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किस संत ने कहा कि जैन साधु होने पर गर्व

locationचित्तौड़गढ़Published: Feb 26, 2020 11:10:44 pm

Submitted by:

Nilesh Kumar Kathed

बेटी हमारा अभिमान व सम्मान- नहीं बदले भगवान महावीर के मूूल सिद्धांत- राष्ट्रीय संत ललितप्रभ सागर की विभिन्न मुद्दों पर पत्रिका से बातचीत

किस संत ने कहा कि जैन साधु होने पर गर्व

किस संत ने कहा कि जैन साधु होने पर गर्व


चित्तौडग़ढ़. राष्ट्र-संत ललितप्रभ सागर का चार वर्ष बाद बुधवार को फिर शक्ति व भक्ति की नगरी चित्तौडग़ढ़ में आगमन हुआ। लोगों को जीने की कला सीखाने वाले ललितप्रभ सागर पूरे देशभर में लगभग चालीस हजार किलोमीटर की पदयात्रा कर चुके देश के 21 राज्यों के लाखों लोग इन राष्ट्र-संतों के प्रभावी प्रवचनों का लाभ उठा चुके हैं। चित्तौडग़ढ़ में दो दिवसीय प्रवचन माला में जीने की कला पर संदेश देने आए मुनि ललितप्रभ सागर ने प्रतापनगर स्थित प्रवचन माला के आयोजक सुनिल तनुज गांधी के निवास पर राजस्थान पत्रिका से विभिन्न मुद्दों पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर के मूल सिद्धान्तों को आज भी जैन साधु-साध्वी एवं श्रावक-श्राविकाएं यथासंभव जीने का प्रयास करते है। युग के अनुरूप कुछ भी बदलाव आए लेकिन मूल परम्परा को आज भी जीवित रखा है। हमे जैन मुनि होने पर गौरव है एवं आज भी जैन संत-साध्वी पूरी दुनिया में आदर्श है। पेश है मुनि ललितप्रभ सागर से हुई बातचीत के मुख्य अंश।
सवाल- जैन समाज में बेटियों की संख्या निरन्तर कम हो रही है इसे कैसे रोका जा सकता है एवं संतों की क्या भूमिका है।
जवाब-बेटी है अभिमान व सम्मान हमारा, जिस घर मेंं बेटी जन्मी वो स्वर्ग समान है। जैन धर्म में शुरू से १६ सत्तियों के रूप में शुरू नारी शक्ति को महत्व दिया गया है। आज भी साधू कम साध्वियां ज्यादा है। हर धर्म में ***** भेद समाप्त होना चाहिए। नारी को आगे बढऩे का अवसर मिला तो उनसे हर क्षेत्र में बता दिया कि वो पुरूषों से कम नहीं है। लड़का-लड़की एक समान है इसमें किसी भी रूप में भेद करना महापाप के समान है।
सवाल-जैन समाज के सामने वर्तमान में क्या चुनौतियां मानते है।
जवाब– जैन धर्म नैतिकता पर आधारित वैज्ञानिक धर्म है। भगवान महावीर ने कहा खुद भी सुख से जीयों और लोगों को भी सुख से जीने दो। शादियों में होने वाले अपव्यय को रोक बचे हुए धन को मानवता के कल्याण में लगाए। अपने धर्म के मूलभूत सिद्धान्तों पर टिके रहना है।
सवाल- क्या समाज के स्थानक व मंदिरों में ड्रेस कोड होना चाहिए।
जवाब-जैन धर्म के किसी भी मंदिर में कोई भी जाति-धर्म का व्यक्ति प्रवेश कर सकता, कोई भेद नहीं करते। जहां तक ड्रेस कोड का सवाल है उसमें स्थानकवासी परम्परा में मुफ्ती बांधते है वहीं मंदिर में भी पूजा के लिए वेशभूषा तय है। दर्शन के लिए कोई डे्रस कोड की जरूरत नहीं लेकिन ये जरूर हो कि कपड़े साफ एवं धुलेे हुए हो।
सवाल- जैन एकता के लिए बाते तो बहुत होती लेकिन क्यों नहीं हो पाती।
जवाब-सही बात है जैन समाज मूलत: दो प्रमुख भागों श्वेताम्बर व दिगम्बर में बंटे हुए है। श्वेताम्बर फिर तीन भाग में है। ये बता दू कि ये सब अलग होने पर भी जब वक्त आया पूरा समाज एक हुुआ है। सबका नवकार मंत्र एक है, भक्ताम्बर एक है, मंदिरों के प्रति श्रद्धा व आगम एक है, सिद्धांत एक है। संथारे के मामले में समाज अपनी एकता बता चुका है। ये समाज उस खरबूजे के समाने है जो छिलके पर अलग-अलग नजर आते है लेकिन छिलका उतर जाए तो एक नजर आते है।
सवाल-महावीर जयंति आने वाली है जैन समाज को क्या संदेश देना चाहेंगे।
जवाब- भगवान महावीर कल भी वैसे ही थे जैसे आज है। उनके सिद्धांत ढाई हजार वर्ष बाद भी उतने ही मानवता के लिए उपयोगी है जितने पहले थे। जन्म कल्याणक को केवल शोभायात्रा तक उनकी बात सीमित नहीं रखा जाए। हर वर्ष इस दिन कुछ नया किया जाए। समाज के जो लोग निर्धन है उन्हें आगे बढ़ाया जाए। प्रतिभावान बच्चों को प्रोत्साहित किया जाए। भगवान महावीर के सिद्धांत जन-जन तक पहुंचाए जाए।

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