कोरोना वायरस का संक्रमण इस समय उफान पर है। गत आठ मई के पहले के 14 संक्रमितों के आंकड़े की आड़ लेकर देखें, तो भरोसा ही नहीं होगा कि गत डेढ़ महीने की अवधि में संक्रमितों की तादाद 14 की तुलना में 314 तक जा पहुंची है।
बृजेश सिंह
चूरू. कोरोना वायरस का संक्रमण इस समय उफान पर है। गत आठ मई के पहले के 14 संक्रमितों के आंकड़े की आड़ लेकर देखें, तो भरोसा ही नहीं होगा कि गत डेढ़ महीने की अवधि में संक्रमितों की तादाद 14 की तुलना में 314 तक जा पहुंची है। हालांकि, राहत और हौसला देने वाला तथ्य यह है कि भले ही चूरू में संक्रमितों की तादाद सैकड़ों का आंकड़ा पार कर रही हो, लेकिन यहां गंभीर किस्म के मरीजों की तादाद लगभग न के बराबर है। आईसीएमआर की गाईडलाइन और परिभाषा के परिप्रेक्ष्य में देखें, तो लगभग ढाई फीसदी या उससे भी कम मरीज मॉडरेट श्रेणी में आते हैं, जिन्हें वस्तुत: ‘इंजेक्टिबलÓ दवाओं की जरूरत पड़ रही है।
80 फीसदी को नहीं पड़ी दवाओं की जरूरत
29 जून की शाम तक के आंकड़ों के हवाले से देखें, तो 314 संक्रमितों में से चूरू अस्पताल और एएनएमटीसी सेंटर स्थित डेडिकेटेड कोविड केयर सेंटर में 236 मरीजों का गत 30 मार्च से लेकर अब तक इलाज हो चुका है। अब भी चूरू में कुल मिला कर 22 एक्टिव केस हैं, जिनका यहां अस्पताल अथवा निजी सुविधा में इलाज चल रहा है। मरीजों के इलाज के लिए तीन मेडिसिन यूनिटों में से एक के प्रभारी सहायक आचार्य डॉ. दीपक चौधरी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। डॉ. चौधरी के मुताबिक इलाज के दौरान यह तथ्य सामने आया है कि अधिकतर मरीज न सिर्फ असिम्टोमैटिक यानी कि अलाक्षणिक हैं, बल्कि उनमें से कइयों को तो डिस्चार्ज होने तक न तो बुखार-खांसी जैसी सामान्य परेशानियां हुईं और न ही छींक जैसा भी कुछ आया। नतीजे में उन्हें आईसीएमआर की गाइडलाइन के अनुसार ही अनुमन्य इलाज दिया गया। वे ठीक होकर घर जा चुके हैं।
11 रोगी, जिनमें दिखे गंभीर लक्षण
डॉ. चौधरी के मुताबिक, चूरू से कुल मिला कर 10 मरीजों को बीकानेर अथवा जयपुर इलाज के लिए रैफर किया गया। ऐसे एक मरीज का यहीं चूरू में इलाज हुआ। क्योंकि इन मरीजों को मॉडरेट श्रेणी का माना गया। इनमें श्वसन संबंधी दिक्कतों के अलावा चेस्ट एक्सरे में पैचे•ा, ऑक्सीजन लेवल का स्तर नीचे होना, उम्र में 55-6 0 या उससे अधिक होना, बीपी-शुगर का मरीज होने जैसे कॉम्लीकेशंस थे। डॉ. चौधरी के मुताबिक, इन्हें छोड़ दिया जाए, तो कम से कम चूरू में इलाज के लिए आए रोगियों में से अधिकांश ऐसे ही थे, जिन्हें सामान्य उपचार या कईयों को तो उसकी भी जरूरत नहीं पड़ी।
करीब 15 फीसदी को देनी पड़ी सामान्य दवाएं
एक अन्य मेडिसिन यूनिट के प्रभारी डॉ. एफएच गौरी ने भी तकरीबन इसी तथ्य की ओर इशारा किया। उनका कहना था कि चूरू में आए मरीजों में से तकरीबन 8 0 फीसदी में लक्षण बिलकुल ही नहीं थे। हालांकि, उन्हें आईसीएमआर की गाइडलाइन के अनुरूप इलाज दिया गया। तकरीबन 15 फीसदी मरीज ऐसे थे, जिन्हें बुखार-खांसी आने पर पैरासिटामोल अथवा खांसी की सामान्य दवाएं देने की जरूरत पड़ी।
चूरू में आए मरीज
चूरू में संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे चिकित्सकों की मानें, तो यहां तकरीबन 95 फीसदी मरीज माइल्ड श्रेणी के थे, जिन्हें या तो कोई लक्षण नहीं थे अथवा भर्ती के दौरान कभी हल्का बुखार या खांसी आ गई। बाकी के पांच फीसदी में से करीब ढाई फीसदी मरीज (तकरीबन एक दर्जन) ऐसे थे, जिन्हें इंटेक्टेबल दवाओं की जरूरत पड़ी। कुछ को ऑक्सीजन सपोर्ट भी देना पड़ा, क्योंकि उनका सैचुरेशन स्तर 92 फीसदी से नीचे था।
सिर्फ एक मामला ऐसा, जो रहा चुनौतीपूर्ण
चिकित्सकों से मिली जानकारी के मुताबिक, इनमें से भी सिर्फ एक मरीज ऐसा रहा, जिसे वस्तुत: हम गंभीर मरीज की श्रेणी में डाल सकते हैं। उस मरीज में श्वसन की गति 24 से अधिक थी। आक्सीजन का सैचुरेशन लेवल भी 92 फीसदी से कम था। उसे 2 से 4 लीटर ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी। खून पतला करने की दवाइयां देनी पड़ीं। हिपैटिन इंजेक्शन की भी आवश्यकता इस मामले में पड़ती रही।
कौन हैं मॉडरेट श्रेणी के मरीज
हल्का निमोनिया के लक्षणों वाला, सांस लेने में दिक्कत, सांस लेने की गति 24 से 28 के बीच हो और शरीर के अंदर ऑक्सीजन लेवल 90 फीसदी से कम हो (नई गाइडलाइन में 92 फीसदी से कम), बीपी शुगर का मरीज हो, श्वसन संबंधी दिक्कतें पहले से हों, किसी अन्य गंभीर रोग से ग्रस्त हो, 6 0 से ज्यादा उम्र वाला हो, चेन स्मोकर, अस्थमा मरीज, गर्भवती महिला मॉडरेट श्रेणी में आती है। यही केस बिगड़ जाने पर गंभीर मामलों में तबदील हो जाते हैं।
हेल्दी डाइट ने भी की मदद
मरीजों के इलाज में हाई प्रोटीन और एंटी ऑक्सीडेंट युक्त भोजन ने भी मदद की। इसके अलावा आयुर्वेद विभाग की ओर से मरीजों को काढ़ा वितरण भी किया गया। चिकित्सकों की मानें, तो हेल्दी डाइट ने मरीजों के उपचार में काफी हद तक मदद की।