शास्त्रों में शीतला अष्टमी के दिन ठण्डा भोजन (बास्योड़ा) ही ग्रहण करने का विधान बताया गया है। एक दिन पूर्व शाम को ही घरों में विभिन्न प्रकार के पकवान, जिनका शीतला माता को भोग लगाया जाता है, तैयार किए गए। इनमें पुए, पापड़ी, दही बड़े, सूजी का हलवा, कुटू के आटे की पकौड़ी इत्यादि तैयार किए गए। दूसरे दिन अष्टमी पर माता रानी को इनका भोग लगाया गया। भोग लगाने के बाद मंदिर में एक निश्चित स्थान पर महिलाओं ने शीतला माता की कहानी सुनी।
कोविड़-19 के चलते दो साल के इंतजार के बाद इस बार शुक्रवार को मंदिर में फिर से रौनक नजर आई। पिछले साल कुछ पाबंदियों के कारण नियमों की पालना के तहत इतनी भीड़ नजर नहीं थी। पिछले साल तो 5 मिनट में ही माता के दर्शन हो रहे थे। इस बार श्रद्धालुओं को कतार में घंटों तक इंतजार करना पड़ा। मंदिर के बाहर गोशाला रोड पर मेले के तहत विभिन्न तरह की अस्थायी स्टॉले लगाई गई थी। इन पर पुपाड़ी, फिरकनी, बांसुरी, रंग-बिरंगे गुब्बारों को खरीदने के लिए बच्चे लालायित दिखे। मेले में बर्फ का गोला, गन्ने का रस, गुडिय़ा के बाल के ठेले लगे थे, जहां लोगों ने जमकर लुत्फ लिया।