सवाल- जैन समाज में बेटियों की संख्या निरन्तर कम हो रही है इसे कैसे रोका जा सकता है एवं संतों की क्या भूमिका है।
जवाब-बेटी है अभिमान व सम्मान हमारा, जिस घर मेंं बेटी जन्मी वो स्वर्ग समान है। जैन धर्म में शुरू से १६ सत्तियों के रूप में शुरू नारी शक्ति को महत्व दिया गया है। आज भी साधू कम साध्वियां ज्यादा है। हर धर्म में ***** भेद समाप्त होना चाहिए। नारी को आगे बढऩे का अवसर मिला तो उनसे हर क्षेत्र में बता दिया कि वो पुरूषों से कम नहीं है। लड़का-लड़की एक समान है इसमें किसी भी रूप में भेद करना महापाप के समान है।
जवाब-बेटी है अभिमान व सम्मान हमारा, जिस घर मेंं बेटी जन्मी वो स्वर्ग समान है। जैन धर्म में शुरू से १६ सत्तियों के रूप में शुरू नारी शक्ति को महत्व दिया गया है। आज भी साधू कम साध्वियां ज्यादा है। हर धर्म में ***** भेद समाप्त होना चाहिए। नारी को आगे बढऩे का अवसर मिला तो उनसे हर क्षेत्र में बता दिया कि वो पुरूषों से कम नहीं है। लड़का-लड़की एक समान है इसमें किसी भी रूप में भेद करना महापाप के समान है।
सवाल-जैन समाज के सामने वर्तमान में क्या चुनौतियां मानते है।
जवाब– जैन धर्म नैतिकता पर आधारित वैज्ञानिक धर्म है। भगवान महावीर ने कहा खुद भी सुख से जीयों और लोगों को भी सुख से जीने दो। शादियों में होने वाले अपव्यय को रोक बचे हुए धन को मानवता के कल्याण में लगाए। अपने धर्म के मूलभूत सिद्धान्तों पर टिके रहना है।
जवाब– जैन धर्म नैतिकता पर आधारित वैज्ञानिक धर्म है। भगवान महावीर ने कहा खुद भी सुख से जीयों और लोगों को भी सुख से जीने दो। शादियों में होने वाले अपव्यय को रोक बचे हुए धन को मानवता के कल्याण में लगाए। अपने धर्म के मूलभूत सिद्धान्तों पर टिके रहना है।
सवाल- क्या समाज के स्थानक व मंदिरों में ड्रेस कोड होना चाहिए।
जवाब-जैन धर्म के किसी भी मंदिर में कोई भी जाति-धर्म का व्यक्ति प्रवेश कर सकता, कोई भेद नहीं करते। जहां तक ड्रेस कोड का सवाल है उसमें स्थानकवासी परम्परा में मुफ्ती बांधते है वहीं मंदिर में भी पूजा के लिए वेशभूषा तय है। दर्शन के लिए कोई डे्रस कोड की जरूरत नहीं लेकिन ये जरूर हो कि कपड़े साफ एवं धुलेे हुए हो।
जवाब-जैन धर्म के किसी भी मंदिर में कोई भी जाति-धर्म का व्यक्ति प्रवेश कर सकता, कोई भेद नहीं करते। जहां तक ड्रेस कोड का सवाल है उसमें स्थानकवासी परम्परा में मुफ्ती बांधते है वहीं मंदिर में भी पूजा के लिए वेशभूषा तय है। दर्शन के लिए कोई डे्रस कोड की जरूरत नहीं लेकिन ये जरूर हो कि कपड़े साफ एवं धुलेे हुए हो।
सवाल- जैन एकता के लिए बाते तो बहुत होती लेकिन क्यों नहीं हो पाती।
जवाब-सही बात है जैन समाज मूलत: दो प्रमुख भागों श्वेताम्बर व दिगम्बर में बंटे हुए है। श्वेताम्बर फिर तीन भाग में है। ये बता दू कि ये सब अलग होने पर भी जब वक्त आया पूरा समाज एक हुुआ है। सबका नवकार मंत्र एक है, भक्ताम्बर एक है, मंदिरों के प्रति श्रद्धा व आगम एक है, सिद्धांत एक है। संथारे के मामले में समाज अपनी एकता बता चुका है। ये समाज उस खरबूजे के समाने है जो छिलके पर अलग-अलग नजर आते है लेकिन छिलका उतर जाए तो एक नजर आते है।
जवाब-सही बात है जैन समाज मूलत: दो प्रमुख भागों श्वेताम्बर व दिगम्बर में बंटे हुए है। श्वेताम्बर फिर तीन भाग में है। ये बता दू कि ये सब अलग होने पर भी जब वक्त आया पूरा समाज एक हुुआ है। सबका नवकार मंत्र एक है, भक्ताम्बर एक है, मंदिरों के प्रति श्रद्धा व आगम एक है, सिद्धांत एक है। संथारे के मामले में समाज अपनी एकता बता चुका है। ये समाज उस खरबूजे के समाने है जो छिलके पर अलग-अलग नजर आते है लेकिन छिलका उतर जाए तो एक नजर आते है।
सवाल-महावीर जयंति आने वाली है जैन समाज को क्या संदेश देना चाहेंगे।
जवाब- भगवान महावीर कल भी वैसे ही थे जैसे आज है। उनके सिद्धांत ढाई हजार वर्ष बाद भी उतने ही मानवता के लिए उपयोगी है जितने पहले थे। जन्म कल्याणक को केवल शोभायात्रा तक उनकी बात सीमित नहीं रखा जाए। हर वर्ष इस दिन कुछ नया किया जाए। समाज के जो लोग निर्धन है उन्हें आगे बढ़ाया जाए। प्रतिभावान बच्चों को प्रोत्साहित किया जाए। भगवान महावीर के सिद्धांत जन-जन तक पहुंचाए जाए।
जवाब- भगवान महावीर कल भी वैसे ही थे जैसे आज है। उनके सिद्धांत ढाई हजार वर्ष बाद भी उतने ही मानवता के लिए उपयोगी है जितने पहले थे। जन्म कल्याणक को केवल शोभायात्रा तक उनकी बात सीमित नहीं रखा जाए। हर वर्ष इस दिन कुछ नया किया जाए। समाज के जो लोग निर्धन है उन्हें आगे बढ़ाया जाए। प्रतिभावान बच्चों को प्रोत्साहित किया जाए। भगवान महावीर के सिद्धांत जन-जन तक पहुंचाए जाए।