नियुक्ति पत्र प्रदान कर किया साध्वी प्रमुखा मनोनयन समारोह में ज्यों ही आचार्य मंचासीन हुए तो समुपस्थित धर्मसभा में नव साध्वीप्रमुखा के चयन को लेकर आतुर भावों से प्रतीक्षारत था। तेरापंथ के पूर्वाचार्यों का स्मरण कर जैसे ही आचार्य ने साध्वी विश्रुतविभा की नियुक्ति कर साध्वीप्रमुखा पद प्रदान किया तो पूरा परिसर जय जयकारों से गुंजायमान हो उठा।
आचार्य ने कहा कि हमारा यह तेरापंथ धर्मसंघ से 262 वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ और आचार्य भिक्षु इसके प्रथम गुरु हुए। चतुर्थ आचार्य जीतमल ने संघ में साध्वियों की मुखिया के रूप में व्यवस्था दी। साध्वी सरदारा प्रथम साध्वीप्रमुखा बनी, तब से यह परंपरा चली आरही है। आचार्य तुलसी ने अपने आचार्यकाल में तीन साध्वी प्रमुखाओं की नियुक्ति की। आचार्य के निर्देशन में भी एक ही साध्वी मुखिया होती है। इससे पूर्व साधिक 50 वर्षों तक साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ने इस पद पर सेवाएं दी। दिल्ली में दो माह पूर्व उनका प्रयाण हो गया। आचार्य ने कहा कि अब इस पद को रिक्त न रखते हुए में साध्वी विश्रुतविभा को नियुक्त करता हूं।
इसके बाद आचार्य ने उन्हें धवल उत्तरीय प्रदान किया जिसे साध्वीवर्या संबुद्धयशा ने साध्वी प्रमुखा को ओढाया। आचार्य ने अपना स्वयं का राजोरहण एवं प्रमार्जनी नव साध्वीप्रमुखा को प्रदान की। आचार्य ने कहा कि आचार्यों का एक कर्तव्य साध्वीप्रमुखा की नियुक्ति होता है जिसे मैनें सम्पन्न कर लिया है। अब आप खूब अच्छे तरीके से साध्वी समुदाय की सारसंभाल, व्यवस्था आदि देखे और स्वयं चित्त समाधि में रहते हुए औरों को भी चित्त समाधि में रखे। धर्मसभा ने खड़े होकर साध्वीप्रमुखा का अभिवादन किया। कार्यक्रम में मुख्यमुनि महावीर, साध्वीवर्या संबुद्धयशा ने मंगलकामना प्रकट की। साध्वीवृन्द ने सामूहिक गीत का संगान किया। साध्वी जिनप्रभा ने अभिनंदन पत्र का वाचन किया जिसे साध्वीवर्या ने साध्वीप्रमुखा को उपहृत किया।