास के लोगों को भी इस स्थल के बारे में काफी कम पता है।
चित्तौडग़ढ़ किला विश्व धरोहर होने के बावजूद किले पर आने वाले पर्यटक नगरी के प्राचीनतम इतिहास के बारे में अनभिज्ञ है । इसके लिए पुरातत्व विभाग ने ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं कर रखी है जिससे अधिक से अधिक पर्यटक यहां आए और नगरी के वैभवशाली इतिहास को जाने। बस्सी हाईवे पर नगरी के संरक्षित स्थल का काफी समय पूर्व संकेत बोर्ड लगा हुआ था , जो वर्तमान में नहीं है। हाइवे से गुजरने वाले राहगीरों को भी नगरी के प्राचीनतम इतिहास के बारे में संकेत बोर्ड नहीं होने के कारण जानकारी नहीं मिल पाती है। ऐसे कई लोग हैं जो इस स्थल पर नहीं पहुंच पाते हैं। नगरी का पातंजलि ने अपने महाभाष्य में, पाणिनी ने तथा कर्नल जेम्स टोड ने अपनी राजस्थान की यात्रा के दौरान लिखे इतिहास में उल्लेख किया है।
नगरी (माध्यमिका) का इतिहास :इतिहासकारों के अनुसार चित्रकूट या चित्तौढग़ढ़ का दुर्ग बनाने का श्रेय चित्रांगद मौर्य को है। कर्नल टॉड के अनुसार सन 728 में बापा रावल ने यहां गुहिल वंशीय राज्य की स्थापना की थी। मगर इस दुर्ग की स्थापना से पूर्व वर्तमान शहर से मात्र 15 किमी दूर स्थित प्राचीन नगर द्ममाध्यमिका नगरीद्य इस क्षेत्र की राजधानी हुआ करती थी। मध्यकाल में त्रिकूट पर्वत की तलहटी के इस क्षेत्र को मेदपाट के नाम से भी जाना जाता था। यहां साल भर बहने वाली गंभीरी और बेड़च सहित अन्य नदी-नालों की यह उपजाऊ भूमि का आकर्षण ही कुछ और है। उत्तम जलवायु की वजह से यहां सभी प्रकार की फ़सलों के अलावा सब्•ायिों, फल, फूलों, जड़ी-बूटियों का बहुत बड़ा भंडार है। मेवाड़ क्षेत्र के वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. श्री कृष्ण द्मजुगनूद्य बताते हैं, कि यहां अश्वमेध जैसा महान यज्ञ करने वाले चक्रवर्ती सम्राट सर्वतात ने बड़ी शिला-खण्डों की एक दीवार बनवाई थी, जिसे आज नारायण वाटिका के रूप में जाना जाता है। भारतीय इतिहास में पत्थरों की चारदीवारी बनाने का पहला संदर्भ नगरी से ही मिलता है। यहां से मिले एक अभिलेख में वासुदेव से पहले संकर्षण का नाम आया है, जो कि बलदेव का पर्याय है। यहां दोनों भाईयों की पूजा होती थी। जैसे आजकल के देवरों में होती है। इसी प्रकार के देवरे के रूप में यहां चौकी और चबुतरे बने हुए हैं। एसे चबुतरे पर देव मूर्तिकां या उनसे सम्बद्ध प्रतीक रखकर पूजा करने की परम्परा रही थी। राजंस्थान में प्राचीनतम मंदिरों के पुराने अवशेष बैराट के अलावा नगरी से ही प्राप्त हुए हैं।
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