किस फल पर अतिवृष्टि की मार, समय से पहले थमी आवक
चित्तौड़गढ़Published: Dec 05, 2019 10:11:27 pm
चित्तौड़ दुर्ग के सीताफल पर पड़ी अतिवृष्टि की मार -अधिक बारिश से फल लगने से पहले ही झर गए फूल पैदावार कम होने से इस बार समय से पहले आना बंद
किस फल पर अतिवृष्टि की मार, समय से पहले थमी आवक
चित्तौडग़ढ़. देश में चित्तौड़ दुर्ग की पहचान शक्ति व भक्ति की धरा के साथ सीताफल के लिए भी होती आई है। यहां के सीताफल की मांग देश के विभिन्न क्षेत्रों में होती है। इस वर्ष चित्तौडग़ढ़ में मानसून सीजन में अतिवृृष्टि के हालात से जल संकट तो समाप्त हो गया लेंकिन उसके नकारात्मक पहलू भी सामने आए। खेतों में फसल गलन के साथ इस बार अतिवृष्टि की मार सीताफल पर भी पड़ी। करीब 14 किलोमीटर एरिये में फैले चित्तौड़ दुर्ग पर सदियों से सीताफल की प्राकृतिक तरीके से खेती हो रही है। दुर्ग पर इनके अनगिनत पेड़ है। इस वर्र्ष अतिवृष्टि से दुर्ग पर सीताफल के पेड़ो पर फल तो आाए लेकिन उनकी संख्या कम रही। पेड़ो पर फूल लगने के बाद झर जाने से उपज कम हुई। जो सीताफल आए उनकी गुणवत्ता अच्छी थी लेकिन संख्या कम रही। सामान्यतया दीपावली के एक पखवाड़े तक सीताफल आते है लेकिन इस बार इनकी आवक करीब एक पखवाड़े पहले ही थम गई। ऐसे में अब सीताफल पाने की आस में दुर्ग पहुंचने वाले लोगों को निराश लौटना पड़ रहा है।
सीताफल के पेड़ो की होती नीलामी
चित्तौडग़ढ़ दुर्ग पर करीब १४ किलोमीटर क्षेत्र में अलग-अलग स्थानों पर बड़ी मात्रा में सीताफल के पेड़ लगे हुए है। इनमें अपनी-अपनी भूमि पर लगे पेड़ों के सीताफल की नीलामी की जाती है। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, राजस्व विभाग के साथ कुछ मंदिरों की जमीन पर भी सीताफल के पेड़ लगे है।औसतनन करीब दस लाख रुपए की आय इन नीलामी से होती है।
चित्तौडग़ढ़ के सीताफल का स्वाद सबसे अलग
राज्य में विभिन्न स्थानों पर सीताफल की पैदावार होती है लेकिन चित्तौड़ दुर्ग के सीताफल का स्वाद सबसे अलग व बेहतरीन माना जाता है। इसके चलते यहां के सीताफलों की मांग देश के विभिन्न क्षेत्रों में रहेती है। यहां सीताफल के पेड़ लगाए नहीं गए बल्कि प्राकृतिक रूप से लगे होने से भी स्वाद विशेष होता है। सीताफल की सीजन जुलाई से अक्टूबर के बीच यहां आने वाले पर्यटक भी इनका स्वाद लेना नहीं भूलते। शहर के गांधीचौक में दुर्ग पर होने वाले सीताफल की खुदरा बिक्री होती आई है।