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चित्तौड़गढ़

याकां जाया पगे कौनी चाले

चित्तौडग़ढ़. यह महज उदाहरण है। रोडवेज का सिस्टम ऐसा है कि योजना आने से पहले ही फ ाइलों में दफन हो जाती है। इससे ना यात्रियों को फायदा मिल रहा ना ही प्रबंधन घाटे से उभर रहा। एक दशक में 15 योजनाओं का ढिंढोरा पीटा गया। हकीकत में इनमें एक भी योजना धरातल पर नहीं उतर पाई।

चित्तौड़गढ़Dec 05, 2021 / 07:21 pm

Avinash Chaturvedi

chittorgarh news

याकां जाया पगे कौनी चाले

चित्तौडग़ढ़. यह महज उदाहरण है। रोडवेज का सिस्टम ऐसा है कि योजना आने से पहले ही फ ाइलों में दफन हो जाती है। इससे ना यात्रियों को फायदा मिल रहा ना ही प्रबंधन घाटे से उभर रहा। एक दशक में 15 योजनाओं का ढिंढोरा पीटा गया। हकीकत में इनमें एक भी योजना धरातल पर नहीं उतर पाई। लीकेज को रोकने और यात्रियों को बेहतर सुविधा देने का रोडवेज ने योजना लाकर वाहवाही लूटी। कुछ दिन चलने के बाद बंद हो गई। राजस्थान पत्रिका ने पड़ताल की तो कुछ इसी तरह की चौकाने वाली स्थिति सामने आई। चित्तौडग़ढ़ आगार में भी इसे लागू करने का कई डिपो मैनेजरों ने मुख्यालय अफसरों के साथ कदमताल किया। हश्र वहीं हुआ जो प्रदेश में अन्य आगार का हुआ।
इन पर होना था कामए ताकी बदले रोडवेज की तस्वीर
रोडवेज की तस्वीर बदलने के लिए पैसेंजर फ ाल्ट योजना, मुफ्त इंटरनेट, बसों में कोडिंग व्यवस्था, बस सारथी, इनामी योजना, श्रेष्ट चालक-परिचालक को पुरस्कार, इंटर चैकिंग व्यवस्था, अनुबंध पर बसें लेने, ऑनलाइन बुकिंग, स्मार्ट कार्ड का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन पंचायत को पंचायत से जोडने समेत कई योजनाएं बनाई गई थी। इनमें कई योजना यात्रियों को रोडवेज की ओर खींचने की थी तो कई योजनाएं घाटे से उभरने और कमाई को बढ़ाना था।
आए अफ सर लाए योजनाए गए तो साथ में रवाना

रोडवेज की योजनाओं के धाराशायी होने का बड़ा कारण अफ सरों की अनदेखी है। नए सीएमडी आते ही वे नई योजनाओं को लेकर आते है। योजना लागू होती है उससे पहले तबादले के बाद उनके साथ योजना चली जाती है। नए अफसर उस पर ध्यान नहीं देते। लीकेज भी बड़ा कारण कई योजनाओं को रोडवेज मताहत ही लागू कराने में रूचि नहीं दिखाते। इसका बड़ा कारण लीकेज है। बिना टिकट यात्री करवाने और लीकेज के कारण योजना फ ाइलों में ही दम तोड़ देती है।
पैसेंजर फ ाल्ट योजना
बिना टिकट यात्रा को रोकने के लिए रोडवेज मुख्यालय ने पैसेंजर फाल्ट योजना बनाई। इसके तहत उडऩ दस्ते की जांच के दौरान बिना टिकट यात्री मिलने पर उससे जुर्माना वसूलना था। लेकिन योजना कारगार साबित नहीं हुई। झगड़े को देखते हुए इसे बंद कर दिया।
बसों में कोडिंग व्यवस्था

प्रदेश में श्रेष्ठ आगार के काम को दर्शाने के लिए हर रोडवेज में आगार का कोड नम्बर और गाड़ी के नम्बर अंकित करने की योजना थी। शुरुआत में योजना पर अमल हुआ। उसके बाद इसे भूला दिया। श्रेष्ठ आय देने वाले आगार का यात्रियों को पता नहीं चल पाता।
मुसाफि रों को मुफ्त इंटरनेट
रेलवे की तर्ज पर रोडवेज बस स्टैण्ड पर भी यात्रियों को निरूशुल्क इंटरनेट सुविधा देने की कागजी कार्रवाई साबित हुई। प्रायोगिक शुरुआत जयपुर मुख्यालय से हुई। लेकिन योजना में अमल में लाने से पहले दम तोड़ गई। यात्रियों को सुविधा का लाभ ही नहीं दे पाए।

इनका कहना है
मुख्यालय की ओर से लाई गई योजनाओं पर काम करते है। हालांकि कुछ योजनाएं नहीं चल पाई। यात्रियों को बेहतर सुविधा देने और लीकेज पर अंकुश लगाना रोडवेज प्रबंधन की पहली प्राथमिकता है।
– ओमप्रकाश चेचाणी, मुख्य प्रबंधक, चित्तौडग़ढ़ आगार

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