पेंशन बंद करने पर मीसाबंदियों ने सरकार से सवाल किया है कि निर्णय लेने से पहले एक बार अवस्था को देख लेना चाहिए था। मीसा बंदी माधव शर्मा ने बताया कि आपातकाल के बाद वापस घर लौटे तो जानकारों ने उनसे मुंह फेर लिया। कोई मदद के लिए तैयार नहीं हुआ, बच्चों को पढ़ाई लिखाई के लिए रिश्तेदारों के पास में भेजना पड़ा। बड़ी मुश्किल से गुजर-बसर की। आज पूरी तरह से बेरोजगार हो गए हैं, अभी तक पेंशन के जरिए पेट भर रहा था। लेकिन सरकार ने उसे भी बंद कर परेशानियों को बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से लाखों रुपए अन्य योजनाओं पर खर्चा किया जा रहा है। लेकिन वर्तमान सरकार को मीसा बंदी बोझ लग रहे हैं।
बंदी के तौर पर पेंशन लेने वाले वो लोग शामिल हैं, जिन्होने आपातकाल का विरोध जताया। मीसा बंदी वे थे जिन्हें कलक्टर के आदेशों से जेल में बंद किया गया। जबकि डीआइआर वे बंदी थे, जिन्होंने आपातकाल के दौरान धरना प्रदर्शन किया था।
मीसा बंदी शर्मा ने बताया कि आपातकाल का पूरे देश में विरोध हुआ, लेकिन केवल गुजरात ही ऐसा राज्य था। जहां पर इसका विरोध नहीं किया गया। ऐसे में गुजरात को छोड़कर देश के हर राज्य में मीसा बंदी हैं। उन्होंने बताया कि तत्कालीन वसुंधरा राजे की सरकार ने प्रदेश में पेंशन शुरू की थी। लेकिन गहलोत सरकार ने इसे बंद कर कुठाराघात किया है।
&राज्य सरकार ने हाल ही में दो दिन पहले बैठक कर मीसा बंदियों की पेंशन बंद करने का निर्णय किया है। ये सरकार के स्तर पर किया गया निर्णय है।
रामरतन सौंकरिया, अतिरिक्त जिला कलक्टर, चूरू