गणगौर के लोकगीतों की गली-गली गूंज: गौर-गौर गौमती ईसर पूजे पार्वतीगणगौर के लोकगीतों की गली-गली में गूंज रही स्वर लहरियांगणगौर पूजन को लेकर महिलाओं में खासा उत्साहचूरू. गणगौर पूजन को लेकर महिलाओं में खासा उत्साह है। परम्परागत रूप से महिलाएं जिले में राजपूती पहनावे के साथ गणगौर का पूजन करतीं देखी जा रही हैं। महिलाएं व युवतियों ने व्रत भी किया। मिट्टी के ईशर, गौरा व गणेश बना कर उन्हे श्रृंगारित किया। गणगौर पूजन करने वाली महिलाएं व युवतियां सुबह सामूहिक रूप से खेड़े खांडे लाडू लायो, लाडू बिराएं दियो, बीरो गुट कयगो, चूनडु उड़ायगो, चूनड़ म्हारी अब-छब, बीरो म्हारो अमर... रानियां पूजे राज में, मैं म्हाका सुहाग में..., जैसे मंगल गीत गाते हुए हरी घास व फूल लेकर आती है। गणगौर माता को दूध व जल से स्नान कराकर पूजन करती है। गीत गाकर उन्हें खूब रिझाती है। चूरू. सादुलपुर. राजस्थान की आन-बान-शान सांस्कृतिक तथा परम्परागत संस्कारों और संस्कृति को विरासत में संजोकर मनाया जाने वाला पर्व गणगौर के लोकगीतों की गूंज गली-गली में सुनाई देने लगी है प्रात: होते ही नवविवाहिताएं अपनी सहेलियों के साथ गणगौर को जगाना, नए वस्त्रों व आभूषणों से श्रृंगार करना, पूजन करना कार्य के साथ गौर-गौर गौमती ईसर पूजे पार्वती, पार्वती का आल्या-गोल्या गौर का सोना का टीका जैसे सुमधुर गीतों से शहर में रौनक देखते ही बनती है। फाल्गुन माह में होली के दूसरे दिन धुलण्डी पर्व से ही नवविवाहिताएं व बालिकाएं अपने अमर सुहाग की कामना के लिए शिव व पार्वती के इस पर्व की शुरूआत करती है, यह पर्व सौलह दिनों तक चलता है। महारणा प्रताप चोक के पास पूनम स्वीटी प्रीति मोनिका बबीता नेहा पारुल सुमन मंजू मोनिका पूनम राधा मुस्कान ने गौर का बंदौरा निकालकर गणगौर की पूजा अर्चना की।
गणगौर के लोकगीतों की गली-गली गूंज: गौर-गौर गौमती ईसर पूजे पार्वतीगणगौर के लोकगीतों की गली-गली में गूंज रही स्वर लहरियांगणगौर पूजन को लेकर महिलाओं में खासा उत्साहचूरू. गणगौर पूजन को लेकर महिलाओं में खासा उत्साह है। परम्परागत रूप से महिलाएं जिले में राजपूती पहनावे के साथ गणगौर का पूजन करतीं देखी जा रही हैं। महिलाएं व युवतियों ने व्रत भी किया। मिट्टी के ईशर, गौरा व गणेश बना कर उन्हे श्रृंगारित किया। गणगौर पूजन करने वाली महिलाएं व युवतियां सुबह सामूहिक रूप से खेड़े खांडे लाडू लायो, लाडू बिराएं दियो, बीरो गुट कयगो, चूनडु उड़ायगो, चूनड़ म्हारी अब-छब, बीरो म्हारो अमर... रानियां पूजे राज में, मैं म्हाका सुहाग में..., जैसे मंगल गीत गाते हुए हरी घास व फूल लेकर आती है। गणगौर माता को दूध व जल से स्नान कराकर पूजन करती है। गीत गाकर उन्हें खूब रिझाती है। चूरू. सादुलपुर. राजस्थान की आन-बान-शान सांस्कृतिक तथा परम्परागत संस्कारों और संस्कृति को विरासत में संजोकर मनाया जाने वाला पर्व गणगौर के लोकगीतों की गूंज गली-गली में सुनाई देने लगी है प्रात: होते ही नवविवाहिताएं अपनी सहेलियों के साथ गणगौर को जगाना, नए वस्त्रों व आभूषणों से श्रृंगार करना, पूजन करना कार्य के साथ गौर-गौर गौमती ईसर पूजे पार्वती, पार्वती का आल्या-गोल्या गौर का सोना का टीका जैसे सुमधुर गीतों से शहर में रौनक देखते ही बनती है। फाल्गुन माह में होली के दूसरे दिन धुलण्डी पर्व से ही नवविवाहिताएं व बालिकाएं अपने अमर सुहाग की कामना के लिए शिव व पार्वती के इस पर्व की शुरूआत करती है, यह पर्व सौलह दिनों तक चलता है। महारणा प्रताप चोक के पास पूनम स्वीटी प्रीति मोनिका बबीता नेहा पारुल सुमन मंजू मोनिका पूनम राधा मुस्कान ने गौर का बंदौरा निकालकर गणगौर की पूजा अर्चना की।