माना जा रहा है कि कॉलेज शिक्षा आयुक्तालय का ऑडिट दल कॉलेज के लेखाजोखा खंगाल ये तय करने का प्रयास कर रहा है कि गबन का वास्तविक आंकड़ा कितना है। इस बारे में अभी कोई खुलकर बात करने तो तैयार नहीं लेकिन सूत्रों के अनुसार ऑडिट में ये आंकड़ा दो करोड़ से अधिक की राशि तक पहुुंच चुका है। इस मामले में विक्रमसिंह के अलावा अन्य कौनसे अधिकारियों व कर्मचारियों की भूमिका रही इसकी भी जांच हो रही है। पुलिस में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार प्रथम दृष्टया ८८ लाख ९४ हजार ९०५ रुपए का गबन प्रमाणित होने पर महाविद्यालय प्रशासन ने कॉलेज शिक्षा आयुक्तालय को पत्र भेज अंकेक्षण विभाग से ऑडिट कराने का आग्रह किया था। इस ऑडिट के बाद ही गबन की वास्तविक राशि का खुलासा हो सकेगा।
गत वर्ष जनवरी में कॉलेज में जनसहभागिता से नए कक्षाकक्ष बनाने की घोषणा की गई। इस कार्य के लिए तत्कालीन प्राचार्य ने २५ लाख रुपए की राशि का चेक बैंक में जमा कराने को दिया तो वहां से बैलेंस कम बताया गया। कॉलेज की कैश बुक इससे अधिक राशि जमा होना बता रही थी तो प्राचार्य को छात्र कोष की राशि में गबन की आशंका हुई। प्रारम्भिक पड़ताल के बाद कॉलेज शिक्षा आयुक्तालय को मामले की रिपोर्ट भेजने के बाद पता चला कि पांच वर्ष से इस तरह की गड़बड़ी हो रही है। पुलिस में दी रिपोर्ट के अनुसार ८८ लाख ९४ हजार ९०५ रुपए की राशि विक्रमसिंह द्वारा अलग-अलग तिथियों में जरिये चेक व नगद बैंक से आहरित की गई लेकिन इस राशि के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार के वाउचर एवं दस्तावेज महाविद्यालय के लेखा एवं रोकड़ विभाग में उपलब्ध नहीं है। इस अवधि की रोकड़ बही का संधारण भी नहीं किया गया।
विक्रमसिंह, थानाधिकारी सदर थाना चित्तौडग़ढ़