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यहां 2000 मराजों और तीमारदारों की जान अटकी है सांसत में

locationचुरूPublished: Dec 14, 2019 05:41:32 pm

Submitted by:

Brijesh Singh

Fire Fighting: अफसर ने खामियों का ऐसा पुर्जा थमाया कि दो साल होने को आए, न तो अब तक उन खामियों में से एक-आधा को छोड़ कर कोई निदान हो पाया और न ही एनओसी के लिए बात आगे बढ़ पाई।

यहां 2000 मराजों और तीमारदारों की जान अटकी है सांसत में

यहां 2000 मराजों और तीमारदारों की जान अटकी है सांसत में

चूरू. दो-तीन मंजिले किसी अस्पताल की इमारत के किसी कोने से निकलता धुआं। हड़बड़ाए मरीज और उनके परिजन। सीढिय़ां लगा कर उन्हें बचाने की कोशिशें करती फायर ब्रिगेड ( Fire Brigade ) और उसके कर्मचारी। घबराहट में किसी मरीज या परिजन का खौफनाक ढंग से बचने की आशा में छलांग लगा देना…। यह सब किसी फिल्म का सीन नहीं, बल्कि अक्सर टीवी समाचारों में दिख जाने वाले वह रीयल सीन हैं, जो देश के अंदर मौजूद इमारतों में अक्सर अग्निरोधी उपायों ( Fire Fighting ) की अनदेखी भयावह परिणाम के रूप में सामने आती है। पिछले दिनों दिल्ली में एक फैक्ट्री में हुए हादसे ( Delhi Fire Accident ) के बाद सार्वजनिक व्यस्तता वाली इमारतों में अग्निशमन के उपायों ( Fire Fighting Measures ) की कमी को लेकर कोई बेहतर उपाय नहीं किए गए हैं। जिससे हर समय खतरे की आशंका बनी हुई है।

उदाहरण के लिए जिले के सबसे बड़े अस्पताल डीबी जनरल हॉस्पिटल ( DBH Hospital ) को लेते हैं। सर्दी-खांसी, बुखार से लेकर गंभीर बीमारियों तक का इलाज कराने के लिए पूरे विश्वास के साथ यहां जो लोग आते हैं, उनके लिए पंखा रोड से महज चंद कदमों की दूरी पर स्थित यह जिले का सबसे बड़ा अस्पताल है। यहां औसतन 1500 ओपीडी रोज के साथ ही आईपीडी का भी आंकड़ा 100 के आसपास रहता है। 300 बेड का यह अस्पताल दशकों पुराना है। शायद यही वजह है कि यहां के गलियारों में फायर फाइटिंग यानी अग्निशमन के नाम पर कोई खास उपाय मौजूद नहीं हैं। गलियारे के किसी कोने में टंगा एकाध फायर इक्स्टिंगग्विशर ( Fire extinguisher ) यह आभास जरूर कराता है कि शायद कुछ दिनों पहले इस ओर किसी का ध्यान गया था कि अस्पताल में अग्निशमन के उपाय लगभग न के बराबर मौजूद हैं।

दो साल से एनओसी की जद्दोजहद, पर उपाय कुछ नहीं
जानकारी के मुताबिक, पिछले साल यानी जनवरी 2018 में पहली बार संजीदा तौर पर इस अस्पताल में अग्निरोधी उपाय न होने पर चर्चा हुई। ऑन गोईंग फायर एनओसी ( Fire NOC ) के लिए आवेदन किया गया। नतीजा यह हुआ कि अग्निशमन के तत्कालीन अफसर ( AFO ) ने फिजिकल वैरीफिकेशन के लिए दौरा किया। दौरे में एनओसी तो क्या मिलनी थी, अफसर ने खामियों का ऐसा पुर्जा थमाया कि दो साल होने को आए, न तो अब तक उन खामियों में से एक-आधा को छोड़ कर कोई निदान हो पाया और न ही एनओसी के लिए बात आगे बढ़ पाई।

कमेटी बनी, क्या करना है किसी को पता नहीं
गत दो सालों में फायर एनओसी की खातिर पीएमओ स्तर से महज एक कमेटी बनाई गई। कमेटी का काम लिखा-पढ़ी में तो यह है कि उसे अग्निशमन विभाग की ओर से भेजी कमियों को दूर करते हुए फायर एनओसी प्राप्त करने की दिशा में काम करना है। लेकिन खास बात यह है कि कमेटी के अधिकांश सदस्यों को यह भी नहीं पता कि उन्हें इस बाबत करना क्या है। इस कमेटी में एमसीएच में तैनात डॉ. रेणू अग्रवाल, डॉ. संदीप कुल्हेरी और मामराज इसराण शामिल हैं।

नई बनी एमसीएच बिल्डिंग के हाल…
भूतल और दो मंजिल वाली यह नया भवन मातृ एवं शिशु कल्याण विभाग ( mch churu ) है। इसके अलावा इमरजेंसी भी इधर ही है। यहां भी अग्निशमन अधूरे इंतजाम नजर आए। पाइपों के पैनल पहली मंजिल पर कई जगह खाली ही नजर आए। फायर डिटेक्शन सिस्टम लगा तो हैं, लेकिन लोग खड़े सिगरेट-बीड़ी पीते दिखे, लेकिन प्रशासन खामोश बना रहा।

ट्रेनिंग करवाएंगे
कमेटी के एक अहम सदस्य मामराज के मुताबिक, अस्पताल प्रशासन अग्निरोधी उपायों और लोगों में जागरूकता को लेकर संजीदा है। जल्द ही संभवत: अगले कुछ दिनों में ही अस्पताल के कर्मचारी/अधिकारियों के साथ ही आम लोगों को जागरूक करने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित करने का विचार किया जा रहा है।

…कुछ हो जाए तो बचने का एक ही रास्ता
नई बनी एमसीएच इमारत में यूं तो फायर सिस्टम आधा-अधूरा ही सही, लेकिन लगा हुआ है। लेकिन दो मुख्य निकास द्वार में से एक का बंद रहना कई सवाल भी खड़े करता है। मसलन लिफ्ट के पास वाली सीढिय़ां बंद हैं और रैंप की ओर वाला निकास खुला हुआ है। इसके अलावा दो में से एक लिफ्ट चलती हालत में शुक्रवार को दिखी। इस इमारत में महिलाओं के वार्ड, ऑपरेशन थियेटर समेत कई महत्वपूर्ण इकाइयां हैं।

इन खामियों पर दिलाया ध्यान
बताते हैं कि फायर ऑफिसर ने अग्निशमन उपायों की जो लिस्ट थमाई, उनमें महज फायर इक्स्टिंगग्विशर ( Extinguisher ) को लेकर जरूर कुछ काम हुआ, पर वह भी नाकाफी ही साबित हुआ। लिस्ट के अनुसार इमारत परिसर के हर 15 मीटर की दूरी पर फायर इक्स्टिंगग्विशर होने चाहिए थे। इसके अलावा ऑटोमेटिक डिटेक्शन सिस्टम, दो पंपसेट, फायर हाइड्रेंट , 30 हजार लीटर के ओवरहेड टैंक, दो बड़ी सीढिय़ों ( ladder ) , रैंप आदि की जरूरत बताई गई। खास बात यह रही कि जिस समय अफसर मुआयना कर रहे थे, उसी समय गैस रिसाव भी पकड़ में आया। उस ओर भी उन्होंने ध्यान दिलाया। यह मुआयना हुए भी तकरीबन पौने दो साल का समय गुजर चुका है, लेकिन इनमें से फायर इक्स्टिंगग्विशर के नाम पर महज 11 सिलेंडर उपलब्ध हैं। इसके अलावा नौ और सिलेंडर बताए जा रहे हैं, जो इस अस्पताल से संबद्ध अन्य अस्पतालों जैसे 33 बेड वाले जेएमबी आदि में हैं।

अस्पताल के कार्यवाहक अधीक्षक डॉ. एफ एच गौरी का कहना है कि अग्निशमन उपायों को लेकर हम संजीदा हैं। सारे उपाय किए जा रहे हैं। फायर एनओसी के लिए जो भी कमियां सामने आई थीं, उन्हें दूर करने की दिशा में काम हो रहा है। शीघ्र फायर एनओसी मिल जाएगी। मॉक ड्रिल आयोजित कर लोगों को प्रशिक्षित करने की योजना बना रहे हैं।

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