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सर्जन ना फिजीशियन, कैसे हो मरीजों का उपचार

locationचुरूPublished: Sep 16, 2017 11:20:42 am

Submitted by:

Rakesh gotam

सरकार कागजों में मरीजों के इलाज के लिए अनेक कदम उठा रही है। लेकिन अस्पतालों की हकीकत कुछ और ही है।

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सांडवा. सरकार कागजों में मरीजों के इलाज के लिए अनेक कदम उठा रही है। लेकिन अस्पतालों की हकीकत कुछ और ही है। विशेषज्ञों का अभाव, मशीनों व टेक्नीशियनों की कमी के कारण मरीजों को त्वरित लाभ नहीं मिल रहा। उन्हे आज भी उपचार के लिए भटकना पड़ रहा है।
सांडवा स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 10 ग्राम पंचायतों के 25 गांवों के मरीज इलाज के लिए आते हैं। लेकिन आज भी अस्पताल 30 बेड का है। 200 से अधिक मरीज रोजाना इलाज के लिए आते हैं लेकिन विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं होने के कारण उन्हे बीकानेर व सीकर जाना पड़ रहा है। सीएचसी में एक सर्जन, एक फिजीशियन व तीन चिकित्सा अधिकारी के पद सृजित हैं। इसमें से केवल तीन चिकित्सा अधिकारी कार्यरत हैं। तीन में से दो चिकित्सक अभी अवकाश पर है जिसके चलते बीदासर से एक चिकित्सक को डेपुटेशन पर लगाया गया है।
महिला रोग विशेषज्ञ भी नहीं

सर्जन चिकित्सक के अभाव में छोट-छोटे ऑपरेशन के लिए ऑपरेशन मरीजों को रैफर करना पड़ता है। ऑपरेशन थिएटर का उपयोग केवल महीने में एक बार नसबंदी शिविर में ही होता है। वहीं, महिला रोग विशेषज्ञ, शिशु डॉक्टर, नेत्र चिकित्सक व दंत चिकित्सक का पद सृजित ही नहीं है। इसके कारण महिलाओं को उपचार व परामर्श के लिए सुजानगढ़ या बीकानेर जाना पड़ता है। गर्भवती महिलाओं के लिए प्रसव के समय थोड़ी सी जटिलता होते ही अन्यत्र रैफर करना पड़ता है।
ईसीजी मशीन का भी नहीं हो रहा उपयोग

अस्पताल में ईसीजी मशीन है लेकिन कर्मचारी नहीं होने के कारण ईसीजी का भी फायदा नहीं मिल रहा। एक्सरे मशीन की व्यवस्था है लेकिन केवल लैब टेक्नीशियन के भरोसे ही संचालित हो रही है। रेडियोग्राफर का पद रिक्त है।
रैफरल अस्पताल बनकर रह गई सीएचसी

सरदारशहर. दो सौ दस गांवों वाली तहसील के सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल को आज भी विकास का इंतजार है। सुविधाओं व विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी के कारण मरीजों को बीकानेर व चूरू जाना पड़ रहा है। ६५ बेड राजकीय चिकित्सालय धूल फांक रहा है। महंगे उपकरण, ऑपरेटरों का अभाव, दवा की कमी की मरीजों के परेशानी का शबब बन गई है। चिकित्सकों से लेकर वार्ड बॉय तक के कई पद खाली हैं। यहां सोनोग्राफी तक नहीं हो रही। दो एक्स-रे मशीन हैं लेकिन उनको चलाने वाला स्थायी कर्मचारी नहीं है। मेगा हाइवे बनने के बाद सड़क हादसे बढ़े हैं। चिकित्सालय में हड्डी रोग विशेषज्ञ नहीं होने के कारण घायलों को प्राथमिक उपचार कर बीकानेर रैफर करना पड़ता है। कई बार घायल रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। असुविधाओं के कारण लोग आना ही नहीं चाहते।
चिकित्सालय को 100 बेड करने व ट्रोमा सेन्टर शुरू करने की मांग लम्बे समय से चल रही है। कुछ महीने पहले तत्कालीन चिकित्सा मंत्री राजेन्द्रसिंह राठौड़ ने चिकित्सालय एवं पंचायत समिति में आयोजित कार्यक्रम में 100 बेड चिकित्सालय की घोषणा की थी। फिर भी चिकित्सालय 100 बेड का नहीं हुआ। एक महिला चिकित्सक को लगाया लेकिन कार्यभार ग्रहण कर छुट्टी पर चली गई, जिससे महिलाओं को फायदा नहीं हुआ।
सोनोग्राफी सुविधा शुरू करने के लिए अधिकारियों को पत्र लिखा गया है। सुविधाओं व स्टाफ के मुताबिक अस्पताल में आने वाले मरीजों का उपचार किया जाता है।

डा. राजेश गुप्ता, कार्यवाहक प्रभारी, सीएचसी, सरदारशहर

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