उन्होंने बताया कि मशरूम को लगाने के लिए कम तापमान की आवश्यकता रहती है, साथ ही इसकी खेती में बहुत अधिक सावधानी रखनी पड़ती है। चूरू जिले में जहां गर्मियों में तापमान 50 डिग्री पार कर जाता है, सर्दियों में माइनस में पहुंच जाता है। ये परिस्थितियां इसकी खेती में एक बहुत चुनौती थी। उन्होंने बताया कि इसके लिए देसी जुगाड़ तैयार कर खेत में बड़ा झौपड़ा तैयार किया, तापमान नियंत्रण के लिए झौपड़ी के चारों तरफ गोबर का लेप किया।
साथ ही पानी के लिए फोगर लगाकर तापमान को मशरूम की खेती के लिए अनुकूल किया गया। उन्होंने बताया कि बटन व ओस्टर सहित आठ प्रकार की मशरूम लगाई गई। बटन मशरूम के लिए 15 से 18 डिग्री व ओस्टर के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान अनुकूल माना जाता है। किसान दहिया ने बताया कि चूरू शहर में कुछ लोग ही मशरूम को खाना पसंद करते थे, ऐसे में पहले साल उत्पादन ठीक होने के बाद बिक्री नहीं हुई। बाद में सोशल मीडिया के जरिए प्रचार-प्रसार करने पर खरीद के ऑर्डर आने शुरू हो गए, अब खेती से सालाना करीब दस लाख रुपए तक कमा लेते हैं।
उन्होंने बताया कि ओस्टर मशरूम कैंसर रोगियों के लिए काफी फायदेमंद रहती है, वैसे सभी प्रकार की मशरूम खाने से शरीर को फायदा होता है। उन्होंने बताया कि मशरूम के लिए खाद भी स्वयं ही तैयार करते हैं। दहिया ने बताया कि मशरूम की खेती के दौरान बहुत सावधानी रखनी पड़ती है, नहीं तो फसल नष्ट होने का खतरा रहता है। खेती के दौरान उनके अलावा एक श्रमिक ही दवाई देने मशरूम तोडऩे के लिए जाता है।
बनाते हैं अचार व बिस्किट
दहिया ने बताया कि मशरूम पौष्ठिकता से भरपूर होता है, ऐसे में वे स्थानीय बेकरी के माध्यम से बिस्किट भी तैयार कराते हैं, इसके अलावा अचार की भी बाजार में बहुत मांग रहती है। उन्होंने बताया कि मशरूम की खेती मुनाफे का सौदा है, लेकिन सही तरीके से बुवाई नहीं करने के कारण किसान को नुकसान होता है। दहिया ने बताया कि बड़ी-बड़ी संस्थानों में इसके प्रशिक्षण के लिए शुल्क लिया जाता है, लेकिन वो खेती के इच्छुक किसानों को इसका निशुल्क प्रशिक्षण देते है।