जिसका बड़ा कारण नगद पूंजी का अभाव होना है। ग्रामीण मजदूर महिलाओं से बंधेज के कपड़े लाने पर उनको मजदूरी का पैसा नगद देना पड़ता है जिसका अभी अभाव है। दूसरा कारण है कि लॉक डाउन के दौरान गांवों में कारोबारियों का आना-जाना भी नहीं हो पा रहा है। इससे भी बड़ा कारण, स्थानीय बंधेज के वस्त्र जो विदेशों में जाते (निर्यात) थे, वह फिलहाल रुका हुआ है इसलिए निर्यातकों से कारोबारियों को नगद राशि नहीं मिल पा रही है। स्थानीय निर्माताओं-व्यापारियों, श्रमिकों के पास जो जमा पूंजी थी, वह लॉक डाउन में खर्च हो चुकी है।
पहचान है बंधेज कार्य की
राजस्थानी महिलाओं की पारम्परिक वेशभूषा में बंधेज का प्रचलन बहुत ज्यादा रहा है। जब से सूती वस्त्रों को प्रयोग में लिया जाने लगा है बंधेज महिलाओं के ओढ़णे तथा पुरुषों के साफे का प्रतीक बना हुआ है। बंधेज का साफा धारण करने वाला पुरुष या बंधेजी ओढणे ओढऩे वाली महिलाओं की खास पहचान होती है। स्थानीय कारोबारियों ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जो जोधपुरी साफा बांधते हैं, वह सुजानगढ़/लाडनूं से ही जोधपुर जाता है। सुजानगढ़ की स्थापना के साथ ही बंधेजी कार्य करने वाली छींपा जाति यहां बस गई, क्योंकि उस समय यहां ऊपरी सतह पर पानी था और बंधेज कार्य के लिए अधिक पानी की जरूरत होती है। बंधेज कार्य के कारण शहर की प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में पहचान है। यह उद्योग बारीक हस्त कारीगरी से जुड़ा है। बुजुर्ग लोग बताते है ंकि शुरुआती दौर में मुबारक व खाजू छींपा ने काफी मेहनत कर इसे जमाया जबकि नयाबास के अल्ताफ व हनीफ छींपा ने चूंदड़ी साफे में नाम कमाया।
5 से 10 करोड़ रुपए का नुकसान
कारोबारी हनीफ भाटी बताते है कि यहां पर करीब 500 व्यवसायी व निर्माता हैं जो 1300 शहरी व 11 हजार से ज्यादा ग्रामीण महिलाओं से यह बंधेज कार्य देकर रोजगार दे रहे हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी छींपा जाति के लोगों की ही इस कार्य पर पकड़ है। 30-40 वर्ष पहले लकड़ी व लोहे के छापे (ब्लॉक्स) से काम करते थे जबकि अब नई तकनीक आने से प्लास्टिक से छापे लगते हैं। पहले गोलचांद, पनिहारी, मोरछाप, घाटतोला, पनघट, मामा चंूदड़ी जैसे ब्रॉड से पहचान थी जो अब कलर के नामों से जानी जाती है।
विदेशों मे मांग
बकौल हनीफ, स्थानीय बंधेज माल की फ्रांस, इंडोनेशिया, दुबई, कुवैत आदि देशो में जयपुर निर्यातको के माध्यम से आपूर्ति होती है क्योंकि स्थानीय कारोबारी निर्यात अनुज्ञापत्र की औपचारिकता पूरी नहीं कर पा रहे हैं। देश के आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, दिल्ली, हरियाणा, गुजरात में काफी माल जाता है। वे कहते हैं कि मजदूर महिलाओं व व्यवसाय से जुड़े निर्यातकों को मेहनत का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है।
कमर टूटी लॉक डाउन में
निवर्ततान अध्यक्ष भाटी बताते हैं कि बंधेज से जुड़े कारोबारी, मजदूर सभी अपने-अपने ठोर-ठिकानों पर ही हैं लेकिन अभी सब के सब बेरोजगार हैं, कारण यह है कि चेन सिस्टम गड़बड़ा गया है। जयपुर-जोधपुर सहित अन्य बड़े व्यवसायियों से राशि न मिलने से मजदूर महिलाओं को बकाया राशि देने में देरी हो रही है और गांवों में घर-घर जाकर उनको नया माल (वस्त्र) भी नहीं दिया गया है। केन्द्र व राज्य सरकार इस उद्योग को प्रोत्साहित करने का पैकेज बनाकर मदद करे तो बेहतर ढंग से फल-फूल सकता है।