श्रमेव जयते के मंत्र को अपनाकर श्रम और सम्मान भरी आजीविका का नया रास्ता चुन लिया। वतन आकर वापस से नई शुरुआत की, हालांकि पहले उन्हें कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन धीरे-धीरे अब काम चलने लगा है। जानकारों की माने तो कुछ लोग ऐसे है जो कि अब विदेश नहीं जाना चाहता। लेकिन अधिकांश अभी भी खाड़ी जाना चाहते हैं। सरकार की ओर से खाड़ी देशों से लौटे कामगारों के लिए रोजगार की व्यवस्था के प्रयास किए गए, लेकिन सफल नहीं हो पाए।
जाने चाहते है लेकिन काम नहीं जानकारों की माने तो खाड़ी देशों में काम के बदले वेतन अधिक होने के कारण युवाओं जाने चाहते हैं। लेकिन कोरोना के बाद में स्थितियां अब पूरी तरह से बदल चुकी है। खाड़ी देशों से लौटे युवाओं की माने तो वहां पर अधिकांश कंपनियां बंद हो चुकी है। छंटनी के कारण कंपनियां अब युवाओं को वापस बुलाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। कोरोना के पहले अधिकांश लोग छुट्टी लेकर घर लौटे थे, उनकी वीजा अवधी भी पूरी हो चुकी है। जमा पूंजी कोरोना के दौरान परिवार का पालन-पोषण में खत्म हो गई। ब्याज पर लेकर वापस लौटना कामगारों के लिए भारी साबित हो रहा है। दूसरी तरफ जिस कंपनी में जिले के युवा काम करते थे, उन्होंने अभी तक पिछला बकाया भुगतान नहीं किया है। कंपनियां कोरोना के बाद आर्थिक संकट के चलते बंद हो गई है, ऐसे में अब रोजगार के साधन नहीं है। ऐसे में विदेश लौटने के रास्ते बहुत कम हो गए हैं।
शुरू किया रोजगारकामगारों की माने तो खाड़ी देश में रोजगार नहीं मिलने पर जिले में ही स्वयं का रोजगार शुरू किया। कोरोना के दौरान अधिकांश युवाओं की पसंद खेती रही, ऐसे में खेती में आधुनिक तकनीक अपनाकर अच्छा मुनाफा कमाया। इसके अलावा किसी ने सब्जी व किराणा आदि की दुकाने लगाकर व्यवसाय शुरू किया, ऐसे में अच्छी आमदनी होने के कारण अब कई युवाओं का खाड़ी देशों के प्रति मोहभंग हो चुका है।
पहली लहर में लौटे खाड़ी से लौट अहसान ने बताया कि जेदा से कोरोना की पहली लहर में चूरू लौटे थे। लॉकडाउन के कारण वापस लौटना मुश्किल हो गया। कंपनी ने भी छंटनी शुरू कर दी, बकाया रुपए भी नहीं लौटाए। उन्होंने बताया कि स्थिति को देखते हुए वापस विदेश लौटने के बजाए शहर में रहकर काम करने का विचार किया। ऐसे में शास्त्री बाजार में अपनी पिता की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि विदेश जितने तो नहीं कमा पाते, लेकिन अभी इतना कमा लेते है कि परिवार का पालन-पोषण अच्छी तरह से कर सके।
कंपनी ने कर दी छटनी काजियो का मोहल्ला, चमन बास निवासी मोहम्मद जुबैर ने बताया कि दोहा-कतर स्थित एक कंपनी में इलेक्ट्रीशियन के पद पर कार्यरत थे। कोरोना की पहली लहर शुरू होने से कुछ दिन पहले चार माह की छुट्टी लेकर लौटे थे। लेकिन कोरोना के बाद अचानक स्थितियां बदल गई। उन्होंने बताया कि वापस जाने की कोशिश की, लेकिन कंपनी ने वापस नहीं बुलाया। अधिकांश कर्मचारियों की छटनी कर दी गई। उन्होंने बताया की सारी परिस्थितियां देखकर शहर में काम शुरू किया। जुबैर ने बताया कि अब धीरे-धीरे काम आने लगा है। उन्होंने बताया कि विदेश जाना चाहते है, लेकिन आर्थिक तंगी होने के साथ ही अब कंपनी में भी काम नहीं है।