गोवंश की भूख-प्यास और पीड़ा को भी चेहरे, आवाज और हावभाव से पहचान लेते हैंरविप्रकाश लूणिया को गोपालन में मिल चुके हैं कई अवार्ड चूरू. सरदारशहर. अक्सर सुनते हैं कि प्रेम की भाषा पशु भी समझते हैं। लेकिन, यह देखना भी है तो कस्बे के वार्ड 13 में स्थित लूणिया के नौहरे में देखा जा सकता है। जहां गायों की सेवा में जुटे रविप्रकाश लूणिया का गोवंश से ऐसा गहरा नाता जुड़ा हुआ है कि दोनों एक दूसरे के भाषा व भाव बड़ी आसानी से समझते हैं। रवि के एक इशारे पर गोवंश दौडा़ चला आता है स्नेह के साथ उनके इर्द-गिर्द घूमने लगता है। रविप्रकाश लूणिया एक ही गाय से 62 गोवंश की गोशाला बना डाली। गाय व सांड से लेकर छोटे छोटे बछड़े भी शामिल हैं। जिनके अलग अलग नाम है। रवि की आवाज से ही वे उनके पीछे चल देते हैं। गोवंश की भूख-प्यास और किसी पीड़ा को भी रवि उनके चेहरे, आवाज और हावभाव से पहचान लेते हैं। उसके हिसाब से वह उनकी हर जरुरत भी तुरंत पूरी करते हैं। गौशाला के अन्य कर्मचारियों के अनुसार रवि जब तक गोवंश की सेवा नहीं करते तब तक मन को चैन नहीं मिलता। सुबह 5 से 12 बजे तक व शाम को 5 से 7 बजे तक सेवा में जुटे रहते है। बचपन से था गोपालन का शौकपिता हनुमानमल व माता पुष्पादेवी के घर 14 दिसम्बर 1980 को जन्मे रविप्रकाश लूणिया का बचपन से गोपालन का शौक था। बचपन में दादा पुनमचन्द लूणिया व पिता हनुमानमल लूणिया के सामने गाय लाने की जिद की। लेकिन परिजनों ने बच्चा कही गाय के चपेट में आकर घायल नहीं हो जाए इस भय से गाय नहीं लाए। लेकिन रवि ने जिद नहीं छोड़ी, जब वे 15 वर्ष के हुए तो दादा 4 माह की बछड़ी घर लेकर आए। रवि बछड़ी के साथ खेलता और सेवा भी करने लगा। बछड़ी गाय का रूप धारण कर लिया। उस गाय से आज रवि के पास 62 गोवंश है। जो सब काम छोड़कर नियमित सेवा करते हैं। रवि के पिता हनुमानमल लूणिया, बड़ा भाई बजरंग लूणिया सहित परिवार के लोग देश प्रदेश में व्यापार करते है। लेकिन रवि ने व्यापार की जगह गोपालन को चुना और 15 वर्ष की आयु से वे गोपालन में लगे हुए हैं। े
गोवंश की भूख-प्यास और पीड़ा को भी चेहरे, आवाज और हावभाव से पहचान लेते हैंरविप्रकाश लूणिया को गोपालन में मिल चुके हैं कई अवार्ड चूरू. सरदारशहर. अक्सर सुनते हैं कि प्रेम की भाषा पशु भी समझते हैं। लेकिन, यह देखना भी है तो कस्बे के वार्ड 13 में स्थित लूणिया के नौहरे में देखा जा सकता है। जहां गायों की सेवा में जुटे रविप्रकाश लूणिया का गोवंश से ऐसा गहरा नाता जुड़ा हुआ है कि दोनों एक दूसरे के भाषा व भाव बड़ी आसानी से समझते हैं। रवि के एक इशारे पर गोवंश दौडा़ चला आता है स्नेह के साथ उनके इर्द-गिर्द घूमने लगता है। रविप्रकाश लूणिया एक ही गाय से 62 गोवंश की गोशाला बना डाली। गाय व सांड से लेकर छोटे छोटे बछड़े भी शामिल हैं। जिनके अलग अलग नाम है। रवि की आवाज से ही वे उनके पीछे चल देते हैं। गोवंश की भूख-प्यास और किसी पीड़ा को भी रवि उनके चेहरे, आवाज और हावभाव से पहचान लेते हैं। उसके हिसाब से वह उनकी हर जरुरत भी तुरंत पूरी करते हैं। गौशाला के अन्य कर्मचारियों के अनुसार रवि जब तक गोवंश की सेवा नहीं करते तब तक मन को चैन नहीं मिलता। सुबह 5 से 12 बजे तक व शाम को 5 से 7 बजे तक सेवा में जुटे रहते है। बचपन से था गोपालन का शौकपिता हनुमानमल व माता पुष्पादेवी के घर 14 दिसम्बर 1980 को जन्मे रविप्रकाश लूणिया का बचपन से गोपालन का शौक था। बचपन में दादा पुनमचन्द लूणिया व पिता हनुमानमल लूणिया के सामने गाय लाने की जिद की। लेकिन परिजनों ने बच्चा कही गाय के चपेट में आकर घायल नहीं हो जाए इस भय से गाय नहीं लाए। लेकिन रवि ने जिद नहीं छोड़ी, जब वे 15 वर्ष के हुए तो दादा 4 माह की बछड़ी घर लेकर आए। रवि बछड़ी के साथ खेलता और सेवा भी करने लगा। बछड़ी गाय का रूप धारण कर लिया। उस गाय से आज रवि के पास 62 गोवंश है। जो सब काम छोड़कर नियमित सेवा करते हैं। रवि के पिता हनुमानमल लूणिया, बड़ा भाई बजरंग लूणिया सहित परिवार के लोग देश प्रदेश में व्यापार करते है। लेकिन रवि ने व्यापार की जगह गोपालन को चुना और 15 वर्ष की आयु से वे गोपालन में लगे हुए हैं। े